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सौंदर्य

सौंदर्य केवल वस्तुओं में नहीं है

सौंदर्य केवल मनुष्य में नहीं है

सौंदर्य केवल प्रकृति में नहीं है

सौंदर्य सर्वत्र व्याप्त भी नहीं है

वास्तविक सौंदर्य देखने वाले की आँख में है

इस प्रकार सत्यम्-शिवम्-सुंदरम् की परिभाषा

अमूल्य, अजान और अमान्य जान पड़ती है

जो लोग खोजते हैं सौंदर्य को ईश्वर में

जो लोग खोजते हैं सौंदर्य को सत्य में

वे बेहद ही अनजान और नासमझ हैं

सौंदर्य को ईश्वर के होने का प्रमाण मानना

या सौंदर्य को ईश्वर के करीब मानना

ठीक वैसा ही है आत्मा को परमात्मा मान लेना

जबकि वे दोनों एक-दूसरे से भिन्न-भिन्न हैं

जैसे प्रकृति को कैनवास पर उतारने के बाद भी

मूल प्रकृति बदलती रहती है पल- पल  और हर पल

और कोई महानतम कलाकार हो जाता है

एक क्षणिक-सी प्रकृति की कलाकृति भर बनाकर

और अमृत्व को प्राप्त हो जाता है सदा-सदा के लिये

जबकि  सौंदर्य की कोई पराकाष्ठा नहीं है

डॉ. मनोज कुमार “मन”

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