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धंधा है सब : मुर्ख को गद्दी और चालाक को हड्डी

पंकज सीबी मिश्रा / राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी

जीवन में अंतस आनंद के निमित्त दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए प्रथम  के कण को और द्वितीय आनंद के क्षण को। यथावादी कहते है आधुनिक समय में प्रेमत्व का कोई मोल नहीं अपितु अपनत्व के मॉल ही मॉल है जहाँ पैसे खर्च कीजिये आपके हजार अपने मिलेंगे। मूर्खो को सिंहासन देने की परम्परा रही है और उनमें एक अवगुण यह कि मुर्ख सदा सत्ता का प्रयोग दूसरों को निचा दिखाने में करते है। मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी चमचा जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है। आपको वो कहानी तो याद होगी ज़ब एक यात्रा के समय महाकवि कालिदास बहुत प्यासे होने पर एक कुँवे पर गये और वहाँ पर पानी भर रही स्त्री से पानी माँगा  :-

कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा

स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।

मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।

कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।

कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं। पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?

अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश  हो ही चुके थे इसलिए अब कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।

स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?

कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले  :- मैं हठी हूँ ।

स्त्री बोली :- फिर असत्य ! हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?

पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके कालिदास ने कहा :- फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।

स्त्री ने कहा :- नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।

मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी चमचा जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।

कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे। स्त्री  ने कहा :- उठो वत्स ! आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए। माता ने कहा :- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा। कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े। इसलिए विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है। योग्यता पर सदैव घमंड करें क्यूंकि आपको योग्यता आपके मेहनत के परिणाम स्वरूप मिली है। नेताओं के पास ना योग्यता है ना विद्वता फिर भी वो हम पर शासन करते है और वो खुद को अहं ब्रह्माश्मि भी मानते है तो का चुप साधि रहा बलवाना ! उठो जागो और चल पड़ो उस उजाले की ओर जहाँ कोई यह नहीं कहे का हो गुरु केहर चल देहला ! जवाब में उसे वो बात मिले की चालाक को हड्डी और नेता को गद्दी एक बराबर।

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