धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए
कबीर जी के दोहे में धैर्यशीलता का कितना खूबसूरत सँदेश छिपा है।बात केवल इतनी सी है कि किसी भी सोच विचार के बीज को बो देने भर से फ़सल के इँतज़ार में हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाने भर से बात नहीं बनने वाली। चिंतन का विषय यही है कि जिसने जितनी मेहनत की उसने उतना ही फल पाया।मूर्ख केवल वही जगत में जिसने, मनवाँछित परिणाम न मिलने पर, अपने आलस्य का दोषारोपण दूसरे पर करके, पराए हक़ पर अपना अधिकार जताया।या फिर धैर्य खोकर कच्ची कोमल कोंपलों को ही नष्ट कर दिया।
आजकल हर तरफ ग्लोबल वार्मिंग का मुद्दा अहम चर्चा का विषय बना हुआ है।अनेक सँगठन इस समस्या से जूझने के लिए कई समाधान बताने हेतु कितने ही जागरूकता अभियान चला रहे हैं।प्रधानमँत्री जी ने भी फ़िट इँडिया हिट इँडिया अभियान चलाने का मिशन बनाया है।
आज प्लास्टिक बैन से लेकर पर्यावरण और उर्जा सँरक्षण के मुद्दे समूचे देश के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्यूँकि ग्लोबल वार्मिंग ने ख़तरे की घँटी बजा दी है।हमें सोचना ये है कि
जितना अधिक हम प्राकृतिक सँसाधनों का इस्तेमाल करेंगे, उतना ही उर्जा सँरक्षण में सहयोगी बन पाएँगे।
लगाम अपने ही इरादों पर लगानी होगी
तभी तो हर ज़ुबान पर प्रेम कहानी होगी
एक अकेला व्यक्ति जो खुद किसी का सहारा ढूँढ रहा हो वो किसी दूसरे व्यक्ति का सहारा क्या बनेगा? एक एैसा परिवार जिसके पास अपने ही खाने के लिए कुछ नहीं है, वो किसी दूसरे का पेट भरने में भला क्या सहयोग दे सकेगा।
आज वक्त की माँग ये है कि हर व्यक्ति अपनी सोच को परिपक्वता दे, अपने चिंतन को जागरूकता दे,और अपना निजी स्वार्थ त्याग कर, दैनिक ज़रूरतों के लिए अधिक से अधिक प्राकृतिक सँसाधनों का इस्तेमाल करे, प्राकृतिक खाद्य पदार्थों का उपभोग करे, और प्रकृति के गुणों से अपने चिंतन का सामँजस्य बैठाए।
जिस तरह सौर उर्जा का इस्तेमाल विद्युत यँत्रों के सहयोग को कम करने में मददगार साबित हो सकता है। ठीक उसी तरह, प्राकृतिक खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल, डिब्बाबँद खाद्यान्नों के उपभोग को कम कर सकता है।वृक्ष काटकर ईंट-गारे की गगनचुँबी इमारतें बनाने से बेहतर है, मानवता के मानवोपयोगी वृक्ष लगा कर, अँबर को छूते मानव मूल्यों की वाटिका तैयार की जाए।
सर्वोपरि है परस्पर वैमनस्य और ईर्ष्या-द्वेष त्याग कर अपने अँदर के आक्रोश की सफाई की जाए।प्रकृति के साथ अपने सुर ताल मिलाते हुए, निस्वार्थ प्रेम के बीज बोए जाएँ और निस्वार्थता की फ़सल उगाई जाए।
मेरे विचार से फ़िट इँडिया मिशन की इससे खूबसूरत तस्वीर नहीं हो सकती, क्यूँकि –
जब निस्वार्थता का क़ायदा पढ़ेगा इँडिया
तभी तो दिव्य प्रेम की सीढ़ियाँ चढ़ेगा इँडिया
उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है, एक और वर्ष बीत जाने को है, और नववर्ष हमारे द्वार पर दस्तक देने को तैयार है, तो क्यूँ ना इस बार एक नवीन और जागरूक सोच के साथ नववर्ष के स्वागत की तैयारी की जाए –
ख़्वाबों में उम्र गुज़ार कर बहुत सो चुके
अब जागकर,सोई नस्लों को जगाना है
स्वादों के लोभ में पड़कर बहुत खा चुके
मानव मूल्य बीज,निस्वार्थ प्रेम उगाना है
सँग्रहित की है, बहुत दौलत इस जगत से
मुट्ठीभर राख होने से पहले,सब लौटाना है
फ़िट इँडिया तभी,हो हिट इँडिया तभी जब
हर दिल में मोहम्मद,जीसस,राम,ननकाना है