आज विश्व में कैंसर एक लाइलाज बीमारी के रूप जानी जाती है , उसके लाइलाज होने के पीछे हम आप और बढ़ता प्लास्टिक उपयोग है । सिंगल यूज प्लास्टिक सबकी जरूरत बन चुकी है और एक सर्वे के मुताबिक विश्व का 40% कैंसर प्लास्टिक के उत्पादों, प्लास्टिक के अवयवों या प्लास्टिक के कारण विकसित होता है । मानकों के हिसाब से दुकानदारों ने अपने यहां प्लास्टिक बेचने और देने का जुगाड़ बिठा लिया है और अब भी धड़ल्ले से खतरनाक प्लास्टिक के खाद्य पदार्थ और बैग का प्रयोग किया जा रहा जो स्वास्थ्य के साथ साथ आगामी समय में जानमाल के लिए नुकसानदेय साबित होगा । दुकानों पर खतरनाक प्लास्टिक बैग में सब्जियां दवाएं और अन्य ज़रूरत के सामान भरकर ग्राहकों को दिए जाने के कई मामले तब सामने आए जब यह बैग प्रतिबंधित किया गया । लोकल नगरीय बाजारों में और हाटों में अब भी ऐसे प्लास्टिक सामानों के साथ मुफ्त दिए जा रहे जिसे उपयोग कर लोग घर से बाहर फेंक दे रहे और फिर ये सीवर लाइन में फंसकर इकठ्ठा होंगे और जब बरसात होगी तब ये सीवेज सिस्टम चोक कर जायेगा । भले ही स्वच्छता अभियान के बिगुल बजाए जाए, भले ही सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की घोषणाएं होती रहे, कचरा प्रबंधन के लिए नगर निगम के ठेके पर चलने वाले हजारों ट्रक भले ही घर-घर जाकर कूड़ा उठाने के लिए भेजे जाएं, लेकिन हम हैं कि ठानकर बैठे हैं कि भारत प्लास्टिक का देश है, और उसमें हर जगह गंदगी और प्रदूषण फैलाना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है! मुर्गे, गौरैया जैसे पक्षियों पर न तो हमें दया रही, न तो गाय-भैंस जैसे पशुओं पर करुणा, जो हमें दूध आदि से पालते हैं।एक विवाह समारोह में 10,00 से अधिक लोग कुर्सियों पर बैठे थे और गीत संगीत का आनंद ले रहे थे, तभी किसी में माइक से कहा आप सब हम पूरा शहर प्लास्टिक के ढेर पर बैठे है और अभी जहर पीने को लालायित हो ! यह बात उस समय तो पूरी तरह से समझ में नहीं आई थी, लेकिन प्लास्टिक ने हमारे हवा, पानी और जमीन को भरी नुक्सान पहुंचाना शुरू कर दिया है । क्युकी समारोह में बटने वाला पानी का बोतल भी उसी जहरीले प्लास्टिक का होता है जो किडनी और फेफड़े के बीमारी के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है । एक नामी स्कूल के बाहर पान की दूकान है, दुकानदार हररोज शाम लोगों द्वारा फैंकी गई सारी प्लास्टिक की थैलियां इकठ्ठी करता है। रोजाना करीब 8 से 10 किलो प्लास्टिक की थैलियां रास्ते के किनारे ही जला देता है । कई बार समझाने के बाद भी उनके दिमाग में बात नहीं बैठती कि इससे न केवल कार्बन डाइऑक्साइड, बल्कि कार्बन मोनोऑक्साइड के जहरीले कण भी हवा में फैलाते है । आसपास लोगों या स्कूली बच्चों की सांस में प्रवेश कर जाते हैं और क्या यह केवल एक शहर, एक राज्य या राष्ट्र के एक या दो कोनों की ही बात है? जमीन पर प्लास्टिक के कचरे के ढेर लगाने वालों को यह नहीं पता कि धूप में जलने वाला प्लास्टिक जहरीली गैसें छोड़ता है और अस्थमा से लेकर फेफड़ों के कैंसर तक की बीमारियों का कारण बनता है।
आपने कई बार देखा होगा कि शहरों के कई हिस्सों में केमिकल मिला हुआ पानी सीधे नल से घर में आ जाता है! ऐसा क्यूँ होता है? प्लास्टिक का कचरा जमीन में दब जाता है। वह कभी नष्ट नहीं होता। और दबा हुआ प्लास्टिक पानी में रसायनों का मिश्रण बनाता है। जैसे हमने मानो जानबूज़ कर एक विनाशकारी तांडव खुद ही शुरू किया है, खुद को ही मिटाने के लिए ।
पालस्टिक फेफड़े, गुर्दे और ब्रोन्कियल कैंसर का कारण बनता है। कई लोगों का कहना है कि प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के बजाय इसका उत्पादन बंद करवाओ! पर समस्या यह है कि सोलिड वेस्ट मेनेजमेंट रूल्स 2016 में पेश किए गए थे। इसमें स्पष्ट निर्देश जरी किया गया है कि निर्माताओं को खुद प्लास्टिक उत्पादों के लिए रीसाइक्लिंग मशीनरी स्थापित करनी पडेगी । लेकिन जानकर हैरानी होगी कि एक रीसाइक्लिंग यूनिट की कीमत करीब 11 से 16 लाख रुपए होती है। अब आप ही बताइए बिना कोई मुनाफे के इतनी महंगी यूनिट कोई क्यों रखेगा?
