पंकज सीबी मिश्रा / राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर
सनातन में चैत्र नवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इस अवधि में पूजा-पाठ के साथ-साथ सुख-समृद्धि के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक वर्ष भर में पढ़ने वाले चारों नवरात्रि में देवी का आगमन पृथ्वी लोक पर होता है, चार नवरात्रि में दो गुप्त नवरात्रि होता है जिसमें शक्तियां सिद्ध की जाती है और दो कर्म नवरात्रि होती है जिसमें कार्य सिद्धि के लिए खास कलश पूजन की जाती है । इसलिए माता के आगमन की खुशी में जगह-जगह पूजा का भव्य आयोजन किया जाता है। इसी नवरात्रि से भगवान राम का भी अस्तित्व जुड़ा है । राम कौन हैं और वे धरती पर अवतरित क्यों हुए ? राम नवमी के आने वाले त्योहार पर, इन प्रश्नों पर विचार कर,तो पाएंगे सत्य और परमार्थ के प्रतीक राम को पूजने से माता प्रसन्न हो जाती है । हमें अपने मन-बुद्धि को पवित्र बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। हिन्दू चंद्र पंचांग के अनुसार, चैत्र नवरात्रि एक नए हिंदू वर्ष का आरंभ होता है। भारत के अनेक राज्यों में इसे गुड़ी पड़वा, उगादी, विषु, इत्यादि के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में नौ दिनों का यह त्योहार देवी दुर्गा के नौ अवतारों की पूजा के अंतर्गत मनाते हैं। चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन, भगवान राम का दिव्य प्राकट्य हुआ था इसलिए इस दिवस को रामनवमी के रूप में भी मनाया जाता है। सनातन धर्म के शास्त्रों में भगवान के अवतार लेने के अनेक कारण बताए गए हैं। श्रीरामचरितमानस में बाबा परमपूज्य गोस्वामी तुलसीदास महाराज ने लिखा है:
‘ असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।
जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु ।। ‘ इस प्रकार दुर्गुण नष्ट करने हेतु नवरात्रि के नौ दिवस में मां के नौ रूपों अर्थात प्रकृति के नौ दिव्य औषधियों की पूजा का विधान है जो प्रतिक स्वरूप नौ शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है ।
प्रथम शैलपुत्री जो कैलाश पर्वत की पुत्री थी किंतु चेतना का सर्वोत्तम स्थान मां आदि शक्ति का पहला ईश्वरीय स्वरूप शैलपुत्री है, शैल अर्थात शिखर, तो प्रथम दिवस पर शक्ति के स्थिर स्वरूप की उपासना कर अपनी ऊर्जा को शिखर पर ले जाने हेतु साधना की जाती है।
दूसरा दिवस ब्रह्मचर्य के ऊर्जा को दिया गया है जिसमें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है और इसी मां का नाम दिया गया है । यही वह ऊर्जा है जो गतिमान होते हुए भी विद्यमान है ।ब्रम्हचर्य का सही अर्थ यही हैं। नवरात्रि के दूसरे दिवस मां आदिशक्ति की उस उर्जा के रूप में उपासना की जाती है जो असीम है अनंत में विद्यमान है , गतिमान है ।
नवरात्रि के तीसरे दिवस मां आदिशक्ति को चंद्रघंटा के रूप में पूजा जाता है। मां चंद्रघंटा चंद्रमा का प्रतीक है चंद्रमा मन का प्रतिन्धित्व करता है इसलिए अपने भीतर विद्यमान ऊर्जा को सर्वोच्च शिखर पर ले जाने हेतु मन का शांत और स्थिर होना नितांत आवश्यक है। मां चंद्रघंटा की उपासना मन को शांत, निर्मल व स्थिर करने हेतु की जाती है।
