सम्पादकीय (मनमोहन शर्मा ‘शरण’)
आप सभी को नव वर्ष 2020 की हार्दिक शुभकामनाएँ । प्रभु आपको सुख, शांति, समृधि, वैभव प्रदान करे, ऐसी मैं प्रार्थना करता हूँ ।
बात अपने देश भारत की करते हैं, वर्ष 2019 में जो हुआ, वो हो चुका अब हमें 2020 में 20–20 का मैच बनाने यआमने–सामनेद्ध के बजाए 2020 मिलकर, खेलना और सद्भावपूर्ण रहना है ।
साहित्यकार समाज को आइना/दर्पण ही दिखाता आया है । जो स्वयं देखता/अनुभव करता है, वही उसके मन–मस्तिष्क के मार्ग से होकर कलम के माध्यम से कागज पर उतर जाता है । दर्पण में वास्तविकता होती है कि क्या हो रहा है, क्या होना चाहिए । यदि कुछ गलत भी हो रहा है तो उसे कैसे सुधरा जा सकता है यह सब मंथन प्रस्तुत करते हैं । कोई माने या न माने यह तुम्हारी मर्जी है ।
यदि भारत की बात करते हैं तो पहले उसके जड़ों में क्या है, क्या था उसकी बात करनी चाहिए । सर्वे भवन्तु सुखिन:, वसुधैव कुटुम्बकम, जो पूरा विश्व मानव जाति का परिवार है, यह हमारी मान्यता रही है । गीतकारों ने तो क्या–क्या लिख दिया जो 7–8 दशकों बाद भी अमर है, अमर रहेगा ।
गीत के बोल हैं–––––––‘‘है रीत जहां की प्रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं, भारत का रहने वाला हूं भारत की बात सुनाता हूं ।’’ क्या आज कोई यह बात सोचकर ऐसा गीत लिखने का प्रयास करेगा और यदि करता है तो उस गीत में बोल होंगे, प्राण नहीं होंगे ।
वैसे तो भारत स्वयं जनसंख्या विस्फोट की समस्या से ग्रसित है/जूझ रहा है उस पर हम बाहें फैलाकर नागरिकता सौहार्दपूर्ण तरीके से प्रदान करने की बात करते हैं तो वहां मानक जाति न होकर आचरण – व्यवहार – चरित्र् होना चाहिए ।––––– जय हिंद! जय भारत!