जब यूपी में योगी 2.0 के 52 सहयोगियों ने शपथ ली तो जातिवादी समीकरण ,प्याज के छिलके की तह परत दर परत खुलते दिखे। हद्द तो तब हो गई जब शपथ के बाद ग्रुप फ़ोटो सेशन हुआ था , बीच में मोदी , मोदी के एक बगल राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और दूसरी बगल योगी। यहां तक तो ठीक था, पर आनंदीबेन पटेल की बगल में केशव प्रसाद मौर्य पीछे से आ कर एक मर्यादित दूरी रख कर खड़े हुए। लेकिन योगी के बगल में बृजेश पाठक जिस तरह अशोभनीय ढंग से योगी को ढक कर खड़े हुए , वह बहुत ही अमर्यादित लगा । यह दृश्य देख कर निरहुआ का गाया गाना याद आ गया , चलेला जब चांपि के बाबा क बुलडोजर ! बृजेश पाठक ने अपने दलबदल की काबिलियत से ब्राह्मण लॉबी की ताक़त पर योगी को मुख्य मंत्री नहीं महज एक भाजपाई तुक्का मानते है । योगी के वह पुराने निंदक,केशव प्रसाद मौर्य पहले ही से योगी को अपमानित करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ने के अभ्यस्त रहे हैं। कुछ समय पहले तक जब भी कभी उन से पूछा जाता था कि किस के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे ? तो वह या तो मोदी का नाम लेते थे या कमल का फूल के नेतृत्व में चुनाव लड़ना बताते थे। और हरदम माहौल बनाते रहते थे कि योगी अब गए कि तब गए । अब जब मंत्रालय बटा तो योगी आदित्यनाथ (मुख्यमंत्री) ने खुद नियुक्ति, कार्मिक, गृह, सतर्कता, आवास एवं शहरी नियोजन, राजस्व, खाद्य एवं रसद, नागरिक आपूर्ति, खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन, भूतत्व एवं खनिकर्म, अर्थ एवं संख्या, राज्य कर एवं निबंधन, सामान्य प्रशासन, सचिवालय प्रशासन, गोपन, सूचना, निर्वाचन, संस्थागत वित्त, नियोजन, राज्य संपत्ति, प्रशासनिक सुधार, कार्यक्रम कार्यान्वयन, अवस्थापना, नागरिक उड्डयन, न्याय, सैनिक कल्याण समेत 34 मंत्रालय रखे और केशव प्रसाद मौर्य (डिप्टी सीएम) ग्राम्य विकास एवं समग्र ग्राम विकास, ग्रामीण अभियंत्रण,खाद्य प्रसंस्करण, मनोरंजन कर, सार्वजनिक उद्यम, राष्ट्रीय एकीकरण , ब्रजेश पाठक (डिप्टी सीएम) चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, परिवार कल्याण तथा मातृ एवं शिशु कल्याण मंत्रालय , सूर्य प्रताप शाही (कैबिनेट मंत्री) कृषि, कृषि शिक्षा एवं कृषि अनुसंधान सुरेश कुमार खन्ना (कैबिनेट मंत्री) वित्त, संसदीय कार्य स्वतंत्र देव सिंह (कैबिनेट मंत्री) जल शक्ति, नमामि गंगे तथा ग्रामीण जलापूर्ति, सिंचाई एवं जल संसाधन, सिंचाई (यांत्रिकी), लघु सिंचाई, परती भूमि विकास, बाढ़ नियंत्रण बेबी रानी मौर्य (कैबिनेट मंत्री) महिला कल्याण, बाल विकास एवं पुष्टाहार लक्ष्मी नारायण चौधरी (कैबिनेट मंत्री) गन्ना विकास, चीनी मिलें, जयवीर सिंह (कैबिनेट मंत्री) पर्यटन एवं संस्कृति धर्मपाल सिंह (कैबिनेट मंत्री) पशुधन,दुग्ध विकास,राजनीतिक पेंशन, अल्पसंख्यक कल्याण, मुस्लिम वक्फ एवं हज, नागरिक सुरक्षा मंत्रालय मिला है । योगी गए तो नहीं पर प्रचंड बहुमत पा कर लौटे। पर क्या जानते थे कि जिस बुलडोजर के नाम पर वह विजयी हुए , वही बुलडोजर मोदी और अमित शाह उन पर ही चढ़ा देंगे। मैं होता या कोई अन्य सामान्य आदमी भी होता तो ऐसे मंत्रिमंडल के साथ शपथ लेने की जगह शपथ लेने से इंकार कर देता। या अपने मनमुताबिक़ मंत्रिमंडल बनाता या सरकार से बाहर रह जाता। 2017 में योगी ने मुख्य मंत्री न बनने की स्थिति में बग़ावत का झंडा उठा लिया था। मोदी एंड कंपनी को झुकना पड़ा था। तब योगी के साथ बग़ावत करने भर के विधायक थे। इस लिए योगी की बात मान ली गई। फिर जब बीते दिनों योगी को ताश के पत्ते की तरह फेंटने की कोशिश की गई तब भी योगी ने ताश की गड्डी में समाने से इंकार कर दिया था। इस बार योगी के पास बग़ावत करने के लिए कुछ नहीं है। क्यों कि इस बार टिकट बांटने में उन की नहीं चली है। अब योगी के पास अगर है कुछ तो नाथ संप्रदाय की ताक़त , गोरखनाथ का योग। और गोरख की शिक्षा। वन डे मैच खेलने वाले योगी हार-जीत और कुचक्र के फेर में नहीं पड़ते। योगी को अपने काम पर इतना भरोसा है , अपनी निर्भीकता पर इतना भरोसा है कि यहां-वहां उठक-बैठक करने में यक़ीन नहीं करते। गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर में यह सब उन्हों ने सीखा है। लोग जानते ही हैं कि योगी आदित्यनाथ गुरु गोरखनाथ के नाथ संप्रदाय से आते हैं। वह गोरख जो अपने गुरु मछेंद्रनाथ को भी उन के विचलन पर अवसर आने पर चेताते हुए कहते हैं , जाग मछेंदर , गोरख आया ! योगी अपनी राजनीति में भी यही सूत्र अपनाते हैं। पर हाईकमान के नाम पर जो मंत्रिमंडल योगी को मिला है , उस में योगी के मन के दो-चार लोग ही हैं। उन की पसंद का तो एक भी नाम नहीं है। देखना दिलचस्प होगा कि ऐसे बेमन के मंत्रिमंडल से योगी कैसे शासन और प्रशासन को साध पाते हैं। अभी तो योगी मंत्रिमंडल में प्रशासनिक सेवा के सिर्फ़ अरविंद शर्मा ही नहीं उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा प्रसाद मिश्र भी मोदी के सहयोगी रहे हैं। रिटायर होने के एक दिन पहले ही मिश्रा को मुख्य सचिव बना कर मोदी ने उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव बना कर भेजा और साल भर का सेवा विस्तार दे दिया। मतलब मंत्रिमंडल ही नहीं , प्रशासन भी योगी की मन मर्जी का नहीं है। मुलायम सिंह यादव का पहला कार्यकाल याद आता है। अखिलेश यादव का कार्यकाल याद आता है। मुलायम सिंह यादव जब पहली बार मुख्य मंत्री बने थे बसपा के सहयोग से तब कांशीराम ने पी एल पुनिया को मुख्य मंत्री का सचिव बनवा कर अपना प्रतिनिधित्व कायम रखा था। मुलायम पर नकेल लगा रखी थी।
___ पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर ।