(Kavita Malhotra)
We are just a bunch of atoms travelling through space, assembling and disassembling.
माना कि प्रतिस्पर्धाएँ हर किसी के अँदर छुपी प्रतिभाओं को निखारने का काम करती हैं, लेकिन जब प्रतिस्पर्धाओं में स्वार्थ निहित हो जाते हैं तब वो जनहितकारी नहीं रह पातीं।
आजकल हर क्षेत्र की राजनीति अपनी ही मैं के रँग में रँगी नज़र आ रही है।
कँप्यूटर का युग है, हर तरह के साफ्टवेयर डाऊनलोड करके बँधे बंधाए सिलेबस पढ़ाए जा रहे हैं।जन्मपत्रियों के लिए भी पैसे देकर बने बनाए शब्दों के लुभावने मकड़ जाल अपनी गिरफ़्त में लेकर पथभ्रमित कर रहे हैं।रामायण की चौपाइयों और गीता के श्लोकों का उच्चारण करना तो इँटरनेट के माध्यम से कोई भी सीख सकता है,लेकिन केवल सागर शब्द पढ़ लेने से सागर की गहराई से सीप के मोती चुनने की कला नहीं सीखी जा सकती। प्रेम का इज़हार करने वाले शब्द कभी प्रेम के शिखर पर नहीं पहुँचा सकते, क्यूँकि प्रेम के नाम पर ही लोग एक दूसरे को गिराते हैं।
किसी शब्दकोश में वो शब्द बना ही नहीं जो मानवता के उत्थान की व्याख्या कर सके।
दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है लेकिन अपने दायित्वों की कसौटी पर बहुत कम लोग खरे उतरते हैं।
हर वर्ष होलिका दहन की परँपरा निभाई जाती है लेकिन अपने बीमार मनोविकारों का दहन कोई नहीं करना चाहता।
विभिन्न लुभावने रंगों से हर वर्ष फाग खेला जाता है लेकिन अपनी रूह को परम उल्लास के रँग में रँगने की कला का सूत्र सब के हाथ नहीं आ पाता।
कैसा भी भेदभाव हो अनुचित है
फागुन तो प्रेम रँग का आभास है
जगाए तो पर कभी बुझा न सके
सांसारिकता वो अनबुझ प्यास है
दिखे न दिखे पर हर पल सँग रहे
आध्यात्मिकता रूह का अहसास है
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हर पल को आनँद के रँग में रंगना ही नहीं सीख पाए तो सारी शिक्षा व्यर्थ है।विवेकानंद एक सोच है जो देश की भावी पीढ़ी को उत्कृष्ट सोच के रँग में रँग कर समूची सृष्टि के विवेक को जागृत करने का सामर्थ्य रखती है।
जब तक खुद से निस्वार्थता का सँकल्प न किया हो तब तक दया करूणा और निस्वार्थ प्रेम केवल कोरे शब्द हैं जिनका कोई अर्थ नहीं हो सकता।
ज़िंदगी का लक्ष्य तभी खोजा जा सकता है, जब जीवन का उद्देश्य पता हो।अपने वजूद की वजह जानकर अपने अस्तित्व को अर्थ देना ही तो परम सत्ता की रज़ामंदी का हस्ताक्षर बनता है।
Leaving a legacy of unselfishness, where others will benefit from what you have left behind.
जानवरों के मरने के बाद तो उनकी खाल भी काम आती है लेकिन मानव की औक़ात तो केवल एक मुट्ठी राख है जो किसी काम नहीं आती।इसलिए जीवन रहते ही ये निर्णय लेना ज़रूरी है कि हमें जीवन में कमाना क्या है और अपनी अनमोल धरोहर के रूप में छोड़कर क्या जाना है।
बहुत आसान है अपनी इस ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेना केवल ये कहकर कि That’s not part of my job.
लेकिन दृष्टिकोण बदलकर तो देखिए केवल इतना ही तो कहना है कि Although that’s not part of my job but that’s part of me.
किसी बनी बनाई सत्ता का उत्तराधिकार पाना सल्तनत को सँभालने की ताक़त नहीं देता।ताक़त तो बनती है परम सत्ता के उत्तराधिकारी बनने के लिए आवश्यक तत्वों से।तत्व ज्ञान बाज़ार से नहीं ख़रीदा जा सकता।ये तो खुद से कमाना पड़ता है।
रटे रटाए श्लोक कभी किसी के लिए गीता का ज्ञान नहीं बन सकते, इसलिए अगर अपनी आत्मा को दिव्य ज्ञान के रँग में रँग कर अब के बरस फाग खेलने का इरादा हो तो केवल दिलों के फूल खिलाइए और माली बनकर अपने साथ किसी भी रूप में जुड़े हर चेहरे की मुस्कान के रक्षक बनिए।
We should plant trees under whose shade we did not plan to sit.
खुद को निस्वार्थता के रँग में रँगने का विकल्प दिया जाए
फाग घटित होगा जब द्वेष के दहन का सँकल्प लिया जाए