व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम् ।दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते।। अर्थात् व्रत धारण करनेसे मनुष्य दीक्षित होता है, दीक्षासे उसे दाक्षिण्य (दक्षता, निपुनता) प्राप्त होता है, दक्षताकी प्राप्तिसे श्रद्धाका भाव जाग्रत होता है और श्रद्धासे ही सत्यस्वरूप ब्रह्मकी प्राप्ति होती है । (यजुर्वेद १९ । ३०)। भारतीय संस्कृतिका यही लक्ष्य है कि, जीवनका प्रत्येक क्षण व्रत, पर्व और उत्सवों के आनंद एवं उल्लास से परिपूर्ण हो । इनमें हमारी संस्कृति की विचारधारा के बीज छिपे हुए हैं। यदि भारतीय नारी के समूचे व्यक्तित्व को केवल दो शब्दों में मापना हो तो ये शब्द होंगे- तप एवं करुणा । हम उन महान ऋषी-मुनियों के श्रीचरणों में कृतज्ञता पूर्वक नमन करते है कि उन्होंने हमें व्रत, पर्व तथा उत्सव का महत्त्व बताकर मोक्ष मार्ग की सुलभता दिखाई ।नारियों के लिए ‘करवाचौथ’का व्रत अखंड सुहाग को देनेवाला माना जाता है । विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की मंगलकामना करके भगवान रजनीनाथ (चंद्रमा) को अर्घ्य अर्पित कर व्रतका समापन करती हैं। स्त्रियों में इस दिन के प्रति इतना अधिक श्रद्धाभाव होता है कि वे कई दिन पूर्व से ही इस व्रत की सिद्धताका प्रारंभ करती हैं। करवाचौथ नारी के अखण्ड सौभाग्य का, मन के विश्वास का, अदम्य सहनशक्ति व स्नेह के धागों का परिचायक है। इस त्योहार के आने से ही नारी की सोलह श्रृंगार की छवि सामने आ जाती है। अनुपम, अद्वितीय रुप में श्रृंगार की प्रतिमा बनी नारी भारतीय संस्कृति को अपने में समेटे भारत के गुण-गौरव गाथा को बयान करती नजर आती है। खनकती चूड़ियां, मेहंदी सजे हाथ, दमकती बिंदिया, सिंदूरभरी मांग, गले में मंगलसूत्र, घुंघरु बजती पायल पहने नारी ना केवल रुप सौंदर्य की प्रतिमा है, बल्कि संपूर्ण नारित्व की परिभाषा लगती है। प्राचीन नारियां तो करवा चौथ की परंपरा परिपाटी को पूर्णतः मानती ही है, आधुनिकता के आवरण में लिपटी नारियों के लिए भी इस त्योहार की गरिमा कम नहीं है। अपने जीवन साथी के लिए निराहार व्रत रखकर यम से भी लौटा लाने की अद्भुत शक्ति को अपने आंचल में समेटे नारी किसी दिव्यता की परछाई सी ही दृष्टिगोचर होती है।
पति की दीर्घायु के लिए निर्जल व्रत रखना नारी के प्रेम व सहनशक्ति का ही परिचायक है। सदियों की परंपरा को निभाती नारी हर युग में इस त्योहार की गरिमा को संभालने में स्वयं को गौरवान्वित महसूस करती है, पति को ही जीवन का आधार मानने वाली नारी हमेशा पति के सुख में ही अपना सुख देखती है। पढ़ी-लिखी कामकाजी महिला हो या घरेलू पति के साथ अपने गठबंधन को मजबूत और सशक्त ही बनाये रखना चाहती है। अपने प्यारे से रिश्ते के प्रति महिलाएं सदैव से ही वफादार रही हैं और भावनात्मक रुप से हर रिश्ते को निभाती भी हैं। क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर बैठे श्री विष्णु भगवान की प्रिया मां लक्ष्मी देवी जो सारे संसार को अपनी ज्योति से प्रदीप्त करती हैं, वह भी अपने पति के चरणों में बैठी दिखाई देती हैं।
भगवान राम के साथ मां सीता वन-वन भटकी पर उनका साथ नहीं छोड़ा, पार्वती मां ने अपने पति शिव के अपमान पर अपने प्राण त्याग दिये, मन्दोदरी की खुशी अपने पति के चरणों में ही थी। देवत्व भाव रखने वाली नारियां भी जब पति से प्रेम रखने वाली हैं तो मानव रुप में जन्मी नारियों के लिए तो पति निश्चित रुप से उनका सर्वस्व है, फिर उसकी दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत रखना किसी दिव्यता से कम नहीं,पति से श्रेष्ठ कुछ नहीं। इतिहास साक्षी है कि जब भी नारियों ने कोई संकल्प लिया है, यम के द्वार से भी अपने पति को लौटा लाई हैं, सावित्री इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
करवा चौथ यदि उस परमात्मा के निकट जाकर जीवन को खुशियों से भर देने का त्योहार है, तो ये त्योहार हर सुहागिन के लिए ईश्वर का वरदान है। रिश्तों की मिठास का ये त्योहार हर घर की खुशियां बनाए रखे, यही इस त्योहार का संदेश भी है। करवा चौथ का व्रत हमेशा से अपनी गरिमा के कारण संसार में प्रसिद्ध है और रहेगा। चन्द्र की झलक के लिए करवे के जल की महत्ता को स्वीकार कर, निराहार रहकर पति की दीर्घायु की कामना करना हर नारी की प्राथमिकता होती है। ईश्वर करवा चौथ के त्योहार की गरिमा को सदा बनाये रखे व सभी नारियों के सुहाग को अखण्ड रखें।
डॉ. पवन शर्मा