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सँभल जाए अगर माली, महके हर रूह की डाली : कविता मल्होत्रा

एक प्राकृतिक आपदा की तरह कोरोना वायरस समूचे विश्व पर मँडराया और वैश्विक बँधुत्व की सीख देकर आगे निकल गया।लेकिन अब भी सीमा पार से परस्पर वैमनस्य के कारण शहादत की खबरें आती हैं तो एैसा लगता है कि अभी मानव को बहुत कुछ सीखना है।

कई लोगों को बेरोज़गारी का रोना रोते देखा और सुना है, लेकिन बीते दिनों में संभावनाओं के अनेक द्वार भी खुले देखे हैं।इन दिनों प्रत्येक व्यक्ति अपने अँदर छुपी महान प्रतिभाओं का साक्षी हुआ है।

सबसे अधिक फ़ायदा हुआ है बच्चों और बुजुर्गों को, जिनके लिए, युवा पीढ़ी के पास कभी फ़ुर्सत के पल नहीं हुआ करते थे।आज समूचे विश्व में पारिवारिक संवेदनाओं की हरियाली महक रही है, जिसमें संस्कृति की फसल भी है और संस्कारों के फल भी।

कितना अद्भुत संगम है, चार पीढ़ियों के बीच की सुसँस्कृत संवेदनाओं का।अब ये तो हर एक व्यक्ति की निजी अँतर्दृष्टि पर निर्भर करता है कि कौन इस परिस्थिति में बर्बादी के मँज़र तलाशता है और कौन अपने ही अँदर सोई हुई अनगिनत प्रतिभाओं को तराश कर अवसरवादिता का साक्षात उदाहरण बनता है।

वक़्त सभी को एक समान मिला है, बस चिंतन सबका अपना-अपना है।

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सूरज ने तो समूची सृष्टि को उजाला ही दिया

कोई ऊष्मा पर भी इल्ज़ाम लगाए तो क्या करें

पनपते हैं तमाम नवांकुर भी इन्हीं दिनों ऊर्जा से

कोई झुलसती गर्मी पर ऊँगली उठाए तो क्या करें

परस्पर प्रेम की ऊष्णता वैश्विक बँधुत्व का है बीज

सरहदों पर बारूद फैंकते,समझ न पाएँ तो क्या करें

क्या भला होगा अपने-अपने देश का परचम लहराने से

मानवता को दानवता की दीमक खा जाए तो क्या करें

ये क़ायनात तो चंद दिनों का मुसाफिरखाना है दोस्तों

अँतर्घट में डुबकी लगा,कोई तीर्थ न बनाए तो क्या करें

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किसी भी देश,जाति,रँग और वर्ग का कोई भी व्यक्ति सर्वप्रथम परमपिता परमात्मा का अँश है, जो वास्तव में श्वेतवर्णी बादलों की तरह, समूची सृष्टि पर अपने निजत्व से स्नेह की बरसात करने का उद्देश्य लेकर ही धरती पर उतारा गया है।

जँगल कंक्रीट का हो या रेतीले दिलों का, बादलों को तो सहजता और निष्पक्षता से सभी को सींचना है, तभी तो प्रेम का बाग़बान महकेगा।

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चलो आज प्रेम के मोह बँधनों से खुद को आज़ाद करें

आज समूची क़ायनात में निःस्वार्थ प्रेम की वारदात करें

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