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काले कोट, काले नोट और काले चश्मे वालों का काला षड्यंत्र

पंकज सीबी मिश्रा / राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी

 इंसान को जस्टिस शेखर यादव की तरह स्पष्टवादी होना चाहिए वरना तो कई लोग केवल चुनावी टिकट के लिए काला कोट पहन आतंकियों को आधी रेत बेल दिलवाने के लिए जद्दोजहद करते है और अब जजों को महाभियोग की धमकी दें रहे। खैर जस्टिस शेखर का बयान सुन अचानक से राइट विंग के खपड़ैल नेताओं और उनके वकीलों नें खुद को जज  और जाति प्रमाणपत्र विक्रेताओं ने खुद को कृष्ण का लीगल वारिस घोषित कर जस्टिस साहब को आरएसएस की जाति का बता दिया। बहुमत की इच्छा से देश चलेगा और कठमुल्ले देश के लिए खतरा हैं, ये दो वाक्य बोलकर जस्टिस  शेखर यादव ने सच्चाई की जो उल्टी की है उससे पूरा वामपंथ और बौद्धवाद घबरा गया है। जज साहब नें ऐसा कौन सा अपराध कर दिया जो ओवैसी से लेकर कपिल सिब्बल तक , बीम से लेकर सरिया तक और नेता से लेकर पूरा विपक्षी इको सिस्टम इनके पीछे पड़ गया। राज्य सभा के सांसदों ने इलाहाबाद न्यायालय के न्यायाधीश  शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग चलाने हेतु अभियान छेड़ रखा हैं जबकि ओबीसी शेर दहाड़ रहा । देश संविधान से चलेगा, ओवैसी और राहुल गांधी बार बार यह बात करते पाए गए और संविधान में चुनाव का प्रावधान है, बहुमत  के द्वारा चयनित नेता को संविधान यह शक्ति देता है कि वह अपने विवेक से देश चलाए। इसके लिए यदि संविधान का संशोधन करना हो तो करे। सौ से ज्यादा संशोधन इसलिए किए गए।  सिब्बल और ओवैसी जैसे मुखौटा लगाए लोगो को समझ लेना चाहिए कि देश चलेगा बहुमत से, इस संदर्भ में जस्टिस शेखर ने कुछ भी गलत नहीं कहा। वामपंथी कुछ लोगों की तानाशाही चाहते हैं इसलिए वे शेखर यादव  के उस वक्तव्य का विरोध कर रहे हैं। कठमुल्ला देश के लिए खतरा है वह इस देश में केवल अपनी मर्जी का चलाना चाहता है जो संविधान के विरुद्ध है यह लॉजिक नहीं फैक्ट है । वामपंथी देश को कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो से चलाना चाहते इसलिए ये लोकतंत्र के हर स्तंभ को गिराना चाहते है। आपको बता दूँ कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश शेखर  यादव ने रविवार आठ दिसंबर को विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रम में शिरकत के  दौरान, भाजपा के राजनैतिक एजेंडे और कट्टर हिंदुत्व की सोच को जस्टिफाई कर गए  । जस्टिस यादव का भाषण रविवार से ही सोशल मीडिया के जरिए वायरल हुआ जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार दोपहर को एक बयान जारी कर कहा कि उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के उस भाषण का संज्ञान लिया है, जिसे मीडिया ने प्रकाशित किया है। सुप्रीम कोर्ट ने बयान में कहा- ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट से और विवरण मंगाया गया है और मामला विचाराधीन है।’ वहीं देश के वरिष्ठ वकील, राज्यसभा सांसद और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने कहा है कि उनकी कांग्रेस, सपा, माकपा आदि दलों के कुछ नेताओं से चर्चा हुई है और वे जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी कर रहे हैं। कपिल सिब्बल ने इस मामले में प्रधानमंत्री और सत्तापक्ष का सहयोग मांगा है, साथ ही कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम को देखना चाहिए कि ऐसे लोग जज न बनें तो भाई सिब्बल को ही जज बना दो ! अन्यथा राहुल के लिए जज कि कुर्सी पोछवा दीजिये ना सिब्बल साहब।अदालतों में बैठे सिब्बल जैसे लोग हिन्दुत्व का विरोध कर रहे हैं, यह बात संविधान की मर्यादा, न्यायपालिका की गरिमा और लोकतंत्र के तक़ाज़ों के ख़िलाफ़ क्यों नहीं है, फिलहाल संसद  की साख इतनी बची है कि असंसंदी लोग बैठ जजों के निजी वक्तव्य और विचारों पर ऊँगली उठा रहें और इन लोगों ने वकील जैसे पद पर बने रहते हुए चुनाव लड़ना शुरु नहीं किया अपितु चाटुकारिता कर चुनाव का जुगत लगाया है। हालांकि मोदी सरकार चाहेगी तो संविधान में संशोधन कर इसे भी मुमकिन करा देगी कि कोई वकील आगे सांसद ना बने क्युकी यह संसद और न्यायपालिका के आदर्शो में असमानता लाता है।

