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सिसकते मानव अंश

शहर का सारा कूड़ा एक बड़े सुनसान इलाके में इकट्ठा किया जाता है। जहां कूड़े के पहाड़ बन गए हैं। उसी कूड़े में पड़े हुए कुछ मानव भ्रूण सिसक रहे हैं। एक दूसरे से बात करके अपना मन कुछ हल्का कर रहे हैं।

एक कन्या भ्रूण दूसरी कन्या भ्रूण से बात करते हुए कहती है बहन तुम कितने महीने रही अपने माँ के गर्भ में। मुझे तो 3 महीने तक ही रखा गया। दूसरी बोली मेरी हत्या तो पांचवे महीने में की गई क्योंकि मेरे घर पर सभी को लड़का चाहिए था ना वंश चलाने के लिए। मैं तो एक लड़की ठहरी, मेरे से वंंश थोड़ी चलता ना।

हां बहन मेरे घर पर भी यही था। मेरी तीन बहन पहले से ही थी अब तो मेरी माँ को लाला ही खिलाना था। अपने घर पर मेरा आना किसी को पसंद नहीं था।

एक भ्रूण प्लास्टिक की पिन्नी में दूर को छिटका पड़ा था। दोनों कन्या भ्रूण उससे बोलने लगते हैं,”क्यों भाई तुम कैसे आ गये यहां पर। तुम तो बहुत कीमती हो। तुम तो लड़के हो फिर तुम्हारा दमन क्यों हुआ?

शिशु भ्रूण आहें भरता हुआ बोला,”मैं किसी की वासना पूर्ति से जन्म हुआ बीज हूँ। शारीरिक जरूरत पूरी हुई और मुझे फेंक दिया गया। मेरा जन्म हुआ अमर्यादित रिश्तों में जो किसी के भी गले नहीं उतरता। समाज में बदनुमा दाग बना हुआ मैं नाजायज कत्ल किया गया।”

ओह तुम भी हमारी तरह से मारे ही गए हो। सारे भ्रूण मिलकर इस कठोर समाज का सच उजागर कर गये। क्योंकि सभी भ्रूण मनुष्यों के अपने ही अंश पर किए गए अत्याचारों का शिकार थे।

प्राची अगवाल (विश्व रिकॉर्ड होल्डर)

खुर्जा बुलंदशहर

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