कूष्मांडा जो चतुर्थ दिवस पूजी जाती है । जिनका अर्थ है प्राणशक्ति जो समस्त सृष्टि में गोलकार वृत्त की भांति विद्यमान है और प्राणवायु का संचालन करती है । योगमाता ने कहा कि कुष्मांडा का अर्थ है ‘गोलाकार’अर्थात वह प्राणशक्ति जो समस्त सृष्टि में गोलकार वृत्त की भांति विद्यमान है। मनुष्य शरीर के भीतर भी यही गोलाकार ऊर्जा विद्वान है परंतु विभिन्न संस्कारों व कर्म बंधनों के कारण बिखरी हुई है, अतः स्वयं के भीतर बिखरी हुई ऊर्जा को गोलाकार वृत्ति में लाने हेतु नवरात्रि के चतुर्थ दिवस मां आदिशक्ति की कुष्मांडा के रूप में उपासना की जाती है।
माँ स्कंदमाता जो नवरात्रि में ऊर्जा का पांचवा रूप है। स्कंद का अर्थ है भगवान कार्तिकेय जिनका मूल भाव शाकाहार है उनको स्वच्छंदता के लिए जाना जाता है, स्कंद का अर्थ होता है ज्ञान को व्यवहार में लाते हुए कर्म करना तथा स्कंदमाता ऊर्जा का वह रूप है जिसकी उपासना से ज्ञान को व्यवहारिकता में लाकर पवित्र कर्म का आधार बनाया जा सकता है। इस तरह है यह इच्छा शक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। शिव तत्व का मिलन जब त्रिशक्ति के साथ होता है तो स्कंद ‘कार्तिकेय’ का जन्म होता है।
माँ कात्यायनी जो छठा रूप है । मां कात्यायनी ऊर्जा का वह रूप है जो सब प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं, मां का दिव्य कात्यानी रूप अव्यक्त के सूक्ष्म जगत में नकारात्मक का विनाश कर धर्म की स्थापना करता हैं।
मां कालरात्रि अर्थात मां आदिशक्ति का सातवां स्वरूप कालरात्रि है, काल अर्थात संकट जिसमें हर तरह के संकट को समाप्त कर देने की शक्ति हो वह माता कालरात्रि है। ब्रह्मांड में व्याप्त आसुरी शक्तियों का काल मां कालरात्रि ही है।
मां महागौरी जिन्हे शक्ति का आठवां स्वरूप कहा गया है । महागौरी है गौरी का अर्थ है प्रकाशमय , ऊर्जा का वह रूप है जहां ऊर्जा विभिन्न स्तरों से गुजर प्रकाशमय हो जाती है इसी प्रकार मनुष्य को भी अपने भीतर विद्यमान ऊर्जा को मां की उपासना करते हुए प्रकाशित करना होता है।
मां सिद्धिदात्री नौवें दिवस के लिए मां का यह रूप ज्ञान व बोध का प्रतीक है, ऊर्जा का वह रूप है जिसे जन्मों की साधना से पाया जा सकता है। यह परम सिद्ध अवस्था है इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा गया।
इस बार 30 मार्च 2025 से चैत्र नवरात्रि शुरू हो रही है, जिसका समापन 6 अप्रैल 2025 के दिन किया जाएगा। इस दौरान मां दुर्गा का आगमन हाथी पर हो रहा है, जिसे धन वृद्धि और देश की अर्थव्यवस्था में सुधार का संकेत माना जाता है। वहीं नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने का विधान है। इससे जीवन में सुख-शांति, धन लाभ, घर में बरकत व करियर में मनचाहे परिणामों की प्राप्ति होती हैं। इस दौरान नौ दिनों तक दिन के अनुसार माता के प्रिय रंगों के वस्त्र पहनना और प्रिय फूल से श्रृंगार और निराहार व्रत और भी लाभकारी होता है। इससे साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। हिन्दू धर्म में नवरात्रि का अपना महत्व हैं एवं साधना की दृष्टि से इसका महत्व कई अधिक बढ़ जाता हैं। प्रति वर्ष ग्रहों की विशेष स्थिति को देखते हुए हमारे ऋषि मुनिओं द्वारा वर्ष में चार नवरात्रि मनाए जाने की परम्परा दी। इनमें से दो गुप्त नवरात्रि तंत्र साधकों के लिए व दो नवरात्रि सार्वजानिक रूप से सभी के लिए होती हैं। इन्हीं में चैत्र नवरात्रि का आरंभ हिन्दू पंचाग के प्रथम माह चैत्र से होता हैं एवं हिन्दुओं का नववर्ष भी इसी दिन मनाया जाता हैं।