चीर हरण के समय
न पुकारना ईश्वर को
क्योंकि
तुम नहीं हो मात्र तन
मत होना लज्जित
वस्त्रों में छुपी
अपनी यथार्थता के लिए
तुमने
पुरुष से आरम्भ कर
पुरुष को जन्मा
अवश्य है
परन्तु
तुम हो अधिकारिणी
उन्हें दंडित करने के लिए भी
अपने प्रश्नों को लेकर
मत जाना कुरु जनों के पास
उनके उत्तर ढूंढना स्वयं
अपनी आत्मा में।
श्रापित करना उस कुंठित सभा को
क्योंकि
तुम हो सबल
और फिर
नारी यदि दंड न देगी
तो
कौन देगा ?
परन्तु द्रौपदी
धृष्टराष्ट्र से वरदान लेते हुए
यह सही है
तुम अपनी मर्यादा न तोड़ना
क्योंकि
यदि तुम भी छोड़ दोगी मर्यादा
तो
आने वाले समाज
का निर्माण
कौन करेगा ?
शशि महाजन – लेखिका