मां सरस्वती की कृपा का पर्व है बसंत पंचमी
बसंत पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार है।बसंत की शुरुआत माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी से होती है। इस दिन को बुद्धि, ज्ञान और कला की देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के दिन के रूप में मनाया जाता है।यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है।मौसमी फूलों और फलों और चंदन से सरस्वती पूजा की जाती है। सरस्वती को अच्छे व्यवहार, बुद्धिमत्ता, आकर्षक व्यक्तित्व, संगीत का प्रतीक भी माना जाता है।इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। पीला रंग सूर्य के प्रकाश का पर्याय होने के साथ ही खुशी, उल्लास, समृद्धि और शक्ति का स्रोत भी होता है। यह रंग आदर, सम्मान और ईमानदारी का प्रतीक भी माना जाता है।
बसंत का अर्थ :
बसंत पंचमी का अर्थ है- शुक्ल पक्ष का पाँचवां दिन अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार यह पर्व जनवरी-फ़रवरी तथा हिन्दू तिथि के अनुसार माघ के महीने में मनाया जाता है।बसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच-तत्त्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं।
शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर मांजर (बौर) आ जाता और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। भर-भर भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं।
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण−कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु−पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। सरस्वती देवी के इसी रूप एवं सौंदर्य का एक प्रसंग मत्स्यपुराण में भी आया है, जो लोकपूजित पितामह ब्रह्मा के चतुर्मुख होने का कारण भी दर्शाता है। जब ब्रह्मा जी ने जगत की सृष्टि करने की इच्छा से हृदय में सावित्री का ध्यान करके तप प्रारंभ किया, उस समय उनका निष्पाप शरीर दो भागों में विभक्त हो गया। इसमें आधा भाग स्त्री और आधा भाग पुरुष रूप हो गया। वह स्त्री सरस्वती, ‘शतरूपा’ नाम से विख्यात हुई। वही सावित्री, गायत्री और ब्रह्माणी भी कही जाती है। इस प्रकार अपने शरीर से उत्पन्न सावित्री को देखकर ब्रह्मा जी मुग्ध हो उठे और यों कहने लगे- “कैसा सौंदर्यशाली रूप है, कैसा मनोहर रूप है”। तदनतर सुंदरी सावित्री ने ब्रह्मा की प्रदक्षिणा की, इसी सावित्री के रूप का अवलोकन करने की इच्छा होने के कारण ब्रह्मा के मुख के दाहिने पार्श्र्व में एक नूतन मुख प्रकट हो गया पुनः विस्मय युक्त एवं फड़कते हुए होठों वाला तीसरा मुख पीछे की ओर उद्भूत हुआ तथा उनके बाईं ओर कामदेव के बाणों से व्यथित एक मुख का आविर्भाव हुआ।
ज्ञान का महापर्व :ब्राह्मण-ग्रंथों के अनुसार वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं। ये ही विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघमास की पंचमी तिथि निर्धारित की गयी है। बसंत पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। अतः वागीश्वरी जयंती व श्रीपंचमी नाम से भी यह तिथि प्रसिद्ध है। ऋग्वेद के 10/125 सूक्त में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन है। माँ सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। कहते हैं जिनकी जिह्वा पर सरस्वती देवी का वास होता है, वे अत्यंत ही विद्वान् व कुशाग्र बुद्धि होते हैं।
अलग अलग अंदाज :देश के विभिन्न क्षेत्रों में बसंत पंचमी का अलग-अलग महत्व है। उप्र और बिहार में महिलाएं सरस्वती की पूजा करती हैं। यहां पर बच्चों को पहली बार लिखना सिखाया जाता है। कलम-दवात की पूजा का चलन भी कई हिस्सों में प्रचलित है। पंजाब और हरियाणा में इसे नई फसल से जोड़कर देखा जाता है। बसंत में सरसों फूलती है और पीले-पीले खेतों की खूबसूरती देखते ही बनती है। यह उत्सव भी धूमधाम और मस्ती से मनाया जाता है। पंजाबी गीतों पर भांगड़ा करते लोग, हंसी की फुहारें, भाभी-देवर की नोकझोंक सब एक नया ही माहौल पैदा करती हैं। यहां पतंगें उड़ाने की भी परंपरा है।
महिलाओं के लिए विशेष :सरस्वती को प्रसन्न रखने के लिए महिलाएं किसी तरह की कमी नहीं रखती हैं। वे पीले वस्त्र धारण करती हैं। माथे पर हल्दी का टीका तथा पीली चूड़ी व पीले फूल का गजरा विशेष होता है। इस दिन सूर्य कुंभ राशि में प्रवेश करता है, इसे मधु मास भी कहते हैं। जगह-जगह अरंडी (बगरंडा) की लकड़ी गाड़ी जाती है और उसी स्थान पर होलिका दहन होता है।
वैज्ञानिक महत्व :
बसंत ऋतु हमें आहार और पहनावे में बदलाव का संकेत देती है। बसंत आते ही शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत होती है। शरीर में हार्मोनों के बदलाव के कारण कामुक इच्छाएं पैदा होती हैं। यही वजह है कि इसे प्रेम और मिलन का मौसम भी कहा जाता है।
बसंतोत्सव व मनोरंजन :
बच्चे व किशोर बसंत पंचमी का बड़ी उत्सुकता से इंतज़ार करते हैं। आखिर, उन्हें पतंग जो उड़ानी है। वे सभी घर की छतों या खुले स्थानों पर एकत्रित होते हैं, और तब शुरू होती है, पतंगबाजी की जंग। कोशिश होती है, प्रतिस्पर्धी की डोर को काटने की। जब पतंग कटती है, तो उसे पकड़ने की होड़ मचती है। इस भागम-भाग में सारा माहौल उत्साहित हो उठता और सब जगह आनन्दमय माहोल नजर आता है।इसलिए इस दिन सरस्वती माता की कृपा दृष्टि प्राप्त करने के लिए हमें सरस्वती पूजन करना चाहिए जिससे हम सभी जीवन में उन्नति की ओर अग्रसर होकर सफलता प्राप्त कर सकें।
डॉ.पवन शर्मा