बुर्खा और घूँघट प्रथा —-एक सामाजिक बुराई
कभी तो देखे अपनी माँ को, जो बुर्खा मुख पर ओढ़े थी , कभी बोलती बिना जुबां के, माँ कब तू मुख खोलेगी ! क्या मेरी जवानी और बुढ़ापा तेरी तरह ही गुजरेगा , जो तेरे था साथ हुआ, क्या वो सब मुझपर बीतेगा ! कैसे गर्मी धूप में भी तू, सर ढक कर के…