पहले आम जनमानस को सस्ते काल दर और सस्ती इंटरनेट सेवाओं की लत लगाई फिर धीरे- धीरे दरो को महंगा करते गए और आज हालात ये हो गए है कि आम जनता खुद को ठगा महसूस कर रही । विगत दो साल से जिस तरह टेलीकॉम कम्पनियों ने जनता को लूटा है वो आक्रोश पैदा करने वाला है । पहले जिओ ने जनता को धोखा दिया अब आइडिया वोडाफोन और एयरटेल ने अपने सभी कालिंग और डाटा पैक के मूल्य दोगुने कर दिए , अब अधिकतर लोग अपने सिम को बी एस एन एल में पोर्ट कराने के फिराक में है , यकीन मानिए ऐसा ही रहा तो ये निजी टेलीकॉम कंपनिया बैठ जाएंगी ।अब जरा सोचिए अंबानी जी , टाटा ग्रुप वालों की क्या लेकर आए थे, क्या लेकर जाएंगे, खाली हाथ ही तो आए थे और खाली हाथ ही तो जाना है फिर इस बात पर चिंता जताने का आखिर क्या मतलब कि मार्च तक एयरटेल बिक जाएगी, बीपीसीएल बिक जाएगी या फिर रेलवे बिक रही है, बीएसएनएल-एमटीएनएल बिक रही है। ये सब तो बस मोह-माया है, वस्त्रों की तरह ऊपरी आवरण है, इनके प्रति इतनी आसक्ति कैसी और क्यों? पता नहीं लोग शाश्वत शास्त्रीय ज्ञान से क्यों विरत होते जा रहे हैं, जहां सांसारिक मोहमाया के परित्याग से मोक्ष और स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग बताया गया है और एक आजकल के चंद लोग हैं, जो अलग ही मार्ग पर चलते दिख पड़ते हैं। ऐसे लोग ये समझना ही नहीं चाहते कि सही मार्ग पर चलने वाले लोगों के सत्वचनों में हर समस्या का समाधान है, कोई ऐसा सवाल ही नहीं, जिसका जवाब न हो, ये जवाब जड़बुद्धियों की जड़ता मिटा सकते हैं, मंदबुद्धियों के दिमाग की बत्ती जला सकते हैं, लेकिन संयम तो है ही नहीं ना…और यही तो परेशानी है, भला संयम से सुनेंगे तभी तो समझेंगे। हम तो भैया पूरे संयम के साथ सुनते हैं आखिर तभी तो समझ पाते हैं, अब पूरा समझ जाते तब तो समझदार ही बन जाते, लेकिन जितना समझ पाते हैं, वो भी कोई कम थोड़े ना है, यकीन न हो तो आपको भी बताते हैं, हो सकता है आप हमसे थोड़ा ज्यादा ही समझ जाएं।
तो भैया रेलवे का निजीकरण इसलिए हो रहा है क्योंकि रेलवे कर्मचारी सही काम नहीं करते, सेवाओं में सुधार नहीं करते, बस वेतन लेते हैं, देश का बोझ बढ़ाते हैं तो इनकी क्या ज़रूरत? बीएसएनल-एमटीएनएल आज के जमाने में रखता कौन है, इनके नेटवर्क मिलते कहां हैं, सरकार के पास और कोई काम नहीं है क्या जो पांच-सवा पांच साल इसके सुधार और प्रमोशन के बारे में सोचे, इससे अच्छा तो है जियो, जिसके नेटवर्क के इस्तेमाल से देश का एक बड़ा तबका जी रहा है। अच्छा एयर इंडिया भी तो है, तो भैया ये महाराजा का ज़माना तो कब का चला गया, लोकतंत्र में महाराजा का खर्च ढ़ोते रहने का क्या मतलब है, इसे तो पहले ही विदा कर देना था।
अब चंद स्वयंभू चिंतक समझाने बैठ जाते हैं कि सरकारी उपक्रमों को संचालित करने की जिम्मेदारी सरकार की होती है, लेकिन सरकार को सियासत से फुर्सत नहीं मिल पाती तो वो अपने मित्रों के निजी उपक्रमों के संचालन की चिंता में डूब जाती है। सोचने पर ये बात सही भी लगती है कि एक साथ दोनों काम तो चल नहीं सकते, क्योंकि हितों का टकराव होगा और टकराव टालना भी तो सरकार की ही जिम्मेदारी है, इसीलिए तो वो एक को बंद कराने की सोच रही है ताकि दूसरा तरक्की करे, लेकिन लोग इतना भी नहीं समझ पाते कि घूमा-फिराकर तरक्की तो देश की ही होनी है, सरकारी उपक्रम बिकेंगे तो उससे सैंकड़ों, हज़ारों करोड़ आएंगे, इनमें काम करने वालों के वेतन, भत्ते, पेंशन सब बचेंगे तो वो पैसा देश के विकास में लगेगा, दूसरी ओर बेचारे निजी क्षेत्र के बड़े-बड़े उद्यमी अपने बुद्धिबल और सरकारी सब्सिडी सुविधा प्राप्त कर अरबों का कारोबार करेंगे, देश को करोड़ों का टैक्स देंगे और ये पैसा भी विकास में लगेगा। ये सब समझ पाना इतना आसान थोड़े न है, लाखों लोग तो बच्चा से जवान होते हुए बूढ़े भी हो गए और अब तक उन्नीस का पहाड़ा पढ़ने में पसीने आ रहे, और ये स्वयंभू बुद्धिजीवी उन्हें जीडीपी समझा रहे, जिसे वो पीडीपी समझकर 370 समझ रहे! तो घूम-फिरकर बात वहीं आ जाती है कि जो कभी तेरा था ही नहीं उससे मोह कैसा, और जो तेरा कभी हो नहीं सकता । आज जनता ख़ामोश है तो इसका ये मतलब नहीं कि जनता सोयी हुई है , बस ये ख़ामोशी तूफ़ान के पहले की ख़ामोशी है जो जल्द ही टेलीकॉम कम्पनियों और बढ़ती मंहगाई के प्रति उठने वाली है । लोग जल्द ही सड़कों पर उग्र होंगे बहिष्कार करेंगे तब करिएगा मनमानी , देख लेगी जनता क्योंकि सारे टाटा बिड़ला रिलायंस सब जनता से ही बने है जनता ही इन्हें धरातल पर ले आएगी साथ में सरकार को भी आईना दिखाएगी ।
——- पंकज कुमार मिश्रा जौनपुरी 8808113709