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मुसीबतों में मुस्कुराना ही स्वस्थ जीवन का आधार है (विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस विशेष)

प्रतिदिन के तनाव से उपजती और मौत के मुंह में ले जाती गंभीर बीमारियों को देखते हुए यह बात बिल्कुल सही साबित होती है। हर एक मिनट का हिसाब रखती, भागदौड़ भरी वर्तमान जीवनशैली में सबसे बड़ी और लगातार उभरती हुई समस्या है ‘मानसिक तनाव’। हर किसी के जीवन में स्थाई रूप से अपने पैर पसार चुका तनाव, व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। आपकी निजी जिंदगी से शुरू होने वाला मानसिक तनाव पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण समस्या बनकर उभरा है, जो अपने साथ कई तरह की अन्य समस्याओं को जन्म देने में सक्षम है। यही कारण है, कि इसे बचने के लिए और मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए योग, ध्यान, अध्यात्म और कई तरह के अलग-अलग तरीकों को लोग अपने जीवन में उतार रहे हैं। तनावग्रस्त जीवनशैली में बिगड़ने मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इसके प्रति जागरूकता पैदा करने और इससे बचने के उपायों पर विचार करने के उद्देश्य से हर साल 10 अक्टूबर को पूरे विश्व में ”विश्व मानसि‍क स्वास्थ्य दिवस” के रूप में मनाया जाता है। विकास की दौड़ में भागती जीवनशैली से उपजे तनाव के प्रति चिंता व्यक्त कर, उससे बचने और दूर करने के बारे में विचर विमर्श किया जाता है। साथ ही इसके प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए कई तरह के आयोजन किए जाते हैं। आज की इस भागदौड़ भरी जीवनशैली में स्वभाविक रुप से इंसान पहले पैसे कमाने के पीछे भागता है और फिर अपने स्वास्थ्य को गंवाता है। बीमार होने पर स्वास्थ्य को पाने के लिए पैसा गंवाता है। पैसा गंवाने के बाद भी वह पूरी तरह से स्वस्थ्य नहीं हो पाता है।  इसलिए हमें हर उम्र में और हर हाल में अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना चाहिए। जीवन जीने का आनन्द तब आता है जब इंसान शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मानसिक विकारों से पीड़ित व्यक्तियों की अनुमानित संख्या 450 मिलियन है। भारत में लगभग 1.5 मिलियन व्यक्ति जिनमें बच्चे एवं किशोर भी शामिल है,गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित हैं। मानसिक बीमारी व्यक्ति के महसूस, सोचने एवं काम करने के तरीके को प्रभावित करती है। यह रोग व्यक्ति के मनोयोग, स्वभाव, ध्यान और संयोजन एवं बातचीत करने की क्षमता में समस्या पैदा करता है। अंततः व्यक्ति असामान्य व्यवहार का शिकार हो जाता है। उसे दैनिक जीवन के कार्यकलापों के लिए भी संघर्ष करना पड़ता हैं, जिसके कारण यह गंभीर समस्या स्वास्थ्य चिंता का विषय बन गयी है। इसलिए भारत सरकार ने देश में मानसिक बीमारी के बढ़ते बोझ पर विचार करने के उद्देश्य से वर्ष 1982 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरूआत की थी। मानसिक स्वास्थ्य पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की हाल में जारी रिपोर्ट भयावह तस्वीर पेश करती है।इस रिपोर्ट के अनुसार- 30 करोड़ (300 मिलियन) लोग विश्वभर में अवसाद की समस्या से जूझ रहे हैं। 8,00,000 लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या कर लेते हैं, जबकि 15 से 29 आयु वर्ग के बीच मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या बन चुका है। वैश्विक स्तर पर 1 प्रतिशत से भी कम अनुदान दिया जाता है,क्योंकि वैश्विक स्तर पर सरकारों द्वारा मानसिक स्वास्थ्य विभाग की प्राथमिकता सूची में वह शामिल नहीं है। 2.5 ट्रिलियन डॉलर वैश्विक स्तर पर खर्च होता है मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिवर्ष,लेकिन अगर मानसिक विकार दूर करने के लिए समय पर कदम नहीं उठाया गया तो अनुमान है कि वर्ष 2030 तक मानसिक रोगियों के इलाज का खर्च बढ़कर 6 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जायेगा। WHO की रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर 8 में से एक शख्स मानसिक अस्वस्थता का शिकार है। मानसिक अस्वस्थता आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण है। मानसिक तनाव  ही मन में न आए, इस प्रकार का वातावरण तैयार करना बड़ा सवाल है। पाठ्यक्रमों में व्यक्ति को अंदर से मजबूत बनाने वाले तत्त्व सम्मिलित किए जाएं। साथ ही टीवी सीरियल, फिल्म और साहित्य में ऐसे किरदारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो समाज में आत्महत्या के लिए जिम्मेदार माहौल को बदलने में सक्षम हों। चिंता इस बात की है कि आत्महत्या का कलंक कम हो, ऐसे कोई ठोस प्रयास ही नहीं हो रहे हैं। यह बात हर किसी को हर दिन याद रखनी चाहिए, कि तनाव किसी भी समस्या का हल नहीं होता बल्कि कई अन्य समस्याओं का जन्मदाता होता है। उदाहरण के लिए तनाव आपको अत्यधिक सिरदर्द, माइग्रेन, उच्च या निम्न रक्तचाप, हृदय से जुड़ी समस्याओं से ग्रस्त करता है। दुनिया में सबसे अधिक हार्ट अटैक का प्रमुख कारण मानसिक तनाव होता है। यह आपका स्वभाव चिड़चिड़ा कर आपकी खुशी और मुस्कान को भी चुरा लेता है। इससे बचने के लिए तनाव पैदा करने वाले अनावश्यक कारणों को जीवन से दूर करना जरूरी ही नहीं अनिवार्य हो गया है।किसी भी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य का संबंध उसकी भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्थिति से जुड़ा होता है। मानसिक स्वास्थ्य से व्यक्ति के सोचने, समझने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता प्रभावित होती है। इसका असर व्यक्ति के तनाव को संभालने और जीवन से जुड़े जरूरी विकल्प के चयन पर भी पड़ सकता है। मानसिक स्वास्थ्य जीवन के प्रत्येक चरण अर्थात बचपन, किशोरावस्था, वयस्कता और बुढ़ापे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस प्रत्येक वर्ष एक थीम के तहत मनाया जाता है। इस वर्ष 2023 के मानसिक स्वास्थ्य दिवस की थीम है-“मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है।”

(Mental Health is a Universal Human Right.) चूंकि पूरा विश्व मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रहा है और तनाव से दूर रहने के लिए प्रयास कर रहा है, तो आप भी यह संकल्प लें, कि किसी भी समस्या में अत्यधिक तनाव नहीं लेंगे। क्योंकि यह कई तरह की शारीरिक समस्याओं को भी जन्म दे सकता है। आखिरकार तनाव लेने ये समस्या सुलझने के बजाए और अधिक जटि‍ल हो जाती है, तो बेहतर यही है कि उन्हें शांति से समझते हुए हल किया जाए व समस्या में मुस्कुराना क्यों भूला जाए। अतः उपर्युक्त संदर्भ में यह कहना सार्थक प्रतीत होता है कि मैं अपने स्वास्थ्य का राज बताती हूं, क्योंकि मैं मुसीबत में भी थोड़ा मुस्कुराती हूं।

मोनिका शर्मा

विशेष शिक्षाअध्यापिका (दिल्ली)

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