समाज में राजतंत्र के बाद प्रजातंत्र आया। लेकिन प्रजातंत्र के साथ साथ राजतंत्र भी उसी के समानांतर चलता रहा है। लेकिन समाज को यह दिखता नहीं केवल महसूस होता है।यह राजतंत्र राजाओं से भी क्रुर व्यवस्थाओं में पनपा है ,और पनप रहा है।इस राजतंत्र को आज गुंडातंत्र, आतंकवाद,आदि नामों से कहा जाने लगा है। जिसमें जाति,धर्म,पंथ,का भरपूर इस्तेमाल और सहयोग मिलता है।जिसकी खुली छूट उस देश के संविधानों का भी रहता है।अगर हम भारत की बात करें तो हमारा संविधान इतने जटिलताओं से भरा हुआ है कि एक अच्छा खासा वकील को भी माथापच्ची करनी पड़ती है,आम जनमानस को तो पुछिए मत। इतने नियमों से संविधान भरा पड़ा है कि दो चार सौ कत्ल करने वाला,शहर का शहर बमों से उड़ाने वाले को भी संविधान सुरक्षा प्रदान कर जेलों में आवभगत करानी पड़ती है।यह खेल पता नहीं कब तक चलता रहेगा,शायद अंग्रेजों के बनाए गये न्यायालयों के भवनों में जजों के बैठने तक,और तब तक भरकम भारी संविधान के अनुच्छेदों के रहने तक यह बदला राजतंत्र (गुंडा, आतंकवाद) नहीं बदलने वाला है। जिससे आम जनमानस भी बेवजह पक्ष-विपक्ष में डगमगाती है।हम उदाहरण के तौर पर कह सकते हैं कि एक आदमी जो गुंडा, आतंकवादी, असमाजिक तत्व हो,वह अपने धर्म,जाति,मजहब, को प्रभावित करता है जिसके कारण समाज में नफ़रत की दीवार खड़ी होती है ,यह जानते हुए भी कि वह गुंडा, आतंकवादी-न उससे मिल सकता है कभी,न उसके घर आ सकता कभी,न उसके साथ आना जाना हुआ, न उसको व्यक्तिगत लाभ-हानि है,न उसके जीवन में प्रभाव डाल सकता है फिर भी हम उसके प्रति जाति,धर्म के नाम पर पक्षधर हो जाते हैं ।और जो जीवन भर आप के साथ आखिरी घाट तक साथ देने वाले से नफ़रत हो जाती है।
यह जो, जाति धर्म ,का कीड़ा है वह मानव को कभी उच्च शिखर तक पहुंचने में बांधाए डालतीं रहेंगी जब तक अन्याय का साथ देते रहेंगे।
और भारी-भरकम संविधान की पूजा करते रहेंगेऔर समानांतर चल रहे राजतंत्र का पक्षधर बने रहेंगे।
भीम प्रजापति।