खद्दर डाल कर ,दरी बिछाकर बिसलेरी का जल पीने वाले देश के परजीवियों को प्रधानमंत्री जी ने आंदोलन जीवी कह दिया । अखिलेश यादव भी खुद को रोक नहीं पाए और खुद को लपेटे में लेकर भाजपा को चन्दा जीवी कह दिया । आप के भगवंत मान ने तो टूल्ल होकर रक्तजीवी कह दिया और मेरी मानिए तो ये सब जनता जीवी है जो केवल जनता के गाढ़ी कमाई की मलाई खाने के जुगाड़ में है । किसान आंदोलन में एक नई प्रजाति पाई गई जिसे आदरणीय प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी जी ने आंदोलन जीवी कह दिया , पंचायत चुनाव में प्रधान जो चुना जाएगा वो पंचायतजीवी , बजट के बाद की चर्चा करने वाले बजटजीवी , जनता की चू चपड़ इन सबके बीच राजनीतिक छछूंदरो अर्थात नेता जो जनता का खून पीते है जनताजीवी और समाज सेवा के नाम पर लूटने वाले चूहों मृतजीवी । ऐसे लोगो ने जब परेशान किया तो मैंने कलम के साथ – साथ व्यैक्तिक चुहेदानी भी उठा ली । चूहों ने परेशान किया तो चूहेदानी में एक राजनीतिक मूषक को फांसने में कामयाबी मिली। कुर्सी रूपी घी में डुबोए रोटी के टुकड़े के लालच में वह फंस गया। अब मूषकराज को विसर्जित करने की योजना बनाई। सुबह के दस बज गए थे तो सरेआम चूहेदानी में ले जाना ठीक न लगा। सोचा किसी मंच पर ले जाकर चौक चौराहे पर विसर्जित करूंगा , क्युकी महोदय को विधायक तो बनवा दिए वोट दे देकर अब रास्ते बिजली पानी के नाम पर ये मूषक महाराज मुझे देख कर इधर उधर निकल रहे थे । मैंने खादी स्टोर से मिला कपड़े का एक कैरी बैग लिया, कैद मूशक को चूहेदानी समेत इसमें भरकर चलता बना। सोचा था – नीचे सड़क पर कहीं इन्हे चुनाव के समय आज़ाद कर दूंगा। पर हुआ क्या, मुझमें खो जाने की एक ख़राब आदत है। पता नहीं किस कहानी, किस खबर, किस किस्से, किस स्मृति में खो गया। हाथ में कैरी बैग में मूषक है, उसे मुक्त भी करना है, यह भूल गया। सारे बैग, कैरी बैग डिक्की में डाले और गांव का रुख किया। गांव में ससुराल से आए गजोधर भैया से मूषक महाराज की दोस्ती थी ,मैंने पूरा खद्दर उन्हे सेवाएं देते हुए उनके सुपुर्द कर दिया ।
सारा सामान लेकर गजोधर भैया चौक पहुंच गए, सामने महाराज जी भेंट करने आए तो मूषकराज को हम याद आ गए, उन्हे चिंता होने लगी। घरवालों को उन्होंने हमें ढूंढने को कहा । कहां चला गया वह, क्या महाराज जी अब टिकट देंगे ! यह विपक्ष का षड्यंत्र है कि किसी लूट खसोट का परिणाम । समेत चूहेदानी के छिपा दिया हो जैसे हमको यही सोचते मूषक महराज आज एक सप्ताह बाद मिले । लगता है कि मूषक महाराज का मानसिक महाप्रयाण हो चुका है, मालूम नहीं कहां रहे ? चूहेदानी कहां है, नहीं मालूम। कैसे तड़प-तड़पकर कुर्सी गई होगी।पर यह महाप्रयाण नहीं, महापाप है। ऐसा पाप मैंने कभी नहीं किया की जिसे वादा किया हो पूरा ना किया हो , नेता जी का अंतरतर इसी पश्चाताप से तप रहा है। भय यह भी है कि अगले जन्म में कहीं यह सब मूषक बनकर न चुकता करना पड़े। लोकतंत्र में दो पक्ष होते हैं सत्ता और विपक्ष , विपक्ष क्योंकि खाली रहता है इसलिए सत्तारूढ़ सरकार की आलोचना करते रहता है ,आंदोलन करता रहता है , कोई और आंदोलन कर रहा हो तो उसके साथ शामिल बाजा हो जाता है , इसीलिए मोदी जी ने आज संसद में श्रमजीवी, बुद्धिजीवी की तर्ज पर आंदोलनजीवी जैसा नया शब्द गढ़ लिया । मोदीजी का तकलीफ समझी जा सकती है । हर सत्ताजीवी का यही दर्द होता होता,वह कितना भी अच्छा काम करे, कितना ही ईमानदारी से काम करे आलोचना और आंदोलन से उसकी मुक्ति नहीं है । हर देश की इतनी समस्याएं हैं कि सब हल नहीं हो सकती. फिर कुछ भूल-चूक भी हो जाती है । बस विपक्ष और आंदोलनकारियों को इतना मौका काफी है. वो इस प्रचार में शुरू हो जाते हैं कि देश सुरक्षित हाथों में नहीं है,. देश में कुछ अच्छा नहीं हो रहा । सब असंतुष्ट है ।. सत्ता पक्ष सरकार ठीक से नहीं चला रहा. इसे बदलो. इसे हटाओ, लोहियाजी भी ऐसे ही ‘आंदोलनजीवी’ थे । वो तो यहां तक कहते थे कि जिन्दा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं है । उन्हें पांच साल तक किसी एक की सत्ता स्वीकार नहीं थे फिर चाहे वो राम राज्य क्यों न हो, जनता को भी लगता है कि विपक्ष और आंदोलनकारी ठीक ही कह रहे हैं. हर वक्त धरना, प्रदर्शन आंदोलन, सरकार ठीक काम नहीं कर रही ।
जनता का यही विचार विपक्ष की ताकत है और सत्ता की कमजोर कड़ी इस प्रचार से शनै-शैने सत्ता पक्ष कमजोर होने लगता है और विपक्ष मजबूत होने लगता है । अमेरिका जैसे देशों में जहां रिपब्लिकन और डेमोक्रेट जैसी दो पार्टियां हैं, या ब्रिटेन जहां एक तरफ लेबर पार्टी है दूसरी तरफ कंजरवेटिव पार्टी, जो यही खेल खेल कर बारी-बारी से सरकारें बनाती हैं ,लेकिन हमारे देश में दिक्कत ये है कि विपक्ष मजबूत कभी नहीं रहा । एक जमाने तक कांग्रेस लगातार सरकारें बनाती रही क्योंकि उसका देश में कोई बेहतर विकल्प नहीं था । अब दो बार से भाजपा कांग्रेस की राह पर है , क्योंकि देश में मजबूत विपक्ष है ही नहीं इसलिए मोदीजी अभी और चलेंगे जैसे नेहरू चले, इंदिरा चलीं । क्योंकि इनके जादुई नेतृत्व के आगे विपक्ष का कोई नेता नहीं टिक सका ,अब वही जादुई नेतृत्व या करिश्मा मोदी जी के हाथ में है ,इसलिए इस शोर गुल और हो हल्ले का कोई मतलब नहीं है । देश को सबसे पहले एक सशक्त विपक्ष की जरूरत है ।
— पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट पत्रकार एवं शिक्षक, केराकत जौनपुर