                   हाल फिलहाल सिब्बल, सिंघवी इत्यादि के इन प्रसंगों के अलावा कई और ऐसे प्रकरण दर्ज हैं, जिनमें  न्यायपालिका में भी ऑक्टोपस की तरह वामी,  हिंदुत्व की भुजाएं काटने पर आमादा है और दसों दिशाओं से नफरत बढ़ चुकी हैं। सत्ता और प्रशासन में बैठे लोगों से देश की उम्मीदें चुकती जा रही थीं, क्योंकि यहां से जो फ़ैसले लिए जा रहे हैं उनका विरोध सदन में बैठे कठमुल्ले कर रहें। आधुनिक व्यवस्था में शक्तिसंपन्न दलितों और पिछडो को लाभ पर लाभ मिल रहा।  सवर्ण तबकों को तवज्जो नहीं मिलती दिख रही  है। जो गरीब हैं, वर्ण व्यवस्था में निचले क्रम पर हैं, या अल्पसंख्यक हैं, उनके हित के लिए कुछ योजनाएं चलाई जाती हैं जिसका उपभोग भी शक्तिसम्पन दलित कर रहें , ताकि वे उसी में खुश न रहें और सरकार के खिलाफ सड़को पर उतरें । अन्याय के इस माहौल में केवल अदालत से लोगों की उम्मीदें बंधी है। यहां चाहे जितनी देर लगे लेकिन जाति, धर्म, धन, लिंग सबके भेद से परे उठकर इंसाफ़ हासिल होता है । जस्टिस शेखर कुमार यादव के भाषण से उस उम्मीद का संचार  हुआ है। गौरतलब है कि विश्व हिन्दू परिषद के विधि प्रकोष्ठ (लीगल सेल) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के लाइब्रेरी हॉल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इसमें जस्टिस शेखर यादव के अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक और मौजूदा जज जस्टिस दिनेश पाठक भी शामिल हुए थे। कार्यक्रम में ‘वक्फ़ बोर्ड अधिनियम’, ‘धर्मान्तरण-कारण एवं निवारण’ और ‘समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता’ जैसे विषयों पर चर्चा हुई, जिससे समझ आता है कि इस आयोजन का मक़सद क्या था। जस्टिस शेखर यादव ने ‘समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता’ विषय पर बोलते हुए कहा कि देश एक है, संविधान एक है तो क़ानून एक क्यों नहीं है?जस्टिस यादव ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की आलोचना करते हुए कहा कि हमें किसी का कष्ट देखकर कष्ट होता है, लेकिन आपके यहां ऐसा नहीं होता है। उन्होंने कहा हिंदुस्तान  में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेगा। यही क़ानून है। आप यह भी नहीं कह सकते कि हाईकोर्ट के जज होकर ऐसा बोल रहे हैं। क़ानून तो भैय्या बहुसंख्यक से ही चलता है। परिवार में भी देखिए, समाज में भी देखिए। जहां पर अधिक लोग होते हैं, जो कहते हैं उसी को माना जाता है।’ इसके अलावा सांप्रदायिक नफ़रतियों को चिढ़ाते हुए  शब्द कठमुल्ला का इस्तेमाल करते हुए जस्टिस शेखर यादव ने ये भी कहा कि ‘कठमुल्ले’ देश के लिए घातक हैं। ‘जो कठमुल्ला हैं, ‘शब्द’ ग़लत है लेकिन कहने में गुरेज़ नहीं है, क्योंकि वो देश के लिए घातक हैं। जनता को बहकाने वाले लोग हैं, देश आगे न बढ़े इस प्रकार के लोग हैं, उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है। उधर इससे बौखलाये कपिल सिब्बल नें कहा जिस तरह से भाजपा और संघ के राजनैतिक एजेंडे को जस्टिस यादव ने आगे बढ़ाया है, उसकी जितनी निंदा की जाए, वो कम है। देश में इस भाषण की काफ़ी चर्चा हो रही है और न्यायपालिका से जुड़े कई लोग इस पर चिंता भी जतला रहे हैं। लेकिन अब वक़्त आ गया है कि चिंता जताने से आगे बढ़कर ऐसे अलोकतांत्रिक, सांप्रदायिक और संकुचित विचार रखने वाले न्यायाधीशों पर सीधी कार्रवाई हो, वर्ना न्यायपालिका की साख तो इसमें ख़त्म होगी ही, लोकतंत्र को ज़िंदा रखना भी मुश्किल हो जायेगा। शेखर यादव  जैसे न्यायाधीश इन्हें सूट नहीं करते बल्कि  अतुल सुभाष को आत्म हत्या के लिए उकसाने वाली न्यायाधीश उनके खांचे में फिट बैठती है। मास्क मैनिफेस्टो में वामपंथियों की चाल, तरीके, मुखौटे उजागर किए गए हैं, पढ़िए और समझिए। साथ ही समर्थन करिए अपने नायकों का, अपनी वाल से शेखर यादव  के पक्ष में आवाज उठाइए।

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