लेखक- डॉ.पवन शर्मा (साहित्यकार एवं लेखक)
होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन, जिसे प्रमुखतः धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन इसके अन्य नाम हैं, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं। होली का त्योहार प्यार और रंगों का वैदिक कालीन पर्व है। भारत में अनादिकाल से प्रत्येक ऋतु में एक न एक उत्सव मनाने की परम्परा चली आ रही है,किन्तु वसन्त ऋतु में तो उत्सवों का चरमोत्कर्ष मिलता है। होली पर्व को भारतीय तिथि पत्रक के अनुसार वर्ष का अन्तिम त्योहार कहा जाता है । यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को संपन्न होने वाला सबसे बड़ा त्योहार है। होली क्या है? होली नवसर्स्यष्टि है। नव-नई, सस्य-फसल, इष्ट-यज्ञ अर्थात् नई फसल पर किया जाने वाला यज्ञ। इस समय आषाढ़ी की फसल में गेहूँ, जौ, चना आदि का आगमन होता है। इनके अधपके दाने को संस्कृत में ‘होलक’ और हिन्दी में ‘होला’ कहते हैं ।
होली नई ऋतु का भी उत्सव है। अगले दिन चैत्र मास का प्रथम दिन है, जब बसन्त ऋतु आरम्भ होती है। बसन्त के आगमन पर हर्षोल्लास स्वाभाविक ही है। ऊनी वस्त्रों का स्थान सूती एवं रेशमी वस्त्र ले लेतें हैं। शीत के कारण जो व्यक्ति बाहर निकलने में संकोच कर रहे थे, वे अब निसंकोच होकर घूमने लगते हैं।
सारा वातावरण नये नये फूलों की सुगन्ध से सुवासित होता है। सभी वृक्ष अपने पुराने पत्ते-पत्तियों का त्याग कर नये हरे पत्ते धारण करते हैं। इससे सारा वातावरण व उसका परिदृश्य मनमोहक व लुभावना बन जाता है।
भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में भिन्नता के साथ मनाया जाता है। ब्रज की होली आज भी सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। बरसाने की लठमार होली काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी प्रकार मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है। कुमाऊँ की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ होती हैं। यह सब होली के कई दिनों पहले शुरू हो जाता है। हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। बंगाल की दोल जात्रा चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। जलूस निकलते हैं और गाना बजाना भी साथ रहता है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र की रंग पंचमी में सूखा गुलाल खेलने, गोवा के शिमगो में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्ला में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। तमिलनाडु की कमन पोडिगई मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोत्सव है जबकि मणिपुर के याओसांग में योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है। दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है, छत्तीसगढ़ की होरी में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है और मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है भगोरिया, जो होली का ही एक रूप है। बिहार का फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है और नेपाल की होली में इस पर धार्मिक व सांस्कृतिक रंग दिखाई देता है। इसी प्रकार विभिन्न देशों में बसे प्रवासियों तथा धार्मिक संस्थाओं जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग अलग प्रकार से होली के श्रृंगार व उत्सव मनाने की परंपरा है जिसमें अनेक समानताएँ और भिन्नताएँ हैं।
होली का त्योहार आपसी सोहार्द व भाईचारे का प्रतीक है क्योंकि हमारी संस्कृति “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को मानने वाली संस्कृति है। रंग हमारे जीवन में पूरी तरह घुले-मिले हैं। धर्म में भी रंगों की मौजूदगी का खास उद्देश्य है। पूजा के स्थान पर रंगोली बनाना कलाधर्मिता के साथ रंगों के मनोविज्ञान को भी प्रदर्शित करता है। कुंकुम, हल्दी, अबीर, गुलाल, मेहंदी के रूप में पांच रंग तो हर पूजा में शामिल हैं। धर्म ध्वजाओं के रंग, तिलक के रंग, भगवान के वस्त्रों के रंग भी विशिष्ट रखे जाते हैं। ताकि धर्म-कर्म के समय हम उन रंगों से प्रेरित हो सकें, हमारे अंदर उन रंगों के गुण आ सकें। होली पर्व का मुख्य सन्देश है बुराइयों की, कटुताओं की, वैमनस्यता की, दुर्भावों की होली जलाई जाये, इनका दहन किया जाये और प्रेम का, सद्भाव का, सदाचार का रंग सब पर बरसाया जाए। रंगों के साथ अबीर-गुलाल और ढोल-मंजीरा बजाते हुए गाना गाते हुए लोग दोस्तों, रिश्तेदारों और मोहल्ले या कॉलोनी वालों के साथ त्योहार का आनंद लेते हैं। इससे उनका आलस व थकान खत्म होती है जिससे उन्हें अगले कई दिनों तक के लिए ऊर्जा मिल जाती है। इस प्रकार होली एक मानसिक ऊर्जा और स्फूर्ति देने वाला त्योहार है।
डॉ.पवन शर्मा