पंकज कुमार मिश्रा, राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी
यूपी सीमा का दायरा बड़ा है, अलग पूर्वांचल राज्य जरुरी हो गया है क्यूंकि यहां के लोग किसानी और बेरोजगारी से तंग आ चुके है। युवा पलायन कर रहें। वहीं पश्चिम बंगाल के कई जिले मुख्य धारा से अलग थलग पड़े है । दोनो राज्यों में विकास योजनाओं में होता है पक्षपात। पूर्वांचल के लोगो को और आर्थिक विस्तार की आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश बड़े राज्यों में गिना जाता है। दिल्ली की कुर्सी यूपी चुनाव परिणामों पर काफ़ी हद तक निर्भर करती है। यूपी के युवा राजनीति में अधिक सक्रिय दिखाई देते है जो बेरोजगारी का मुख्य कारण बनता जा रहा। अकेले जौनपुर और वाराणसी से कई ऐसे युवा आज जाने माने चेहरे बने जिन्होंने पूरे विश्व में नाम कमाया वहीं आर्थिक विश्लेषण करें तो समग्र बेरोजगारी के मामले पूर्वी यूपी पश्चिमी यूपी की अपेक्षा अधिक पीछे नजर आती है । पश्चिमी यूपी शिक्षा और तकनिकी के साथ साथ खेल कूद का हब बनता जा रहा वहीं पूर्वी यूपी में केवल बिज़नेस टाईकून बढ़े है, औसत कमाई घटी है। बीते दिनों बनारस के मालवीय पुल से 19 लोगो नें आर्थिक और सामाजिक तंगी से झूझते हुए झलांग लगाई है। ऐसे में अब वक्त है यूपी का पुनः परिसीमन हो और अलग पूर्वांचल राज्य बनाया जाए । जनपद के राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार पंकज सीबी मिश्रा नें कहा की अलग पूर्वांचल राज्य कि मांग कोई नई नहीं है और उधर प. बंगाल के एक और विभाजन की मांग भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तथा केन्द्रीय राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने उठाई है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात कर उत्तरी बंगाल के 8 ज़िलों को मिलाकर केन्द्र शासित राज्य बनाने का प्रस्ताव दिया है। उनके अनुसार इससे इस क्षेत्र का सिक्किम की तरह विकास करने में मदद मिलेगी। बंगाल के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मजूमदार चाहते हैं कि कूचबिहार, दार्जिलिंग, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, जलपाईगुड़ी, अलीराजपुर, मालदा और कलिम्पोंग को मिलाकर केन्द्र शासित प्रदेश बनाया जाये। यह मांग चाहे पश्चिम बंगाल के विकास के नाम से की गयी हो लेकिन इसके पीछे भाजपा का सियासी मकसद ही नज़र आता है। इसके कई कारण हैं। पहला तो यह कि 2021 में पूर्व केन्द्रीय मंत्री जॉन बारला और मजूमदार ने ही इस मांग को उठाया था परन्तु जब इस पर हो-हल्ला हुआ तो मजूमदार ने इस मांग से खुद को अलग कर लिया था। पश्चिम बंगाल को फिर से विभाजित करने की मांग भी उठ रही है। जहां एक ओर उत्तरी बंगाल के इन 8 जिलों को मिलाकर नया प्रदेश बनाने की मांग अब उठाई गई है, वहीं इसी इलाके के अलग-अलग हिस्सों को मिलाकर तीन राज्य बनाने की मांग उठती रही है। दार्जिलिंग में गोरखालैंड, कूचबिहार में ग्रेटर कूचबिहार और कामतापुरी की मांगें पुरानी हैं। इसके पहले 1905 में औपनिवेशिक शासनकाल के दौरान तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड कर्जन ने अविभाजित बंगाल प्रांत को विभाजित करने का प्रस्ताव रखा था। इस पहल के ख़िलाफ़ पूरे देश, खासकर बंगाल सूबे में ज़बरदस्त आंदोलन उठ खड़ा हुआ था जिसके कारण अंग्रेजों को वह प्रस्ताव वापस लेना पड़ा था। ‘बंग भंग आंदोलन’ के नाम से यह इतिहास के पन्नों में दर्ज़ है। इसके बाद आजादी जब मिली तो सिंध प्रांत पूरा अलग हो गया और पंजाब के विभाजन के साथ ही इसी बंगाल का एक हिस्सा भी अलग होकर ‘पूर्वी पाकिस्तान’ कहलाया। 1971 में भाषा के आधार पर हुए एक जनविद्रोह ने शेष पाकिस्तान से अलग होकर खुद को ‘बांग्लादेश’ के नाम से पृथक राष्ट्र बना लिया। वैसे उधर झारखंड के विभाजन की मांग भी उठाई जा रही है। इन दोनों ही मांगों के पीछे विकास का कारण है या राजनीति ! झारखंड से कुछ इस तरह के संकेत मिल रहे कि वहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान भाजपा भी कुछ इसी प्रकार के हथकंडे अपनाने की जुगत में लगी है। झारखंड के भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने तो झारखंड के संथाल परगना, बिहार के किशनगंज, कटिहार व अररिया और प. बंगाल के मालदा व मुर्शिदाबाद को मिलाकर केन्द्र शासित प्रदेश बनाने की मांग की है। इसके पीछे उनका तर्क यह है कि टीएमसी की उदार नीति के कारण बांग्लादेश के शरणार्थी भारत आ रहे हैं और इन इलाकों में फैल रहे हैं। उनका यह भी आरोप है कि संथाल परगना में आदिवासी आबादी अब घटकर 26 प्रतिशत रह गयी है जबकि पहले वे 36 प्रतिशत थे। उन्होंने आरोप लगाया है कि सुनियोजित तरीके से हिन्दू आबादी को कम किया जा रहा है। वैसे बता दें कि बंगाल और झारखण्ड के ये जिले काफी संवेदनशील है क्योंकि इन जिलों की सीमाएं बांग्लादेश, नेपाल, भूटान से लगती हैं। यहां के कई संगठन उत्तरी बंगाल को अलग करने की मांग करते रहे हैं जिनके पीछे राजनीतिक शह बतलाई जाती रही है। राज्यों के विभाजन या पुनर्गठन से किसी को कोई दिक्क़त नहीं होनी चाहिए।