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ग्रन्थ का लोकार्पण : ‘अष्टछाप कवियों के विवेचक आचार्य भगवतीप्रसाद देवपुरा’

साहित्य मंडल संस्था श्रीनाथद्वारा के तत्वावधान में ‘हिन्दी लाओ : देश बचाओ’ अखिल भारतीय
स्तर पर आयोजित भव्य समारोह में अष्टछाप कवियों के विवेचक:आचार्य भगवतीप्रसाद देवपुरा
ग्रन्थ का लोकार्पण किया गया।इस ग्रन्थके यशस्वी लेखक सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.राहुल हैं।
समारोह के अध्यक्ष विश्वविख्यात साहित्यकार डॉ.अमर सिंह वधान एवं मुख्य अतिथि श्रीयुत्
विनय गोस्वामीमहामण्डलेश्वर,कोटा थे। प्रो.खेम सिंह उहेरिया,कुलपति, अटलबिहारी वाजपेयी
विश्वविद्यालय, भोपाल ,पं. मदनमोहन शर्मा, डॉ. रामनिवास मानव,डॉ.जंगबहादुर पांडेय की गरिमा-
मयी उपस्थिति विशेष प्रशंसनीय रही। पं.मदन मोहन शर्मा ने बाबू देवपुरा जी की स्मृतियों को
साझा करते हुए उनके विराट विथायनी व्यक्तित्व प्रकाश डाला। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि,
विद्वान लेखक डॉ.राहुल ने आचार्य (डॉ.) भगवती प्रसाद देवपुरा जी द्वारा प्रणीत और सम्पादित
पुस्तकों का बहुत बारीक विवेचन प्रस्तुत किया है।

वस्तुतः डॉ. भगवतीप्रसाद देवपुरा की साहित्यिक प्रतिभा का एक जबरदस्त पहलू उनकी विलक्षण
विवेचन अंर विश्लेषण शक्ति है। उन्होंने साहित्य-सृजन की अपनी लेखन-यात्रा शुरू कर आध्यात्मिक-दार्शनिक चिन्तनको एकनया आयाम दिया।
उनकी वैश्विक लोकप्रियता का आधार पुष्टमार्गीय अष्टछाप कवियों पर अबतक का सबसे महत्वपूर्ण
कार्य आठ खण्डों में प्रकाशित उनके ग्रन्थ हैं। जिनमें श्रीकृष्ण के बाल-चरित्र,लीला-वर्णन से रूप-
सौन्दर्य तक का विस्तृत चित्रण किया गया है। उनकी विवेचन-शक्ति अंदाज-ए-बयां है। उनके शब्दों में
ताजगी तथा भाषा में सरलता एवं बोधगम्यता है।

सूरसागर-ग्रन्थ (दो भागों में) देवपुरा जी का सबसे महत्वपूर्ण भाष्य(टीका) कार्य है। प्रत्यक्ष खण्ड लगभग 2000 पृष्ठों में विवेचित है। सूरदास की इस टीका ग्रन्थ को हिन्दी-साहित्य का सबसे बड़ा एवं
महत्वपूर्ण भाष्य माना गया है।

लोकार्पण समारोह में अपने विचार व्यक्त करते हुए डा.वधान ने कहा कि, यह पुस्तक डी. लिट् उपाधि
की मान्यता रखती है। अन्य विद्वान वक्ताओं ने अपने उद्बोधन में आलोच्य ग्रन्थ की महत्ता एवं
उपादेयता पर गहन प्रकाश डाला और खूबियों को उद्घाटित किया। डॉ.जंगबहादुर पाण्डेय ने कहा कि
आचार्य भगवतीप्रसाद देवपुरा के विवेचक में शिल्प-कला कावैशिष्ट्य विद्यमान है,जिसकी ओर डॉ.राहुल
ने सूक्ष्म संकेत करते हुए अपनी मौलिक उद्भावनाएं प्रस्तुत की हैं।इसी क्रम में प्रो.खेमसिंह ने इसग्रन्थ को
अष्टछाप पुष्टिमार्गीय कवियों के पाठकों/शोधार्थियों के विशेष उपयोगी बताया। देवपुरा जी के सभी ग्रन्थ
साहित्य मंडल पुस्तकालय में एक धरोहर के रूप में विद्यमान हैं। इस दृष्टि से डॉ.राहुल का यह महान
कार्य सभी को एक नयी दिशा देगा।

देवपुरा जी के यशस्वी एवं कर्मठ सुपुत्र श्यामप्रकाश देवपुरा ने डॉ.राहुल के इस मननीय प्रयास की भूरि-
भूरि प्रशंसा की और सभी मंचस्थ विद्वानों के प्रति आभार डॉ.राहुल ने व्यक्त किया।
प्रस्तुति : हरीलाल मिलन


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