Latest Updates

आलोचना की प्रासंगिकता

 डॉ. अवधेश कुमार ‘अवध’ आलोचना, समीक्षा या समालोचना का एक ही आशय है, समुचित तरीके से देखना जिसके लिए अंग्रेजी में ‘क्रिटिसिज़्म’ शब्द का प्रयोग होता है। साहित्य में इसकी शुरुआत रीतिकाल में हो गई थी किन्तु सही मायने में भारतेन्दु काल में यह विकसित हुई। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का इसमें महती योगदान है…

Read More

बजट

बजट के माध्यम से बढेगी गरीबों,मजदूरों, किसानो और महिलाओ की शक्ति सभी क्षेत्रों में योजनाओं से होगी वृद्धि राष्ट्र की बढेगी आर्थिक समृद्धि । अमीरो की हाय-हाय गरीबों का सौभाग्य अतिरिक्त टैक्स चार प्रतिशत गरीबों के लिए लाएगा अनेक वित्तीय उपहार। टेक्स स्लैब में बदलाव नहीं पाँच लाख आमदनी वालो को टैक्स देने का अधिकार…

Read More

बरसती फुहारें

बरसती फुहारों में झूमे है मन, चलो उड़ जायें कहीं दूर चलो । लगा पंख मांग किसी पंक्षी के, चलो आज गगन के पार चलो। सारी उलझनें सुला कर कोने में, खुशियों के संग उड़ जायें चलो। कहां से आया है झूमता बादल , चलो इन बादलों के साथ चलो। गीत सीखेंगे कोयल से हो…

Read More

लघुकथा- चौकीदार और चोर

रामभरोसे शहर नया-नया आया था।वह एक सड़क से गुजर रहा था। एक सोसायटी के सामने बहुत ही हो हल्ला हो रहा था। काफी भीड़ जमा थी।  रामभरोसे की भी मामले को जानने की उत्सुकता बढ़ी, वह भीड़ के पास गया और एक आदमी से पूछा, भाई क्या हुआ? आदमी बोला, कुछ नहीं इस सोसायटी के…

Read More

माँ पर लाल बिहारी लाल के कुछ दोहे

माँ जीवन का सार है, माँ है तो संसार। माँ बिन जीवनलालका,समझो है बेकार।1।   माँ की ममता धरा पर, सबसे है अनमोल। माँ जिसने भूला दिया,सब कुछ उसका गोल।2।   माँ सम गुरू नहीं मिले, ढ़ूढ़े इस संसार। गुरु का जो मान रखा,नैया उसका पार।3।   माँ के दूध का करजा,चुका न पाया कोय।…

Read More

पराया घर पराये बोल

शमिता के ससुराल मैं कोहराम मचा हुआ था। जो कोई आता सहानुभूति के साथ-साथ दो टूक शब्द ऐसे कह जाता जो कलेजे को अंदर तक चीर जाते। शमिता के आँख के आँसू तो अब जैसे सूख गये थे, बस मूर्तिवत आने-जाने वालों को देखती रहती। कोई कहता” अरे पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है कैसे कटेगी”…

Read More

अशोक मिज़ाज की ग़ज़ल

सुरों की बज़्म सजाओ नहीं तो चुप बैठो, ग़ज़ल के शेर सुनाओ नहीं तो चुप बैठो। है कौन चोर इधर  कौन चौकीदार इधर, उन्हें पकड़ के बताओ नहीं तो चुप बैठो। मज़ा खराब करो मत फ़िज़ूल बातों से, ज़रा सी और पिलाओ नहीं तो चुप बैठो। चले तो आये हो तुम भी हुनर की महफ़िल…

Read More

यूँ तो बहुत सी चीज़ें अच्छी लगती हैं,

यूँ तो बहुत सी चीज़ें अच्छी लगती हैं, उसे अच्छा लगते रहने को बरक़रार रखने के लिए भी, बहुत सी चीजों का साथ चाहिए जैसे- मौसम का साथ,मिज़ाज का साथ,साथियों का साथ,माहौल , तालुक्कात,रवायत और दिल में ढेर सारा प्यार और जज़्बा……… आसान तो नहीं सब कुछ पा लेना आसान बनाना पड़ता है कभी अन्दाज़…

Read More

संकल्प

दीपू ज्यादातर विद्यालय में देरी से ही पहुँचता था । देर से आने वाले बच्चों की अलग लाइन बनवाई जाती है तथा उनका नाम भी उनकी कक्षा के अनुसार लिखा जाता है ताकि उनके कक्षाध्यापक उन्हें जान सकें और समझा सकें । उस रजिस्टर में नवीं कक्षा में पढ़ने वाले दीपू का नाम एकाध दिन…

Read More

दैर-ओ-हरम में रहने वाले तू जाने क्या पीर मेरी

दैर-ओ-हरम में रहने वाले तू जाने क्या पीर मेरी जरा निकल तो दिखलाऊंगा कैसी है तदबीर मेरी दैर-ओ-हरम में………. तुझको ढूंढा सहरा-सहरा, तुझको खोजा गली-गली कहीं मिला ना तू ऐ मालिक पत्थर की सी बूत ही मिली कैसे हाल सुनाता तुझको ऐ पत्थर दिल ओ रे पीर तुझसे तो अच्छा है बालक सुनता है तहरीर…

Read More