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सामाजिक गमलों में बोन्साई से उगते हमारे कर्म

(पंकज सीबी मिश्रा, मिडिया विश्लेषक / पत्रकार जौनपुर यूपी )

 यह विश्वास किया जाता है कि हमारे कर्म हमारे अगले जन्म को निर्धारित करते हैं। हमें नफरत और द्वेष से दूर रहकर प्रेम और सद्भाव को अपनाना चाहिए। हमें नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए। कर्मों का प्रभाव हमारे वर्तमान जीवन पर पड़ता है। सकारात्मकता का संचार हमें अच्छा करने के लिए प्रेरित करती है।  प्रेम और सद्भाव से भरे कर्म हमारे जीवन में सकारात्मकता लाते हैं और हमारे आसपास एक सुखद माहौल बनाते हैं। इससे न केवल हमारा व्यक्तिगत जीवन समृद्ध होता है बल्कि सामूहिक रूप से समाज में शांति और एकता का प्रसार होता है। हमारे अच्छे और बुरे कर्म ही अगले जन्म में हमारे जन्म स्थान और स्थिति को तय करते हैं। अच्छे कर्मों का परिणाम सुखद हो सकता है, जबकि बुरे कर्म हमें चुनौतियों का सामना कराते हैं। यह अनिश्चितता हमें प्रेरित करती है कि हम अच्छे कर्मों को अपनाएं और दूसरों के प्रति प्रेम और सद्भाव बनाए रखें। नफरत और द्वेष फैलाने से समाज में अशांति और तनाव का माहौल बनता है। नकारात्मक ऊर्जा हमारे मानसिक स्वास्थ्य और आपसी संबंधों को नुकसान पहुंचाती है। मनुष्य का पुनर्जन्म किसी भी योनि में हो सकता है—चाहे वह पशु, पक्षी, कीट आदि हो। तो, अगर प्रकृति इतनी विशाल विविधता में पुनर्जन्म का निर्णय ले सकती है, तो यह भी संभव है कि हमारा पुनर्जन्म विपरीत परिस्थिति में हो तब सर्वाइवल ऑफ दी फिटेस्ट में फसेंगे।हमारे प्राचीन वेद-पुराणों में पुनर्जन्म का उल्लेख मिलता है, क्योंकि जब हम दूसरों के प्रति प्रेम और सहानुभूति का भाव रखते हैं, तो यह हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सकारात्मकता लाता है। प्रेम का माहौल हमारे समाज में एकता को बढ़ावा देता है और हमारे संबंधों को मजबूत बनाता है और फिर हमारा कर्म अच्छा होता चला जाता है और फिर ईश्वर हमें दूसरा अवसर देता है।  प्रेम से भरा जीवन मानसिक शांति और आंतरिक संतोष को बढ़ाता है। यह न केवल हमें बल्कि हमारे आसपास के लोगों को भी खुशहाल बनाता है। आवश्यक है कि हम नफरत और द्वेष से दूर रहें, क्योंकि यही नकारात्मकता हमें अस्थिर बनाती है। प्रेम और सद्भाव ही जीवन का असली सार है, जो हमें संजीवनी शक्ति प्रदान करता है। कर्मों में प्रेम को समावेशित करना ही हमें सच्चा संतोष और सुख दे सकता है। इससे न केवल हमारा वर्तमान जीवन संवरता है बल्कि हमारी आगामी पीढ़ियों के लिए भी एक उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित होता है। वेदों में गैर-वैदिक धर्मों का उल्लेख: चूँकि इस्लाम, ईसाई धर्म जैसे गैर-वैदिक धर्म उस समय अस्तित्व में नहीं थे, इसलिए हमारे प्राचीन ग्रंथों में इन धर्मों में पुनर्जन्म का उल्लेख नहीं है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि ये संभावनाएं असंभव हैं, बल्कि यह इस बात को दर्शाता है कि वेद-पुराण अपने समय के सीमित संदर्भ में थे। इस प्रकार, जब पुनर्जन्म का कोई निश्चित पैमाना नहीं है, तो प्रेम और सद्भाव का मार्ग ही हमें सच्ची सुरक्षा और शांति प्रदान कर सकता है। नफरत और द्वेष छोड़कर, हमें अपने कर्मों में प्रेम को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि हम अपने जीवन को न केवल वर्तमान में बल्कि भविष्य में भी सौम्य और संजीवित बना सकें। कर्म की विवेचना अगर उदाहरण से समझें तो शीघ्र सेवा निवृत होने  वाले चीफ जस्टिस डी वाय चंद्रचूड़ के बारे में अब अफवाहे हवाओ में तैर रही है। इस दौर में जब देश की अधिकांश संस्थाए और उन पर बैठे लोग सत्ता लोभी  हो गए हो तब श्री चंद्रचूड़ के बारे में कहा जाता था कि इन्होने अपनी रीढ़ मजबूत बनाए रखी है। लेकिन जब से उनका भगवान् से संवाद करने का बयान आया है तबसे यह उम्मीद  नजर आने लगी है की अच्छा कर्म ही सर्वोच्च है । इंदिरा जी के आदेश की अवहेलना करने वाले जस्टिस एच आर खन्ना चीफ जस्टिस नहीं बन सके लेकिन इतिहास में आदर के साथ स्थापित हुए। पूर्व चीफ जस्टिस काटजू को  ‘द वायर ‘पर सुनिए ! अच्छे कर्म का महत्व समझ आ जायेगा। बोन्साई बनाने की विधा जापान में विकसित हुई है लेकिन भारत में अब अफवाहों के गमले में फल फूल रही है। कितने ही प्रतिभाशाली विशाल बरगद झूठ की  बोन्साई बन कर कुकर्म के गमलों में ख़ुशी ख़ुशी दिन काट रहे है !

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