“समझने वाले समझ गए, जो न समझे वो अनाड़ी है ” यह तो गाने की पंक्तियां हैं पर इन्हें वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों से जोड़ कर भी देखा जा सकता है । वित्त मंत्री ने संसद में बजट प्रस्तुत किया और हंगामा खड़ा हो गया । वैसे विगत कुछ वर्षों से यह महसूस किया जाने लगा है कि विपक्ष मतलब हंगामा खड़ा करना । यह उनकी अपनी परिभाषा है, उन्होंने ने ही इसे बनाई है और वे ही इस पर अमल भी करते हैं । तो बजट प्रस्तुत किया गया और हंगामा खड़ा कर दिया गया दोनों बातें एक दूसरे की पूरक हैं । आरोप यह कि दो राज्यों को बजट में बहुत बड़ी राशि दे दी गई है । अब हंगामा करने के लिए यह कोई बात नहीं हुई । कल तक तो वो खुद ही बोलते थे कि बिहार बहुत पिछड़ा राज्य है इसे विशेष राज्य का दर्जा दो ताकि इसका विकास हो सके अब केन्द्र सरकार ने विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया पर विकास के लिए राशि दे दी तो हंगामा खड़ा करने की क्या जरूरत है? यह तो सच है कि वर्तमान केन्द्र सरकार दो वैशाखियों के बल पर खड़ी है, एक आन्ध्र और दूसरी बिहार तो इन राज्यों पर विशेष इनायत तो रहेगी ही “जो न समझे वो अनाड़ी है” । विपक्ष इतना अनाड़ी तो नहीं है कि वो इतनी जरा सी बात न समझे और समझ गए हो तो तंज क्यों कह रहे हो । रहा सवाल अन्य राज्यों का तो एक ही बजट में देश के सारे राज्यों को तो खुश किया नहीं जा सकता है । वैसे तो वित्त मंत्री कह ही रहीं हैं कि उन्होंने लगभग हर राज्य को कुछ न कुछ दिया ही है तो पहले बजट का विश्लेषण कल लेते पढ़ लेते और समझ लेते फिर प्रतिक्रिया व्यक्त करते पर वे जल्द बाजी में हैं वे बगैर पढ़े प्रतिक्रिया देते हैं, प्रतिक्रिया देने के लिए पढ़ने की क्या जरूरत है । वे जानते है कि वे विपक्ष में हैं तो उन्हें हंगामा करना है इस बात के लिए पढ़ने की क्या जरूरत । संसद में हंगामा चल रहा है हर बार यह ही होता है बात कुछ भी हो और बात कुछ न भी हो तो भी हंगामा करना है । इस बार तो विपक्ष अधिक संख्या में हैं तो हंगामा भी जोरशोर से हो रहा है । यह तो होता ही रहेगा क्योंकि ” जो न समझे वो अनाड़ी है” । वैसे तो नीति आयोग की बैठक में लगभग सारे राज्यों के मुख्यमंत्री गायब रहे पर ममता बनर्जी चलीं गईं । वे जब बैठक में गईं तो लगा विपक्ष में टूट मच गई है । वैसे भी ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ कम्फ़र्टेबल नहीं हो पा रही है वे गाहे बेगाहे कांग्रेस को कोसती रहतीं हैं और कांग्रेस की ओर से अधीर रंजन चौधरी उन्हें कोसते रहते हैं । इस कोसा-कोसी के बीच वे इंडिया गठबंधन में साथ भी हैं । लोकसभा चुनाव में भाजपा के पूरे और जबरदस्त प्रयासों के बाद भी ममता बनर्जी की पार्टी जीत गईं और पहले से अधिक सांसदों को लेकर लोकसभा पहुंची तो ममता बनर्जी का कद भी बढ़ा और घमंड भी बढ़ा । फिर विधानसभा के उपचुनाव में भी वे जीत गईं तो सिर और सीना और चौड़ा हो गया । इस चौड़े सीने के साथ उन्होंने ऐसे समय जब सारे विपक्षी दल कह रहे थे कि हम नीति आयोग की बैठक में नहीं जायेंगे तब ममता बनर्जी ने घोषणा कर दी कि वे तो इस बैठक में सम्मिलित होंगी सो वो बैठक में गईं और कुछ ही देर में बड़बड़ाते हुए वापस भी आ गई । आरोप वही कि उन्हें बोलने का पर्याप्त समय नहीं दिया गया । सरकार के मंत्री अब आंकड़ों के साथ बता रहे हैं कि उन्हें समय दिया गया और यदि वो आग्रह करतीं तो और समय दिया जा सकता था पर उन्होंने ऐसा किया ही नहीं है । वैसे तो यह भी लगता है कि ममता बनर्जी बैठक में क्या बोल दें यह भय बना रहा हो तो सावधानी के चलते उन्हें वाकई कम समय दिया गया हो पर यह भी तो लगता है कि ममता बनर्जी एक योजना के साथ बैठक में गईं हों कि समय का आरोप लगा कर हंगामा किया जा सके । हंगामा तो खड़ा हो ही गया है ” समझने वाले समझ गए न समझे वो अनाड़ी है” । बहरहाल नीति आयोग की बैठक में नीति क्या बनी यह सुखिर्यां नहीं बन पाया ममता बनर्जी के साथ अन्याय हुआ है यह सुर्खियां