इसीलिए नीदरलैंड की लीडेन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने छात्रों द्वारा एक वैश्विक सर्वेक्षण किया गया। आंकड़े कह रहे है कि हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक समुद्र में फेंका जाता है! शोधकर्ताओं का मानना है कि 2050 तक समुद्र में वजन के हिसाब से मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक हो सकता है! सबसे पहले चूहों के पेट में प्लास्टिक के नैनोपार्टिकल्स पाए गए। इसके बाद समुद्री जीवन और फिर मांसाहारियों पर जांच की गई। और दु:ख की बात है कि मुर्गी के भ्रूण में भी नैनोप्लास्टिक कण होते हैं, जो उसके आंतरिक शरीर और ऊतकों को नुकसान पहुंचाते हैं! लीडेन यूनिवर्सिटी के जीवविज्ञानियों ने जब चिकन भ्रूण की जांच की, तो उन्हें भ्रूण में चमकदार प्लास्टिक के नैनोमीटर-स्केल कण मिले । इसके साइड इफेक्ट इतने खतरनाक होते हैं कि अगर कोई मांसाहारी ऐसे चिकन को खा ले तो उसे भी अनिवार्य रूप से हृदयरोग, पेट का कैंसर या अन्ननलिका का कैंसर हो जाएगा । अब तक समुद्री पक्षियों की 1200 से अधिक प्रजातियां प्लास्टिक कचरे के कारण रोगिष्ट हैं और 45 से अधिक प्रजातियां अब विलुप्त होने के कगार पर हैं।
ऐसे समय में हमें देश के छोटे छोटे लोगों के छोट छोटे अभियान याद आते हैं, जो अपने स्तर पर विश्व को प्लास्टिक के जहर से बचाने के लिए संकल्पित हैं। बात करते हैं गजेरा विद्यालय, सूरत की। यहां शिक्षक कनू सोजित्रा ने बच्चों को प्रेरित किया कि आप अपनी टूटी हुई, इस्तेमाल की हुई कलम का क्या करते हैं?- सर, हम इसे फेंक देते हैं।- अब हम यह सब कुछ स्कूल में रखे गए एक ही कूड़ेदान में इकट्ठा करेंगे। और आश्चर्यजनक रूप से छात्रों ने सहयोग किया। सिर्फ एक हफ्ते में 500 किलो प्लास्टिक की पैन का कचरा इकट्ठा किया गया। यह अभियान आज भी जारी है… अगर ऐसा नहीं किया जाता तो सूरत की सड़कों पर 500 किलो प्लास्टिक कचरा बिखरा पडा होता, जो पर्यावरण और शरीर दोनों को नुकसान पहुंचाता। हम फिल्म आरआरआर को जानते हैं, लेकिन क्या हम प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के चार ‘आर’ को जानते हैं? जितना हो सके कम से कम इस्तेमाल करें रियूज करें । जो कुछ भी उपयोग किया जाता है, उसका पुन: उपयोग करें, उसका पुन: उपयोग कैसे किया जा सकता है? रिसायकल करके! टूटे हुए प्लास्टिक को इकट्ठा करने और उससे फिर से नए उत्पाद बनाने की योजनाएँ शुरू की जाए अर्थात रियूज । जितना हो सके हम प्लास्टिक का उपयोग बंद करें ।
पंकज कुमार मिश्रा मीडिया कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर