कविता और कहानी
संतोष (लघुकथा)
शाम होते-होते सूरज ढलने लगा। उम्मीदों के दीप बूझने लगे मगर सबको अपना-सा लगने वाला रमेश फिर कभी उन लोगों के बीच कभी नहीं लौटा जिनके लिए आधी रात को भी मुसीबत आए तो तैयार हो जाता था। गॉंव छोड़ शहर की नौकरी में ऐसा उलझा की घर बसाना ही भुल गया। गॉंव भी…
युवाओं को अपनी संस्कृति, कला और विरासत से जोड़कर बनायें एक श्रेष्ठ नागरिक – पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव
युवा आने वाले कल के भविष्य हैं। इनमें आरम्भ से ही अपनी संस्कृति, कला, विरासत, नैतिक मूल्यों के प्रति आग्रह पैदा कर एक श्रेष्ठ नागरिक बनाया जा सकता है। सोशल मीडिया के इस अनियंत्रित दौर में उनमें अध्ययन, मनन, रचनात्मक लेखन और कलात्मक प्रवृत्तियों की आदत न सिर्फ उन्हें नकारात्मकता से दूर रखेगी अपितु उनके…
रेशमा : डॉ सरला सिंह “स्निग्धा”
रेशमा एक बहुत ही सीधी-सादी लड़की थी । जहां उसके साथ की लड़कियां फ़ैशन ,टीवी और मोबाइल में लगी रहती थी वहीं वह उम्र से पहले ही बड़ी हो चुकी थी। रेशमा का पिता शराबी था वह दर्जी का काम किया करता था परन्तु सारी की सारी कमाई अय्याशी और शराब पर लुटा दिया करता…
बुजुर्ग नींव घर की
शोभा शाम को सब्जी खरीदने के लिए बाजार गई होती है तभी उसकी मुलाकात उसकी एक पुरानी सहेली से होती है। दोनों सहेलियां बड़ी गर्म जोशी के साथ मिलती हैं। लगभग 10 साल हो गए होंगे, दोनों को एक दूसरे के बिना देखे हुए लेकिन देखते ही दोनों तुरंत पहचान लेती है। उसकी सहेली कोमल…
26जून अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस
अपनों से प्रेम करो, गफलत से दूर रहो। नशे ने उजाड़ दी, कई जिंदगानियां। भूल गए फर्ज क्या, दूध का कर्ज क्या, छाती से चिपका कर, गायी थी लोरियां । दुर्घटना ऐसी घटी, माता की छाती फटी , नशे ने माताओं की, उजाड़ दी गोंदियां । फेरे जब सात लिए, जन्मो को साथ भये, सपने…
गर्मी पर दोहे : दुष्यंत कुमार
बढ़ रही है गर्मी, द्वार खड़ी है मौत। न जागे गर नींद से, मनाओगे रोज शोक।।१।। काट जंगल वनों को, बन गए खुद यमराज। फँसोगे अपने जाल में, वरना आ जाओ बाज।।२।। नौतपा में दिखी गर्मी, याद आ गयी नानी। पता चला इस दौर में, कितना उपयोगी पानी।।३।। जीव जन्तु भी मर रहे, खुद सराबोर…
तितली के पंख : अरुण कुमार शर्मा
क्या, तितली के पंख को तुमने, हाथ लगा कर देखा है , जिसपर वो मंडराती है, उस फल को खाते देखा है ! क्या देखी है “अरुण” कभी, तनहाई सूरज की बोलो , क्या तुमने रवि की किरणों को, पास से जाकर देखा है! चंदा हँसता है खिलकर, और तारे मुसकाते तो हैं , मुझे…