छाईं रहीं । हो सकता है कि सभी विपक्षी दल भी इस योजना में शामिल रहे हो । हंगामा तो उत्तर प्रदेश में भी छाया हुआ है । ऐसा माना जा रहा है कि इसकी कमान उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने संभाल रखी है । केशव प्रसाद मौर्य वो नेता हैं जिनके नेतृत्व में वो चुनाव लड़ा गया था जिसमें भाजपा ने समाजवादी पार्टी को हरा कर उत्तर प्रदेश में भाजपा को आरूढ़ कराया था । उस समय भी मुख्यमंत्री के लिए वे सबसे ज्यादा मजबूत नेता थे, उनका नाम भी सबसे आगे ही था और लगने लगा था कि वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे, योगी जी तो उस समय लोकसभा में थे । पर भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य को दरकिनार कर योगी जी को राजसिंहासन सौंप दिया और केशव प्रसाद मौर्य मुख्यमंत्री बनने की जगह उपमुख्यमंत्री ही बन कर रह गए । दूसरी बार भी यही हुआ पर आखिर कब तक वे अपनी हसरतों को दबाए रख सकते हैं । जब तक मौका नहीं मिला तो वे खामोश रहे पर जब मौका मिला तो मुखर हो गए । यदि लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में तगड़ी हार का सामना न करना पड़ता तो वे अब भी खामोश ही बने रहते पर आश्चर्यजनक ढंग से भाजपा को बहुत सारी सीटों का नुक़सान हो गया जिसके कारण ही केन्द्र की सरकार का भी गणित डगमगा गया तो मौका अच्छा है चोट कर दो इस स्टाइल में केशव प्रसाद मौर्य ने सत्ता और संगठन पर लंबा चौड़ा भाषण दे दिया, ताली बजीं तो उन्हें महसूस हुआ कि यह ही कमजोर नस है क्योंकि बार बार यह आरोप लगाये जा रहे थे कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के कारण भाजपा को उत्तर प्रदेश में नुकसान हुआ है । केशव प्रसाद मौर्य ने इस कमजोर नस को समझ लिया है । वैसे तो यदि उत्तर प्रदेश में लोकसभा में भाजपा को कम सीट न मिलतीं तो योगी जी को हिला पाने के सपने देखना भी कठिन था वे तो मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री तक के प्रबल दावेदार माने जाने लगे थे । पर लोकसभा चुनाव ने उनका गणित बिगाड़ दिया तो केशव प्रसाद मौर्य ने उसे कैच कर लिया और बगावती स्वर प्रखर कर लिए । वैसे अंदाज यह भी लगाया जा रहा है कि केशव प्रसाद मौर्य के पीछे भी किसी बड़े का हाथ है । यह हाथ होगा भी क्योंकि योगी जी मोदी जी के बाद की पंक्ति के प्रथम दावेदार माने जाने लगे थे । जो सपने में अपने आप को मोदीजी के बाद में देख रहे थे उन्हें तो परेशानी होगी ही तो अब * समझने वाले समझ गए जो न समझे वो अनाड़ी है ” । बहरहाल यह खींचतान तो अब प्रारंभ हो चुकी है और इसका जब भी अंत होगा वह मुख्यमंत्री बदले जाने के साथ ही होगा । संभवतः अभी उत्तर प्रदेश में दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव तक तो कुछ नहीं होने वाला पर यदि इन उपचुनावों में भाजपा को नुक्सान होता है और वह पराजित होती है तो विरोध के स्वर और मुखर होंगे तब योगी जी को परेशानी भी होगी साफ है कि अब विरोध का कांरवा आगे ही बढ़ेगा । दिल्ली में प्रतिदिन की भांति धरना प्रदर्शन जारी हैं । दिल्ली में भाजपा के लिए यह रोजमर्रा का काम हो गया है । सुबह उठते ही भाजपा कार्यकर्ता यह ही पता लगाने का काम करता है कि आज किस विषय पर धरना देना है, स्थान तो उसे ज्ञात ही रहता है वह लगभग तय है, समय तय है केवल विषय तय नहीं होता रोज नए विषय चाहिए और मिल भी जाते हैं तो धरना प्रदर्शन का विषय तय होते ही पोस्टर बैनर बनवा लिये जाते हैं । कई पोस्टर बैनर बनाने वालों का रोजगार ही इनसे चल रहा है । पोस्टर बैनर हाथ में आते ही धरना प्रदर्शन प्रारंभ हो जाता है नारा तो अमूमन एक सा ही होता है । कुछ फिक्स चैनल वाले अपने माइक लेकर फिक्श नेताओं के पास पहुंच जाते हैं और वो अपनी आवाज को बुलंद कर आरोप लगाते रहते हैं । आप पार्टी के पास भी फिक्स नेता हैं जिन्हें लगाए जा रहे आरोपों का उत्तर देना होता है । न वे बोर हो रहे हैं और न ही वे पर “समझने वाले समझ गए ना समझे वो अनाड़ी है”