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केवल चुनावी राज्यों में ही बगरो बसंत है

कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

कसम से भैया बसंत आ गयो है । अब हमें कहां बसंत नजर आता है बसंत तो अपनी पूरी बयार उत्तरप्रदेश के गलियों मं बिखेर रहा है । कईयों के चेहरे पीले हो गए हैं और कईयों के घरों के पक्के आंगन में वोट मांगने वाले वैसे ही जमा दिखाई दे रहे हैं जैसे पतझड़ में पेड़ों से पत्ते गिर कर आंगन में जमा हो जाते हैं । चुनावी राज्यों के गलियों में बिखरो बसंत हैं । नेता एक दल से निकलकर दूसरे दल में शामिल हो रहे हैं और माथे पर शिकन लिए ओठों पर मुस्कान बिखेर रहे हैं । मतदाता इस साल अपने शहर में बिखरे इस बसंत मं ख्ुशियों तलाश रहे हैं । मतदाता के लिए चुनावों का यह कुभ आंनद लेने का समय होता है । वे आंनद ले रहे हैं, वे वायदों की लालीपाप चूसते हुए मजा ले रहे हैं । वे लालीपाप का मतलब जानने लगे हैं । नेता सब कुछ भूलकर हर चीज निःशुल्क दे देने पर आमादा हैं । वे ‘‘फिरी’’ की चासनी बांटकर वोट पा लेने के गणित में उलझ चुके हैं । चुनाव जीतने का यह सबसे सरल तरीका है । अब बात विकास की कहां होती है अब बात सड़के बना देने की नालियां बना देने की कहां होती है अब तो बात केवल यह होती है कि क्या-क्या मुफ्त में बांट दें तो मतदाता उन्हें वोट दे देगा । वे अवतल दर्पण लेकर खोजबीन करते हैं कि अब और क्या रह गया है जिसे मुफ्त में दिया जा सकता है । वे खोज लेते हैं और घोषणा कर देते हैं । मतदाता इस घोषणा में अपना भविष्य तलाशता है । मतदाताओं को मुफ्त की लत लगा दी गई है । वह अब पांच साल प्रतीक्षा करता है और मुफ्में क्या-क्या मिलने वाला है उसका विशलेषण करता है । नेता चुनाव की इस बदली हुई तस्वीर को समझने लगे हैं । उनके लिए अब इससे अधिक मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं है । चुनावी साल सौगात लेकर आती है । इस साल का बसंत भी उनके लिए सौगात लेकर आया चुका है । कोई बिजली मुफ्त करने की बात कर रहा है तो कोई मासिक रूप्ए दे देने की बात कर रहा है । आराम से बैठो हमें आपको बैठकर खिला देगें । हो सकता है कि अगली बार वे मुंह तक हाथ ले जाने की कवायद से भी निजात दिला दें । इन सबमें मध्यमवर्गीय परिवार परेशान है । उसके लिए कोई योजना नही है । उसे तो केवल टैक्स देना है ताकि उसके टैक्स से वसूली गई राशि से नेताओं की ‘‘मुफ्त’’ वाली योजनाओं की पूर्ति हो सके । उसके विकास में क्रीमी लेयर बाधा बन रही है । कोई भी राजनीतिक दल उनके बारे में कुछ नहीं सोचता है । ह फिर भी वोट देता है । यह उसकी जिम्मेदारी है, वोट दो, टैक्स दो और अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारो । उसके लिए बसंत के आने का कोई मतलब नहीं है । वह पीले वसन पहनकर  आंनद की बयार की केवल राह देखता रहता है और अनंदी बयार दूसरे घरों से होती हुई निकल जाती है । नेताओं के आंगन में तो बासंती बयार बगैर बसंत के आए भी बहती रहती है पर आम मतदाता के आंगन अब सूने रहने लगे हैं । उन्हें तो पता ही