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भारतीय शिक्षण मंडल, काशी‌प्रांत और वाणिज्य संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला ‘शोध आनंदशाला’ : ‘फन्डामेंटल आफ सोशल साइंसेज रिसर्च’ का आयोजन।

कई विषयों के शोधार्थियों को मिला मार्गदर्शन

वाराणसी, स्थानीय संवाददाता, 23 जुलाई

 “जिज्ञासा ही शोध का मूल है। यह जिज्ञासा किसी सैद्धांतिक प्रश्न से उत्पन्न हो सकती है तो कभी कल्पनाशक्ति एवं व्यावहारिक जीवन की समस्याओं से पैदा हो सकती है। शोध पूर्वज्ञान की सीमाओं को रेखांकित करते हुए अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करता है।” ये बातें कहीं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने। उन्होंने शोधार्थियों के लिए भारतीय शिक्षण मंडल, काशी प्रांत एवं वाणिज्य संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में मुख्य वक्ता‌के रूप में अपना आनलाइन व्याख्यान दिया। आगे‌उन्होंने कहा कि शोध का परिणाम ऐसा होना चाहिए, जो आपकी समस्या अथवा‌प्रश्न का हल करता हो।

विशिष्ट अतिथि प्रो. राजीव उपाध्याय ने‌कहा‌कि शोध एक सतत प्रक्रिया है, जिससे हम सीखने से लेकर‌दृष्टि प्राप्त करने तक स्थिति तक पहुंचते हैं।

भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय सह प्रचार‌प्रमुख डॉ. अनिल कुमार सिंह ने अनुसंधान से पुनरुत्थान की बात कही। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 गुणवत्तायुक्त शोध को बढ़ावा देती है। इसे सही दिशा देने का कार्य युवाओं के कंधे पर है।

भारतीय शिक्षण मंडल के युवा गतिविधि प्रमुख डॉ. अमित रावत ने महामना की उदारता को प्रणाम करते हुए उन्हें याद किया। उन्होंने कहा कि एक संवेदनशील युवा ही सृजन कर सकता है। शिक्षा अनुभूतिपरक हो, यह आवश्यक है। विकसित भारत की मंगलमयी यात्रा में अपना योगदान करते हुए युवा भारतीय शिक्षण मंडल द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रतिभाग करें। उन्होंने कहा कि ‘तपोमूलं ही साधनम्’, इस तरह शोधकार्य भी तप‌की तरह है।

इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय, छपरा‌के पूर्व कुलपति एवं शिक्षाविद् प्रो. हरिकेश सिंह ने कहा कि हमारे शरीर के 5 कर्मेंद्रियों और 5 ज्ञानेंद्रियों का नियंत्रण करना आवश्यक होता है। यदि इन दसों पर नियंत्रण एवं समन्वय रहा तो व्यक्ति दशरथ बनता है और राम उत्पन्न होते हैं, जबकि नियंत्रण के अभाव में दशानन पैदा लेता है। इन इंद्रियों के साधने पर हम‌अपने शोध निष्कर्ष पर भी आसानी से पहुंच सकते हैं। ‘श्रीदुर्गासप्तशती’ के कुछ मंत्रों को उद्धृत करते हुए उन्होंने बताया कि एक शोधार्थी को शोध तत्त्वों के गहरे अर्थ को समझना होगा।

इस आयोजन के अध्यक्ष एवं वाणिज्य संकाय के डीन प्रो. हरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि धैर्य, कठिन संघर्ष और समर्पण से हम किसी शोध को पूर्ण कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि शोध के लिए यह आवश्यक है कि हमारे भीतर से अच्छे‌विचारों की उत्पत्ति और अभिव्यक्ति हो। हमारी‌खोज में सामाजिक उपादेयता हो।

कार्यशाला के‌प्रारंभ में स्वागत उद्बोधन भारतीय शिक्षण मंडल, काशी प्रांत के मंत्री डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने दिया।‌कार्यक्रम का संचालन वाणिज्य संकाय की प्राध्यापिका डॉ. मीनाक्षी ए. सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. लाल‌बाबू जायसवाल ने किया। ध्येय श्लोक विकास मीणा, ध्येय वाक्य सचिन तिवारी  और कल्याण मंत्र का पाठ अनुज कुमार सिंह ने किया ।  इस कार्यशाला में भारतीय शिक्षण मंडल के काशी प्रांत सह मंत्री सचिन सिंह, प्रांत युवा गतिविधि सह प्रमुख अभिजीत सिंह, प्रांत विस्तारक अशोक विश्नोई और अन्य भारतीय शिक्षण मंडल के कार्यकर्ताओं के साथ ही  कला, वाणिज्य एवं सामाजिक विज्ञान संकाय के 120 से अधिक शोधार्थियों भौतिक उपस्थिति रही और लगभग 40 से अधिक शोधार्थी  संजाल माध्यम से जुड़े ।

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