कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
‘‘बाप रे इतने सारे नोट’’ आम आदमी के मुख से तो यह वाक्य निकल ही जाता है जब किसी के घर से नोटों की ढेर सारी गड्डियां बरामद होती हैं । चलो अच्छा है इस बहाने आम आदमी नोटों को भी देख लेता है और नोटों की गड्डियों को भी वरना अब तो बैंक के कांउटर पर भी ऐसी गड्डियां दिखाई नहीं देतीं । कैसे दिखाई देगीं जब भ्रष्ट लोग अपने घरों मे ही नोटों की गड्डियां सजा कर रखने लगे हैं । झारखंड के एक मंत्री के ओएसडी के विष्वसनीय चपरासी के घर से नोटों की गडिडयां मिलीं इसके पहले भी यहां एक नेता के घर से ऐसे ही गड्डियां मिल चुकी हैं । बेदर्दी से रखी गई इन गड्डियों का राज ख्ुला तो सभी भौंचक । वैसे अब भौंचक होने की जरूरत नहीं हैं जाने कितने नेताओं और अधिकारियों के घर ऐसी जाने कितनी गड्डियां बरामद हो चुकी हैं और यदि ईडी यूं ही किसी भी नेता या अधिकारी के घर चली जाए तो ऐसी गड्डियां बरामद होने की संभावना बनी रहती है इसके लिए किसी गुप्तचर की सूचना की जरूरत है भी नही । आम मध्यमवर्गीय परिवार हर बार न्यूज चैनलों मे दिखाई जाने वाली इन गड्डियों को हसरत भरी नजरों से देखता है । वह मन ही मन सोचता है कि काष एक गड्डी ही उसे मिल जाए तो उसके बेटे की फीस जमा हो जाए याकि एक गड्डी मिल जाए तो उसके घर राषन आ जाए । वह थैला लेकर अनाज मंडी जाता है और उत्सुकता भरी नजरों से अनाज से भरे बोरों को देखता है फिर अपने जेब में गुड़मुड़ी रखे नोट को देखता है । जितने उसके पास रूपए होते हैं उतने में अनाज नहीं आ पाता । सरकार गरीबों को तो राषन दे रही है पर मध्यवर्गीय अभी भी थैला लेकर बाजार के चक्कर लगा रहा है ‘‘तेरे दर पर आया हूॅ’’ । आ गए हो तो चले जाओ कोई मतलब नहीं है आने का । केजरीवाल भी जेल से घर आ गए भले ही कुछ दिनों के लिए आये हों, वैसे उनको इतने जल्दी जमानत मिलना भी आष्चर्यजनक है क्योंकि उनकी ही पार्टी के कई नेता कई महिनों से जेल में हैं, पर केजरीवाल खुष किस्मत हैं कि उनको जमानत मिल गई । उनकी प्रसन्नता भी जायज ही है । अब वे जमानत पर आ गए तो आम मतदाता के पास जाकर ‘‘तेरे दर पर आया हूॅ’’ गा रहे हैं । चुनाव चल रहे हैं हर एक प्रत्याषी मतदाता के दर पर खड़ा हो रहा है कुछ तो पैरों पर भी गिर रहे हैं । आम मतदाता इन एक महिना का राजा होता है । उसके आषीर्वाद की जरूरत उन्हें होती है जिन्हें बाकी के महिनों और वषर्रें तक राजा बने रहना है । वे मतदाता के घरों के चक्कर लगा रहे हैं ‘‘तेरे दर पर आया हूॅ’’ । मतदाता अब समझदार हो गया है उसे मालूम है कि वे तो आयेगें ही उसे मनायेगें ही और उसे भी वोट तो देना ही है । वह वोट देता भी है, वोट तो हर एक को देना भी चाहिए । वोट देते समय उसके सामने ‘‘तेरे दर आया हूॅ’’ वाले का चित्र उभर आता है । वह बटन