मंत्रीजी का नया पी ए नियुक्त हुआ तो अंदर ही अंदर काफी खुश थे। एक होनहार, पढ़ा लिखा, काबिल नौजवान उनका पी ए रहेगा तो सब परेशानियां ख़त्म। रही बात राजनीति की, वह तो उनके खून में है। पी ए साहेब को भी सीखा देंगे। मंत्रीजी ने पी ए को बुलाया और कहा,” हम जानते हैं तुमने बहुत पढ़े लिखे हो, व्यवहारकुशल भी हो, सब संभाल लोगे लेकिन एक बात याद रहे, राजनीति बच्चों का खेल नहीं है। इसलिए कभी भी कोई शंका हो तो हमसे बात करके ही कोई कदम उठाना।” पी ए अपने काम में चतुर होने के साथ साथ आज्ञाकारी भी बहुत थे। उन्होंने मंत्रीजी की बात को गांठ से बांध लिया। नौकरी का उसूल उन्हें पता था। ,” बॉस इज आलवेज राइट।”
चुनाव पास आ रहे थे। मंत्रीजी की जनसभाएं चल रही थी। आज़ यहां तो कल वहां। बहुत व्यस्तता थी। विभिन्न धर्मों के अनुयायी भी अपने अपने धर्म की सभा में मंत्रीजी को बुलाने के लिए संपर्क कर रहे थे। मंत्रीजी ने एक धर्मसभा में शामिल होने के लिए हां कह दी। बाकि सभी को पी ए साहेब ने कोई न कोई बहाना बनाकर टाल दिया। परंतु यह बात उन्हे कुछ ठीक नहीं लगी। मंत्रीजी के निर्देश के अनुसार उन्होंने अपनी शंका उन्हें बताई। मंत्री जी ने मूछों को ताव देते हुए उत्तर दिया।,”सुजीत हमारा राजनीतिक धर्म, वोट गणित है। जिस धर्म विशेष से वोट मिले उसी के साथ उठना बैठना चाहिए।” सुजीत पहली बार यह जान समझ रहे थे कि बाकि सब एक तरफ, वोट बैंक एक तरफ। मंत्रीजी के सामने वो चुप ही रहे, बोले कुछ नहीं। मंत्रीजी ने एक और आश्चर्य जनक खुलासा किया ,” राजनीति और आदर्श एक दूसरे के विरोधी शब्द हैं। राजनीति उसी धर्म को मानती है जो कुर्सी पर बिठा सकता है। बाकि सब मिथ्या आचरण है।”
चुनाव के नतीजे आने वाले थे। पी ए साहेब हर खबर पर पैनी निगाह जमाए हुए थे। परिणाम विश्लेषण से पहले ही उन्होंने पता लगा लिया था कि कौन जीतेगा? उन्होंने मंत्रीजी से संपर्क किया। ,” सर, वोट गणित बिगड़ गया है।” मंत्रीजी पूरे आत्मविश्वास से बोले ,” आपके सामने यह पहला चुनाव है, धैर्य रखिए हमारा गणित कभी नहीं बिगड़ेगा।” पी ए साहेब ने धीमे स्वर में अपनी बात रखी ,” मैं सही कह रहा हूं सर, मैंने एक एक वोटर से बात की है।” मंत्रीजी के चेहरे पर अब भी अविश्वास के भाव थे। पी ए के पास आकर बोले ,” क्या कह रहे हैं वोटर ?” पी ए ने सिर झुकाकर जवाब दिया ,” सर, उन्होंने इस बार आपको वोट नहीं दिया है। उनका मानना है जो अपने धर्म का नहीं हो सका वो उनके धर्म का कैसे हो पाएगा ?” मंत्री जी आवक थे। पी ए को उन्होंने वोट गणित समझाया था लेकिन उसने उन्हें जीवन गणित समझा दिया था। मंत्रीजी सिर पकड़ कर बैठे थे और पी ए साहेब आश्वस्त थे कि अब उन्हें कोई दूसरी नौकरी ढूंढनी ही है।
अर्चना त्यागी