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लघुकथा – मैसेज (डॉ. कल्पना पांडेय ‘नवग्रह’)

बच्चे का दाखिला अच्छे कॉलेज में हो गया था। हाँ, उसकी मेहनत रंग लाई थी। उम्मीदों अरमानों के साथ हॉस्टल में व्यवस्था करा, माता-पिता।अश्रुपूरित आँखों से संबंधों-रिश्तों की मिठास भरे घर लौट आए। रीमा! कितना खाली-खाली लग रहा है। बच्चों की शरारत,उछल-कूद बड़ी याद आ रही। सच कहते हो, यहाँ उसके रहने से कुछ तो ऐसा था जो अब कमी का एहसास करा रहा है।आजकल आस-पास का माहौल बड़ा बदल गया है। कहाँ कोई एक दूसरे को पूछता है। चलो,बच्चों से फ़ोन पर बात कर लेंगे।अरे! वीडियो कॉल का शुक्रिया, रोज़ बच्चों से मुलाकात तो हो ही जाएगी। एक लंबी साँस लेती रीमा ने अपनी बात पूरी की और फिर दोनों अपनी-अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए।

 अरे,रीमा! अंशु का फ़ोन तो नहीं आया? शायद व्यस्त होगा,अभी नए माहौल में। एडजस्ट होने में परेशान होगा।आप नाहक परेशान मत होइए,आ जाएगा फ़ोन। पर हरीश के मन में बड़ी बेचैनी थी। बच्चों पर जान छिड़कते थे।दोस्त जैसा प्यार करने वाले पिता का मन अंदर से बहुत ही परेशान था। इसी तरह दो दिन बीतने पर भी जब अंशु का फ़ोन नहीं आया तो हरीश ने घंटी झनझना ही दी। घंटी बजी पर कोई जवाब नहीं मिला।अरे,आप झूठे परेशान हैं,बच्चे हैं भूल जाते हैं। फ़ोन छोड़कर कहीं चला गया होगा।किसी काम में लग गया होगा।आप भी किसी बात के पीछे पड़ जाते हैं तो बस।हरीश को रीमा की बातें हजम नहीं हो रही थीं। मन में उथल-पुथल मची थी।आज कल के बच्चे कितने लापरवाह होते जा रहे हैं।इतना कह हरीश अपनी रोज़मर्रा के काम में फिर से व्यस्त हो गए।

अचानक से रात को ग्यारह बजे मैसेज देखा। सॉरी पापा,बहुत व्यस्त था इसलिए फोन नहीं कर पाया।अब बहुत थक गया हूँ,कल बात करूँगा। गुड नाइट। हरीश मैसेज पढ के, मोह में बँधे, अतीत की मीठी भावनाओं के साथ गोते लगाने लगे।छोटा था अचानक से बड़ा हो गया। ज़िम्मेदार लग रहा है।कॉलेज जाते ही बड़ा व्यस्त  हो गया शायद। पढ़ाई के कारण समय नहीं मिल पा रहा है। चलो ये संस्कार ही हैं कम से कम उसने मैसेज तो लिखा। रीमा सर से बड़ा बोझ उतर गया। बड़ा हल्का महसूस हो रहा है। चलो सो जाते है।

उधर अंशु से दोस्त  कह रहा है, “मैसेज डाल दिया न”! हाँ यार! जनता तो है, आजकल के पेरेंट्स को।कुछ बताओ तो दस सवाल पूछेंगे। फिर लगेंगे वैल्यू सिखाने। पता नहीं हम लोगों को समझते क्यों नहीं?अच्छा छोड़ बता कहाँ पार्टी कर रहे हैं ये सब। सुन पूरी रात भर मज़े करेंगे,कल तो शनिवार है, देर से उठेंगे, ठीक है। रिश्तों में बाजारीकरण के इस रूप से अनजान हरीश और रीमा सुंदर भावुक अहसासों से भरे प्यार की सारी दौलत बच्चों को आशीर्वाद के रूप में भेज रहे थे।

डॉ. कल्पना पांडेय ‘नवग्रह’

 नोएडा

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