भारत वर्ष प्राचीन काल से ही ऋषि-महात्माओं, साधु-संतों, विचारकों और दार्शनिकों का उद्गम व संपोषण स्थल रहा है। नालंदा व तक्षशिला के विश्वविद्यालय इस उक्ति के प्रमाण हैं कि हम भारतीय संस्कृति के साथ ही वैश्विक विचारधाराओं को भी समाहित करने में सक्षम रहे हैं। भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन की इस समृद्ध परंपरा में एक नाम आता है नरेंद्र दत्त का जो आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। स्वामी विवेकानंद की 160वीं जयंती के अवसर पर उन्हें याद करना हमारा परम सौभाग्य है। 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी जी युवाओं के लिए सदैव प्रेरणा स्त्रोत रहेंगे। उन्होंने अपने लघु जीवन काल में विश्व को जो संदेश दिया वह चिरंजीवी है, शाश्वत है।
19 वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में भारत को एक महान, कर्मठ, विचारक और आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत महा मनीषी स्वामी विवेकानंद जी के आविर्भाव का सुयोग प्राप्त हुआ। उन दिनों भारत पर अंग्रेजों की हुकूमत थी। पराधीनता, संस्कृति के विनाश का संकट लाती है। भारतीय जनमानस भी एक ऊहापोह के दौर से गुजर रहा था। भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व ही विखंडन की त्रासदी झेल रहा था। ऐसे कालखंड में जब शिकागो धर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने संबोधित किया – अमेरिका में रहने वाले मेरे भाइयों और बहनों, तो पूरा जनसमुदाय आत्मीयता के आनंद में सराबोर हो गया। लोगों ने भारतीय सर्वभौमिकता के सिद्धांत पर आधारित स्वामी जी के प्रवचन को सुना सराहा और भारतीय दर्शन की व्यापकता को अंगीकृत किया और आत्मसात भी।
स्वामी जी ने कर्मयोग की अवधारणा को पुनर्स्थापित करते हुए उद्घोष किया “उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए’’। यूँ तो यह उद्घोष समस्त मानव जाति के लिए मूल मंत्र है लेकिन युवाओं के लिए खास है और उनमें लक्ष्य प्राप्ति के लिए नवीन ऊर्जा का संचार करता है। आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, नैतिक और राजनीतिक विकास, के निमित हमारे जीवन में “विजन” और “मिशन” स्पष्ट होना आवश्यक है। स्वामी जी का मानना था कि नैतिक पवित्रता और त्यागमय जीवन रूपी सदगुण ही युवाओं को पीड़ित मानवता के उत्थान और जागरण के लिए प्रेरित कर सकते हैं । स्वामी जी को युवा वर्ग पर पूर्ण विश्वास था उनका मानना था कि युवा वर्ग में ही वो सामर्थ्य है, जो भारत को उन्नति के शिखर पर पहुंचा सकता है। वास्तव में, हमें स्वामी जी की शिक्षाओं पर मनन, चिंतन करते हुए भारत के विकास में अपना शत-प्रतिशत सहयोग देने का संकल्प और दृढ़ कर लेना चाहिए।
भारत में आज विश्व की सबसे बड़ी आबादी रहती है। इस जनसंख्या के जीवन स्तर में गुणात्मक परिवर्तन लाना अत्यंत अनिवार्य है। इस कार्य को स्वामी के विचारों के माध्यम से सही दिशा दी जा सकती है। और उनके दिखाए मार्ग पर चलकर पथभ्रष्ट होने के संभावनाओं को समाप्त प्राय किया जा सकता है।
स्वामी जी के ये शब्द मानवता का सबसे बड़ा दस्तावेज है उन्होंने कहा था कि, “मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात़् मंदिर है। इसलिए साक्षात् देवता की पूजा करो।” 21 वीं सदी में जिसका चहुँ ओर अकाल-सा दिखाई पड़ता है। दिन-प्रतिदिन मनुष्य अति भौतिकता वादी होता जा रहा है और मानवता बहुत पिछड़ती जा रही है। यदि यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा तो एक दिन इस धरती पर भोग की सभी वस्तुएं होंगी पर कोई उपभोग करना वाला नहीं होगा। युवाओं समय रहते चेत जाते की अत्यंत आवश्यकता है।
– डॉ. मनोज कुमार
सम्प्रति -उप प्रबंधक (राजभाषा) एवं
सदस्य सचिव (नराकास का.-2), नागपुर
वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड नागपुर