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सम्पादकीय : मनमोहन शर्मा ‘शरण’

आप सभी को भारतीय संस्कृति के महान पर्व पंच दिवसीय महोत्सव की बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं। धन तेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा के साथ भाई-बहन के पवित्र पर्व भाई-दूज, ये सब पंच दिवसीय महोत्सव के अंग हैं।
गोवर्धन पूजा एवं भाईदूज नवम्बर में (2-3) मनाएंगे। भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी में लोग अपने घरों को, प्रतिष्ठानों को दीपों से, पुष्पों से सजाते हैं। ‘बजा दो दोल स्वागत में, मेरे घर राम आये हैं।’ भाव यही है किन्तु समय बदला और भावना भी बदल गयी। आज अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने के मापदण्ड बदल गये हैं। आप कुछ ऐसा करें कि आस पास के लोग आश्चर्यचकित हों तथा भयभीत हों। तभी तो आपकी वाह वाही है, भले ही उसका नतीजा हमें स्वयं को, हमारे परिवार को ही क्यों न भुगतना पड़े। बात दीपावली की चली तो दीप प्रज्ज्वलित पुष्पों की माला से शुरू हो भयंकर बम पटाखों तक आ पहुँची है। बावदूज इसके कि दिल्ली एनसीआर में हवा की गुणवत्ता पहले से ही खतरे के आसपास है। फिर भी चाहे जो हो जब तक हो-हल्ला न हो तब तक आपकी उपस्थिति नगण्य सी लगती है। इसीलिए कोर्ट के द्वारा मनाही के बाद भी बम बदस्तूर फूटते रहे- भले ही बुजुर्गों/ अस्वस्थ लोगों को श्वांस लेने में कठिनाई ही क्यों न हो रही हो। यहाँ हम यह भी कह सकते हैं कि जिस वृक्ष पर हम बैठे हैं उसकी जड़ें स्वयं ही काट रहे हैं। अब इन्द्र देवता का हो सहारा जनजीवन सामान्य ला सकता है। बारिश होगी तभी प्रदूद्मण से निजात मिलेगी।
चुनाव नजदीक आने की खबर मिलते ही दलबदल का कार्यक्रम प्रारंभ हो जाता है। जिस काम में सभी दल बीजेपी को माहिर बताते हैं कि बड़े बड़े नेता अपनी पार्टी से त्याग पत्र देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने लगते हैं। लेकिन बड़ी खबर तब बन जाती है जब भाजपा के तीन बार के विधायक भाजपा छोड़ ‘आप’ आम आदमी पार्टी का दामन थाम लेते हैं। इसलिए भी कि दिन रात जिस पार्टी को आप कोसते हैं, उनकी विचारधारा को भला-बुरा कहते हैं, उसमें ही सारी अच्छाईयां दिखाई देने लगती है और अपनी पार्टी जिसे हम अपना माई-चाप कहते आए उसमें बुराइयाँ दिखने लगती है अथवा ढूँढने लगते हैं। वहीं यक्ष प्रश्न उठ खड़ा होता है कि क्या आज ईमान को अपने वचन को आस्था की बातें करना क्या बेमानी हो गया है। ‘स्य हित’ ही सबसे बड़ा हो गया है जिसके आगे-पार्टी समाज-समाजसेवा-देशहित कुछ भी नहीं रह गया? यदि ऐसा है तो हम किसका भला करने निकले हैं किसका भला कर पाएंगे। यह भविष्य को गोटियां है जो भविष्य ही हमें दिखाएगा। एक अच्छी खबर ‘भारत-चीन सैनिकों ने दिवाली पर आपस में बांटी मिठाईयां’ सुनने पढ़ने में वास्तव में अच्छी ही लगती है किन्तु पूर्व में किये वादों और उसमें से निकले चीन के इरादों पर भी नजर बनाकर रखनी होगी। मिल-जुल कर रहना और आगे बढ़ना अच्छी बात है किन्तु कथनी और करनी में एकरूपता लाये चिना स्वस्थ संबंध की इमारत खड़ी करना असंभव सा हो जाता है। मिलकर चलें तो बात कुछ और बनें…… सही है।

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