कवि तुम मुझे जगा देना
अंसतोष बहुत था उसके मन में, सो, वो रो दिया।
जमा हुई भीड़ में उसने, किसी अपने को खो दिया।।
अब तो कोई भी बरगला लेता है, मासूमों को राम के नाम पर।
देखो गौर से अब जमाने में, वश नहीं रहा किसी का काम पर।।
देखो आज फिर आ रही है, उसके घरौंदे से रोने की आवाज।
सुनता नहीं है अब कोई, उस बूढ़ी अम्मा को जरूर बता देना।।
घने सन्नाटे में गर मैं खो जाऊँ तो, कवि तुम मुझे जगा देना।
जब अँधेरा बढ़ने लगे तो, मेरी मज़ार पर चिराग जला देना।।
अधूरे अरमान और नन्हें कंधे
तुमने अपने सभी अधूरे अरमानों को
एक पोटली में भरा और इंतजार किया
फिर कुछ दोनों बाद
एक स्कूल के बस्ते में भरा
और लाद दिया मासूम से
बेफ़िक्र नन्हें कंधों पर
वो कंधे जो अब तक
वाकिफ़ ही नहीं थे के
उनके, अपने, अपनों ने चुपके से
अपने अरमानों का बोझ
उन्हें सौंप दिया है धरोहर स्वरूप
वे बिना कुछ जाने-समझे
तुम्हारी ख्वाहिशों को ढ़ोते रहे हैं
तुम्हारी बचकानी और बेशर्म ख्वाहिशों को
शायद आजीवन
यह अत्याचार तुमने इतनी मोहब्बत से
उनके कंधों पर लादा है के
वो समझ ही नहीं पाते हैं
इसे आजीवन
वे तो तुम्हारे सपनों को
कब अपना मानने लगे
उन्हें पता ही नहीं चला
वे इन सपनों को जीतने का
माद्दा रखने वाले सिकन्दर हैं
वे नन्हें योद्धा आजकल कैद हैं
तुम्हारे सपनों के साथ
तुम्हारे पिंजरे में ही
और जैसे-तैसे जूझ रहे हैं
तकनीक से
समय से और
महामारी से भी
उनकी विवशता का
तुम्हें क्या बोध होगा
जब तुम्हें बोध हुआ ही नहीं कभी
तुम्हारी अपनी पाली हुई
कुछ ख्वाहिशों का ही
जिन्हें पूरा करने में तुम
आजीवन असमर्थ रहे हो
और अब नन्हे कंधों पर चढ़कर
छू लेना चाहते हो, आसमान को
जरा तो शर्म करो, अरे! ओ बेशर्मों
इक नई शुरुआत
थक चुका हूँ सुन कर रोज-रोज हत्या, चोरी और बलात्कार।
आओ आज कोई खूबसूरत-सी बात करें, इक नई शुरुआत करें ।।
प्यार-मोहब्बत की दो बातें तुम करो, दो बातें हम करें ।
आओ आज मिलकर इस धरा पर ही कायनात की बात करें।।
दिलों के विरान कौने में स्नेह का दीपक जलाकर दोस्तों ।
आओ आज फिर मिलकर अंधेरी रातों को चांदनी रात करें ।।
सुन रहा हूँ सदियों से कोलाहल बड़ा है जमाने में।
आओ आज मिलकर शास्त्रीय शांति का हम निर्माण करें।।
दौड़ रहा है आदमी बेहताशा छूने को तरक्की के आसमाँ को।
आओ आज इन मकानों की छतों पर ही तरक्की का संसार घड़ें।।
देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रही हैं कलियां फूलों को अभी तलक।
आओ इन्हें देकर खाद-पानी एक सुंदर-सी बगिया का निर्माण करें।।
© डॉ. मनोज कुमार “मन”