मेरी शादी को एक साल हो गया था। उन दिनों हम लोग पहाड़गंज के कटरा राय जी में रहते
थे और वहां से प्रतिदिन बस के द्वारा में संसद मार्ग अपने कार्यालय ट्रांसपोर्ट भवन जाया
करती थी। एक दिन जब मैं बस में चढ़ी तो मैंने देखा बस में काफी लोग खड़े हुए हैं
और पीछे 2 सीटें बिल्कुल खाली है । मुझे उन सब लोगों पर बहुत हंसी आई , बड़े
नालायक लोग हैं, सीट खाली पड़ी है और उस पर बैठ नहीं रहे । काफी लोग खड़े थे मैं
बड़ी शान दिखाते हुए उस सीट पर जाकर बैठ गई और कुछ लोगों ने मुझे अद्भुत सी
निगाहों से देखा भी । मैं कुछ समझ नहीं पाई और मैं आराम से बैठी रही । जब मैं संसद मार्ग
अपने स्टॉप पर उतर कर जा रही थी तब बस में वहां बैठे कुछ लोगों ने
भी मुझे बड़ी अजीब सी निगाहों से देखा मैं तब भी कुछ नहीं समझ पाई ।
मुझे लगता है हम जीवन में कभी कभी दूसरों की आंखों की भाषा दूसरों के मन की भाषा
समझ नहीं पाते और हम स्वयं को बहुत ही शानदार व्यक्तित्व मानकर भयंकर से भयंकर
भूल कर जाते हैं । उस दिन मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था जब मैं ऑफिस में पहुंची तो
मुझे कुछ साड़ी के नीचे गीला गीला महसूस हुआ मैंने देखा मेरी साड़ी पूरी तरह एक सब्जी
से भरी हुई थी। हो सकता है वहां पर किसी से सुबह के लंच बॉक्स से कोई दाल, कढ़ी
जैसी चीज गिर गई हो या कुछ और भी हो , जो मेरी साड़ी की फाल के साथ लग गई ।
मैं बिना उस सीट को देखें उस पर बैठ गई ,जबकि बाकी लोगों ने वह सीट को देखा होगा ।
अब आज मुझे कितने सालों के बाद यह बात याद आ रही है और मुझे लग रहा है कि
इस बात पर मुझे लिखना चाहिए आपको बताना चाहिए ।अपनी गलती को छुपाकर हम
लोग कई बार फिर गलती कर जाते हैं, अगर हमारी गलती से दूसरा कोई व्यक्ति कुछ सीख
ले सकता है तो हमें उसको बताने में ऐतराज नहीं होना चाहिए और संकोच भी नहीं .
देखिए मैं अपने उस अनुभव को आज आपको बता रही हूं, इतने सारे लोग जबकि खड़े हुए थे
और उस समय मुझे उन पर हंसी आ रही थी कि वे लोग उस सीट पर क्यों नहीं बैठ रहे ,
यह भी हो सकता है कि वह उस समय मुझ पर मन ही मन हंस रहे हो । हो सकता है
जब लोग बैठने गए भी हो तो किसी ने उन्हें बता दिया हो सीट गंदी है ,आप इस पर मत
बैठे, लेकिन जब मेरी बारी आई बताने वाले लोग, शायद मेरे बैठने तक उस बस से उतर चुके
थे।
मुझे किसी ने यह संकेत नहीं दिया कि यह सीट गंदी है और आप इस पर मत बैठिए और
मैंने भी शायद जल्दबाजी में बिना किसी से कुछ पूछे , कुछ बताएं मैं उस पर बैठ गई थी ।
अब समझने की बात यह है कि क्या मैं गलत थी, मुझे समझ नहीं आ रहा कि आज मैं
क्यों सोच रही हूं पर मुझे लगता है कि मुझे यह सोचना चाहिए था कि जब कोई नहीं बैठ
रहा , तो कोई कारण तो होगा। तब मैं 20 साल की थी, जब हम छोटे होते हैं तो हमें हमारी
सोच बिल्कुल अलग तरह की होती है । यह बात मैं लिख रही हूं तो उसका कारण सिर्फ यह
है कि जब कभी ऐसा लगे कि दूसरे लोग कोई ऐसा काम नहीं कर रहे, तो हमें उस पर
विचार करना चाहिए, मुझे भी करना चाहिए था। उसके पीछे के कुछ कारण तलाश करने
चाहिए थे।अपने आप को अधिक समझदार समझना बहुत ही गलत बात होती है यह मुझे
समझ आ गया था। जब मैं बस में बैठी थी और मैं बस से उतरी थी, उस 15 मिनट की
यात्रा में मैं स्वयं को बहुत ही समझदार मान रही थी लेकिन आज सोचती हूं तो मुझे लगता
है कि मैं समझदार नहीं थी, मुझसे गलती हो गई थी। मुझे इस पर विचार करना चाहिए था
कि जब इतने लोग खड़े हैं तो इस सीट पर ना बैठने के कुछ कारण होंगे मैंने वह कारण
तलाश नहीं करें और ना ही उनके बारे में सोचा।
उस दिन फिर वॉशरूम में जाकर मैंने अपनी साड़ी की फाल के नीचे के सारे हिस्से को धोया,
सुखाया और फिर सारा दिन मैं आत्मग्लानि में भटकती रही थी और यही सोचती रही कि बस
में वह सब लोग मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे पर अब तो इतने बरस बीत गए हैं ।
अब इतने साल बाद वह लोग कहां , मैं कहां लेकिन फिर मुझे आज ही बात याद आ गई तो
मुझे लगा कि मैं इसे आपको बता दूं। मेरा मन हो रहा है कि मैं अपने जीवन के ऐसे कुछ
अनुभवों को एक पुस्तक के रूप में लिख दूं ताकि बाद में मेरे पाठक मेरी भूलों, मेरे अनुभवों
से शायद कुछ सीख सकें।