कुणाल के दोस्त का जन्मदिन था। वह सुबह से ही पापा के पीछे लगा हुआ था क्योंकि दोस्त के जन्मदिन में जाने के लिए अच्छा सा गिफ्ट भी तो चाहिए था ना।
पापा उसे बाजार ले गए और एक साधारण सा गिफ्ट उसे दिलवा दिया। कुणाल को अच्छा नहीं लगा।
इधर उसने देखा,पापा खूब सारी शॉपिंग कर रहे हैं। जिसमें कुछ किताबें,कॉपियां, स्कूल बैग और कुछ खिलौने भी थे। उससे रहा नहीं गया। उसने पापा से पूछा,”पापा ने बताया कि उनके यहां जो अंकल काम करते हैं आज उनकी बेटे का भी जन्मदिन है। उसी के लिए वह यह सामान खरीद रहे हैं।”
कुणाल को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी पापा की यह बात। उसके दोस्त के जन्मदिन पर साधारण सा गिफ्ट। जो उसे देने में भी शर्म आएगी। वहीं कर्मचारियों के बेटे के लिए इतने पैसे खर्च करना क्या उचित है?
मुंह फुला कर कुणाल घर में घुसता है और दादी से शिकायत करता है। तब दादी पोते को समझाकर कहती है। बेटा तेरे दोस्त के लिए तो बहुत लोग गिफ्ट लाएंगे। जिनकी वह कदर भी नहीं करेगा। सब इधर-उधर डाल दिए जाएंगे।
वहीं कर्मचारियों के बेटे के लिए दिया गया सामान उसके जीवन में रोशनी लाएगा। किताबों के माध्यम से वह पढ़ पाएगा। कुछ खेलकूद भी लेगा और साथ ही साथ तुझे भी तो दुआएं मिलेंगी उसके परिवार की।
अब कुणाल को समझ में आ गया फर्क और अहमियत। हमें उन चीजों को ज्यादा अहमियत देनी चाहिए जिनको हमारी जरूरत हो। संस्कारों का विकास आखिर घर से ही तो होता है।
प्राची अगवाल
खुर्जा बुलंदशहर