नहीं चलता कि बसंत आ गया है वो तो केवल कैलेण्डर की तारीख् से पता करते हैं कि बसंत आ गया है । चुनाव वाले राज्यों में बसंत बिखर रहा है । पंजाब के खेतों में भले ही सरसों का पीलापन पीली ओढ़ी का रूप् ले चुका हो पर नेताओं के चेहरे पर अभी भय और उत्सुकता का नजारा है । मुख्यमंत्री के रिश्तेदारों पर ईडी के छापों ने चेहरे को पीला कर दिया है और वोट पाने की लालसा ने उन्हें सड़कों पर घूमने को मजबूर कर दिया है । पंजाब में भी नेताओं का अंतरात्मा की आवाज में दल बदलने का क्रम चल रहा है पर उतना तेज नहीं जितना उत्तर प्रदेश में है । उत्तरप्रदेश में तो हर सुबह की प्रमुख न्यज यह ही होती है कि फलां नेता ने फला पार्टी ज्वाइन की । पंजाब शांत है और नेता घर-घर घूम रहे है ‘‘दे दाता के नाम’’ । उनके लिए पांच सालों के लिए सत्ता की कुर्सी आवश्यक है । कांग्रेस सत्ता में है तो उनके माथे पर तनाव ज्यादा है उनके लिए अभी न तो बसंत के कोई मायने हैं और न ही होली के । आप पार्टी बसंत के सबसे अधिक मजे ले रही है । वे इस तरह का प्रहसन करने लगे हैं मानो कि वे सत्ता पर काबिज होने ही वाले हैं । आम मतदाताओं से राय लेकर मुख्यमंत्री पद के दावेदार के चयन का प्रहसन किया गया और पीली पगड़ी वाले भगवंत मान को मुख्यमंत्री बनाने का वायदा कर दिया । मुफ्त वाली राजनीति अरविन्द केजरीवाल ने शुरू की । बिजली से लेकर महिलओं को रूप्ए देने का वायदा तक कर दिया । अरविन्द केजरीवाल पंजाब और दिल्ली को सममान मानकर चल रहे हैं । उन्हें लग रहा है कि जिस तरह से उन्होने दिल्ली में आम जनता को लुभाया है वैसे ही वे पंजाब में भी लुभा लेगें । पर पंजबा की परिस्थितियों और स्थितियां अलग हैं । यह बात उन्हें चुनाव के बाद समझ में आयेगी । वेसे अरविन्द केजरीवाल के दबाब में ही अन्य राजनीतिक दल भी मुफ्त वाले रास्ते पर चल पड़े हैं । उन्हें अभी इस रास्ते का ज्यादा ज्ञान नहीं हैं पर आप पार्टी ने उन्हें मजबूर कर दिया है । अरविन्द केजरीवाल जानते हैं कि कहां से पैसा बचाकर कहां खर्च कर देगें पर दूसरे राजनीतिक दल अभी खर्च बचाने और इस खर्च के होने वाले बंदरबांट को रोकने की स्कीम से अपरिचित है । आप पार्टी आम आदमी की कमजोर नस को पकड़ चुकी है । वे हर राज्य में इसी फार्मूले पर आगे बढ़ रहे हैं । एक समय आयेगा कि वे पूरे देश में ही बिजली फिरी करने से लेकर महिलाओं को मासिक रूपये देने की घोषण कर दें । गोवा की चुनाव भी चर्चाओं में है । कम सीटों वाला यह राज्य राजनीतिक दलों की अखड़ा बन चुका है । गोवा में बासंती बयार की कोई आवश्यकता नही है वहां की अलग संस्कृतीऔर अलग प्रकृति है । दलांे की भीड़ है और गठबंधनों की भरमार । उत्तराखंड में बासंती बयार पूरे शबाब पर है । एक साल में तीन मुख्यमंत्री बदलने वाली भाजपा के ऊपर दबाब है । कांग्रेस पूरी तल्लीनता से मैदान में है । उन्हें भरोसा है कि इस बार वे होली के पूर्व ही अपने चेहरों पर रंग गुलाल लगा लेगें । उत्तरप्रदेश ही इस समय निगाहों में है । उत्तरप्रदेश की राजनीति गरम है । वह शीतलहरों के मध्य भी गरमी पैदा कर