ख़ूब तड़पती रही गिलहरी गर्म तवे के भभके से
सबने इसे तमाशा समझा, ताली पीटी, चले गए
हम सब तुम्हारे अपराधी हैं प्रियंका! जाओ, अपने फफोलों के लिए मत तलाशो यहाँ कोई आँसू। परलोक में जाकर निर्भया को ख़बर कर देना, कि उसकी मौत पर जली मोमबत्तियों की रौशनी अब काली पड़ गई है। उसे बता देना कि उसकी जिजीविषा ने हार कर भी इस देश में ऐसी कोई क्रांति खड़ी नहीं की कि जिसकी ज्वाला वहशत के अंधकार में संवेदनाओं की धूप भर सके।
उसके सामने खड़ी हो जाना… अधजली… और उसके गले लगकर रोते हुए कहना कि किसी न्याय के इंतज़ार में बैठी न रहे। उसे बताना कि तुम उस चूल्हे की आख़िरी किश्त नहीं थी, जिस पर संवेदना के धंधे की रोटियां सेंकी जाती हैं।
जाओ प्रियंका, हमारा देश बहुत व्यस्त है इन दिनों। हमारे पास वक़्त नहीं है तुम्हारी दर्दनाक मौत पर रोने का। हमें नहीं सुनाई देंगी तुम्हारी खौफ़नाक चीखें। तुम तड़प कर मरी या लड़ कर… इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता प्रियंका! तुम्हारी अधजली देह इस मुल्क में एक अख़बार की सुर्खी से ज़्यादा कुछ नहीं है।
तुम्हारे बलात्कार से ऐसा कुछ नहीं होने वाला, जिससे वहशियों की रूह कांप उठे। वैसे भी, वहशियों के जिस्म में रूह होती ही कहाँ है। रूह तो बेबसी का जिस्म ओढ़ कर रहती है। और बेबसों के पास तुम्हारी मौत पर कुछ कर पाने की हिम्मत नहीं होती।
जल्दी जाओ प्रियंका, हमारे पास वक़्त बहुत कम है। बता दो इंसाफ़ के इंतज़ार में बैठी हर अधजली लाश को कि उनका वजूद एक जिस्म से ज़ियादा कुछ नहीं है। उनसे कहो कि इंसाफ़ की राह न देखें, क्योंकि इंसाफ़ के जिस्म से भी किसी पुरानी अधजली लाश जैसी सड़ांध उठ रही है। उनको स्पष्ट कर देना कि इंसाफ़ का हर रोज़ सामूहिक बलात्कार किया जा रहा है और उसके जिस्म को रोज़ तिल-तिल कर जलाया जा रहा है। उन्हें आगाह करना जो कानून ख़ुद अपने बलात्कार का इंसाफ़ नहीं कर सकता उससे कोई उम्मीद न रखें।
हमें मुआफ़ मत करना प्रियंका! क्योंकि तुमने भी कभी हमारे स्वर में स्वर मिलाकर गर्व से कहा होगा – “हम सब भारतीय हैं।”
~चिराग़ जैन