दबाता है और काली स्याही पुती उंगली दिखाता हुआ मैंने मतदान किया की फोटो सेल्फी के रूप में ले लेता है । वह आम मतदाता है इसलिए उसे अपनी फोटो खुद ही लेनी है जो खास मतदाता होते हें उनकी फोटो लेने के लिए दर्जनों कैमरे चमकते रहते हैं । ऐसे ही एक कैमरे में दो नेता फंस गए । बेचारो अपने नन्हें बच्चों को भी मतदान करने साथ लेकर गए थे । बच्चों ने उत्सुकता प्रकट की होगी ‘‘दादाजी मतदान कैसे होता है’’ तो दादाजी को लगा होगा कि चलो इसे भी दिखा ही दें कि मतदान कैसे करना है । पर कैमरे ने फोटो खींची और उस नादान बच्चे के साथ नेताजी का भी चित्र उभर कर आ गया अब निर्वाचन आयोग उन पर कार्यवाही कर रहा है ‘‘बच्चों को अनाधिकृत रूप् से मतदान केन्द्र तक ले जाना गैर कानूनी है’’ । नेताजी इसे जानते होगें जो मतदान दल है वो भी जानता ही होगा पर नेताजी की हेकड़ी के मारे वो चुप रहा होगा अब उस मतदान दल पर भी कार्यवाही हो रही है । बेचारे कर्मचारी ‘‘तेरे दर पर आया हूॅ’’ भी नहीं कह पा रहे हैं । चुनाव चल रहे हैं कुछ चरणों का चुनाव निपट चुका है मतलब वहां के नेता ‘‘तेरे दर पर आया हूॅ’’ की भावना से ऊपर उठ चुके हैं अब वे अपनी जीत हार का गणित लगा रहे हैं और किसने उनके ‘‘तेरे दर पर आया हूॅॅ’’ के बाद भी सपोर्ट नहीं किया का सोचकर दांत पीस रहे होगें । जिन सीटों में अभी मतदान होना है वहां यह गाना ‘‘तेरेे दर पर आया हूॅ’’ ट्रांसफर कर दिया है ‘‘अब मुझे इसकी जरूरत पांच साल बाद पड़ेगी तू ले जा…और अपनी जरूरत पूरी कर’’ । दूसरों ने उसे अपने कब्जे में कर लिया अब दूसरे मतदताओं के घरों के सामने जाकर चिल्ला रहे हैं ‘‘तेरे दर पर आया हूॅ’’ । अभी तो चुनावों को और आगे तक जाना है । सारे बड़े नेता व्यस्त हैं उन्हें अभी चैन नहीं है वे एक के बाद एक सभायें कर रहे हैं, वे एक एक गलियों में मई की तेज तपन में भी घम रहे हैं अभी उन्हें न तो गर्मी लग रही है और न ही तपन का अहसास हो रहा है । यही समय है मेहनत करने का । यह मेहतन ही उन्हें पांस सालों के लिए एसी प्रदान करेगी और चार पहिया वाहन भी देगा। वे अगले साल वाली मई में एसी रूम में बैठकर मई की तेज तपन को इंज्वाय करेगें और आम मतदाता तो गर्मी में बिना बिजली के भी रह ही लेता है । तब तक वह भी भूल ही जायेगा कि ‘‘तेरे दर पर आया हूॅ’’ का कोई राग भी होता है । चुनाव का दौर अब अंतिम चरणों में है सो नेताओं का पार्टी बदलना बंद हो गया है, जो आ गए सो आ गए जो रह गए सो रह गए । बहुत सारे लोग आ चुके हैं अभी तो इनकी ही गिनती पूरी नहीं हो पाई है जो आए हैं उनका नाम भी रजिस्टर में लिखना है ताकि कल को कुछ हो जाए और वो कहे कि ‘‘मैं तो फलां पार्टी का हूॅ’’ तो रजिस्टर देखकर चेक तो किया जा सके । जो आ रहे हैं वे भी ऐसे ही बुरे दिनों की सुरक्षा में आर रहे हैं, जो जा रहे हैं वे भी बुरे दिन न आयें के भावों के साथ जा रहे हैं’’ । जाने वाला भले ही जहां से जा रहा हो वहां से ‘‘टा…..