रही है । भाजपा और सपा के चेहरों पर बासंती बयार है । उन्हें सत्ता की कुर्सी के सपने आ रहे हैं । लमबा चुनाव है और तारीखों के कोष्ठको में मतदान है । अभी तो ‘‘मेरी गाड़ी में बैठ जा’’ का सिस्टम चल रहा है । एक उतर रहा है तो दूसरा उस गाड़ी पर चढ़ रहा है । गाड़ी खाली नहीं रहना चाहिए । खाली गाड़ी मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर पाती । गाड़ी में सारा कुछ होना चाहिए । कुछ आकर्षक चेहरे हों और कुछ दूसरी पार्टी के आकर्षक चेहरे भी अपनी गाड़ी में हों जिन्हें दिखा-दिखा कर सामने वाले को चिढ़ाया जा सके । दोनों दल एक दूसरे को चिढ़ा रहे हैं, मतदाता मजा ले रहा है । जिन्हें एक पार्टी ने टिकिट नहीं दिया उन्होने दूसरी पार्टी में आकर अपनी पहली पार्टी के बारे में भला बुरा कहा और टिकिट पा लिया । वे टिकिट पाने के लिए दल बदल रहे हैं । उनके लिए पार्टी की सोच और उनके सिद्धांतो से कोई मतलब नहीं है उनके लिए प्रत्याशी बनना महत्वपूर्ण है । सभी की निगाहें उत्तरप्रदेश पर अटकी हुई है । उत्तरप्रदेश की चकाचैंध में चुनाव वाले दूसरे राज्य भावशून्य रहकर अपने मतदान की तिथ का इंतजार कर रहे हैं । चुनाव तो हर राज्य के महत्वपूर्ण होते हैं । 10 माच्र तक देश में चुनाव की बयार बहती रहेगी और फिर परिणाम आने के बाद होली प्रारंभ हो जायेगी । देश की राजनीति अभी केवल चुनावों तक सिमटी है । शेष काम तो कोरोना कर ही रहा है । चुनाव वाले राज्यों में भी कोरोना बढ़चढ़ कर भाग ले रहा है । कोरोना को चुनाव से भय नहीं लगता केवल कोरोना के आंकड़े चुनावी राज्यों से भय खाते हैं ठीक वैसे ही जैसे पेट्रोलियम पदार्थों के भाव भय खाते हें वे तब तक अपने दाम नहीं बढ़ाते जब तगक चुनाव नहीं निपट जाते । कोरोना भी ऐसा ही खेल खेलता है । कोराना बढ़ रहा है पूरे देश में बढत्र रहा है आवश्यक पाबंदियां लग चुकी हें पर चुनावी राज्य इससे अछूते हें यदि वहां पाबंदियां लगा दी गई तो मतदान कैसे होगा । कोराना अब भारत की तासीर को जानने लगा है, वह उसके अनुरूप् अपने कदम बढ़ाता है बाकी जगह तो कोराना निडर होकर घूमता ही रहता है । कोरोना का इंतजार अब सारे विश्व के लोग करते हें पर इस बार कोरोना समय के पहले आ गया है । दो सालों तक वह अप्रेल में अपना शुभागमन करता था पर इस बार उसने दिसम्बर की शीत ऋतु में ही अपने कदम रख दिए । एक बार फिर कोरोना मरीजों की रिकार्ड संख्या सामने आ रही है वर सुखद यह है कि इस बार कोरोना डरा नहीं रहा है । कोरोना केवल हो रहा है वह होकर घरों में समेट कर रख रहा है । अस्पताल के बेड खाली हें और आम व्यक्तियों के माथे पर शिकन नही है । वैसे आम आदमी अब कोरोना से ऊब चुका है । कोरोना खत्म हो तो वे अपनी आगे की जिन्दगी जी सकें । सतर्कता प्रशासन ने रखी है आम आदमियों ने नहीं । उसे तो अपने कार्य करना ही है वह कब तक घरों में बैठकर अपना जीवनयापन करेगा । आम व्यक्तियों को भरोसा है कि इस बार की गरमियों में वह कोरोना के बगैर एसी की हवा मंे बैठकर तपन को काट लेगा ।

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