मैं कौन हूं माँ?
क्यों मारती है मुझे ?
एक आवाज नहीं चौंका दिया सारा जहां
ताका जो इधर उधर
ना पाया कोई निशा
मैं सहमी सिमटी
अपने अंतर्मन से
हुई मुखातिब
आवाज मेरे मन की थी
हां मेरे भीतर की ही थी
तो कौन बोल रहा है भीतर से
यह चित्कार किसकी है?
मैंने उ दर पर रखा जो हाथ
प्रेम से सिक्त मिला मुझे उसका साथ
मैं रोक ना पाई खुद को
पूछ बैठी
तू कौन है ?
क्यों बुलाती है मुझको मां ?
मुझे नहीं जरूरत तेरी_
क्यों बार-बार लेती है जन्म ?
क्यों बार-बार पुकारती है मां ?
अब की आवाज बदली थी
सिसकी में सिमटी थी
हाथ उदर पर अभी था
कोई हलचल नहीं थी
मैं तेरे आंगन की नन्ही चिड़िया हूँ
आवाज ये मेरे भीतर की थी
मैं दुनिया में आना चाहती हूं
इस जग को बसाना चाहती हूं
नन्हें-नन्हें पैरों से इस धरा को छूना चाहती हूँ
नीले आसमान में उडना चाहती हूं
मैं भी चढ़ना चाहती हूँ पिता के कंधे पर
मैं भी झंगडूगी भाइयों संग
बहनो संग खेलूंगी इसी अंगना में
पर मैं विचलित हूं तेरे गर्भ में
पर मैं तुझ पर बोझ हूँ
तू कैसे कह पाई है
क्या तूने नहीं पाया जन्म अपने पिता घर
क्या तूने नहीं पाई जिंदगानी इसी ज़मीन पर
तू एक स्त्री है ममता की मूरत है
तेरे मस्तक पर चंद्रमा है
तेरी कदमों पर नीर है
सृष्टि बचने में तेरी भी भागीदारी है
है माँ
अगर तू चाहे मुझे पैदा करना
कोई पिता कैसी नकार दें
मैं दोषी सिर्फ तुझे मानती हूं
मुझे मारना छोड़ दें
यह पाप है
अन्याय हैं
मुझे गर्व है कि मैं एक कन्या हूँ
नन्हें नन्हें एक कदम यूं ठिठकते जाएंगे
दबाकर ख्वाइशें बताओ हम किधर जाएंगे
लोग सब ना समझ हैं
मझधार ही उतर जाएंगे
बात अधर्म की
भूर्ण हत्या की है यह
छोटे बच्चे हैं हम
आने से पहले ही सब मर जाएंगे
विषय बहुत गंभीर है उड़ा नहीं उपहास
कन्या बचकर रहेगी है पूरा विश्वास
डाॅ अलका अरोडा
प्रो० – देहरादून