इक तुम्हारे आगमन से
खिली धरा, फैला उजास
सृष्टि के कण कण में दिखता
नित नया ही अब हुलास…..
मन ने भँवर बांध तोड़े
छोड़ बैठा हर प्रवास
नव स्वप्न जीवित हो उठे
दृष्टिगत है अब विभास…..
प्रेम अनुभूति में भी है
नवीन कल्पना का वास
सब धुला व सजा है
ज्यों आयोजन हो ख़ास….
मन की नाव ऐसे चलती
प्रस्तुत हो हर अहसास
नयन पटल पर स्वप्न भी
जागे लेकर नव विश्वास….
अंजू मल्होत्रा