टा….बाय…बाय’’ करके न जाए पर जहां जा रहे हैं वहां जाकर जरूर गाता है ‘‘तेरे दर पर आया हूॅ’’ । आवक-जावक थम चुकी है । दोनों पार्टी वालें अब सुस्ता रहे हैं जिस पार्टी से कोई गया है आखिर उसे भी तो अपने रजिस्टर से उसका नाम खरिज करना पड़ता है नहीं तो मालूम पड़ा कि किसी दिन उसकी ड्यूटी कहीं लगा दी जैसे कर्मचारियों की डयूटी लगा दी जाती है भले ही उसे रिटायर्ड हुए सालों हो गए हों । जो ड्यूटी लगाता है वह तो केवल रजिस्टर ही देख्ता है ‘‘फलांने जी…..अच्छा इन्हें वहां भेज दो’’ । पर फांलाने जी तो पहले से ही कहीं और जा चुके हैं । चुनाव चल रहे हैं केवल पष्चिम बंगाल ही ऐसा प्रदेष जहां चुनावों के साथ ही साथ बम भी चल रहे हैं और लाठियां भी भांजी जा रही है । समाचारों से साफ-साफ पता नहीं चलता कि कौन किसको मार-पीट रहा है पर हिंसा हो रही है यह जाहिर हो जाता है । प्रधानमंत्री जी तो रैलियां और आमसभाओं में व्यस्त हैं ‘‘अभी यहां तो कुछ देर बाद वहां’’ । उनके चेहरे पर थकान नहीं दिखाई देती । वैसे भी जिम्मेदार नेताओं के चेहरे पर थकान नहीं आती वे तो सुनहरे भविष्य कर चाह में वर्तमान को दांव पर लगा देते हैं । हर एक बड़ा नेता व्यस्त है…उसें ठंडा जल पीने की भी ुफरसत नहीं है ‘‘तेरे दर पर आया हूॅ’’ के भावों को लेकर वह यहां-वहां डोल रहा है । राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ रहे हैं कभी सोनिया गांधी इस सीट से सांसद थीं । वे अब चुनाव नहीं लड़ रही हैं तो राहुल गांधी को मैदान में उतार दिया । राहुल गांधी को तो सत्तारूढ़ दल के नेता चना के पेड़ पर चढ़ा कर ऐसे ही बदला लेते रहते हैं । दम हो तो अमेठी से लड़ो….यदि लड़ लिया तो वायनाड के मतदाताओं को धोख दे रहे हैं कहने लगेगें । राहुल गांधी रायबरेली से लड़े तो अब रायबरेली से क्यों लड़े…..यदि नहीं लड़ते तो कहते हिम्मत नहीं थी इसलिए वे रायबरेली से नहीं लड़े । पर राहुल गांधी लड़ रहे हैं । प्रियंका गांधी उनके लिए मोर्चा संभाले हुए हैं । रिजल्ट क्या आता है यह तो नहीं कहा जा सकता पर इतना तो अवष्य है कि राहुल और प्रियंका गांधी पूरी दमखम के साथ मुकाबला कर रहे हें । चुनाव तो अभी चलेगें और परिणाम दो जून को आयेगें । परिणाम आने के बाद आने वाले पांच सालों का भविष्य तय हो जायेगा । आम मतदाता अपने-अपने कामों में लग जायेगा और पांच साल बाद बजने की संभावना वाले गाने ‘‘तेरे दर पर आया हूॅ’’ का उत्सुकता के साथ इंतजार करता रहेगा । जो जीत जायेगा वह जष्न मनायेगा । जो जष्न मनायेगा उससे जो हार गया है वह चिढ़ेगा । जो चिढ़ेगा वह घर बैठ जायेगा और विरोध के नए स्वर खोजेगा । यही जीवन चक्र है और ही राजनीति का चक्र भी है ।