(मनमोहन शर्मा ‘शरण’)
चाइना के वुहान से फैला ‘कोरोना’ वायरस पूरे विश्व के लिए प्रकोप बन गया है जिससे लगातार 180 देश पीड़ित हो चुके हैं । अमेरिका सहित कई अन्य देशों ने शीधा चाइना की ओर इशारा भी किया है और आगाह भी कर दिया है कि यदि इसमें चीन की सोची समझी साजिश का खुलासा हुआ तो उसे परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा ।
इन सबके बीच बहुत बड़ा ‘काश’ आ खड़ा हुआ । काश! वुहान में फैलते ही यदि चीन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को तथा पूरे विश्व को आगाह कर देता….। काश! जब जानकारी में आना शुरू हुआ था तब कई देश इसे हल्के में ना लेते और अपनी हवाई उड़ानों को या तो पूरी तरह से रोक देते या ‘कोरोना’ के प्रति सजगता बरतते हुए सभी स्वास्थ्य मानकों का ध्यान रखते । खैर!…अब पछतावे का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत’…..
आज 15 मई तक पूरे विश्व पटल पर हम देखते हैं कि लगभग 44 लाख लोग ‘कोरोना’ से संक्रमित हो चुके हैं और 3 लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं । भारत की यदि बात करें तो आज के आंकड़े बताते हैं कि लगभग 82 हजार संक्रमित हो चुके हैं जिनमें से 2649 की मृत्यु हो चुकी है और लगभग 27000 लोग ठीक होकर अपने घर जा चुके हैं ।
भारत में 30 जनवरी को पहला केस दर्ज हुआ था । फरवरी में यह संख्या दहाई का आंकड़ा पार करने लगी और सजगती बरती जा रही थी, रेलवे स्टेशनों एवं हवाई अड्डों पर, टेस्टिंग भी प्रारंभ कर दी गई थी और विदेश से आने वाले यात्र्यिों को क्वारेंटीन करना शुरू कर दिया था ।
बावजूद इसके मार्च के दूसरे पखवाड़े में भारत को भी लॉकडाउन की आवश्यकता महसूस होने लगी, जो कि एकलौता उपाय है ‘कोरोना’ को ना फैलने देने के लिए अथवा कम करने के लिए ।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सम्पूर्ण भारत के लिए एक दिन के जनता कर्फ्यू का आह्वान किया जिसको देशवासियों का पूरा समर्थन मिला । लेकिन शायद एक दिन सिर्फ टेस्टिंग के लिए था देश की जनता का मूड़ तथा कितना समर्थन मिलता है, यह सब जानने के लिए । शुरूआत में ‘कोरोना’ संक्रमण फैलने की रफ्तार धीमी थी या हमारी टैस्टिंग की संख्या कम थी, जो भी हो केस धीरे-धीरे बढ़ रहे थे — दहाई से सैंकड़ा और सैंकड़े से हजारों में पीड़ित संक्रमित होने लगे । परिणामस्वरूप अभी रोकथाम के लिए इकलौता मजबूत उपाय था –‘लॉकडाउन’, 1–0– दिनांक 25 मार्च से 14 अप्रैल तक, 2–0 – दिनांक 15 अप्रैल से 3 मई तक और अब 3–0 (तीसरा) लाकडॉउन चल रहा है 4 मई से 17 मई तक….।
पूरे विश्व में त्रहिमाम है, भारत में भी संख्या 80 हजार को पार कर गई किन्तु कुछ राहत की बात है या मन को समझाना मात्र् है कि पूरे विश्व की अपेक्षा हमारे देश में ठीक होने वाले मरीजों की संख्या का अनुपात ज्यादा है । 82 हजार लोगों में से लगभग 28 हजार लोग ठीक भी हो चुके हैं । लॉकडाउन के संकटकाल में जो अच्छी बात उभर कर सामने आई वह थी ….. ‘भारतीयता’–––– यहां के संस्कार — एक नाद जिसमें ध्वनि मिल रही थी — सर्वे भवन्तु सुखिन….!
इस आपदा के चलते मानो पीएम केयर में सहयोगकर्ताओं के बीच होड़ सी लग गई । सारा विश्व देख रहा था कि यहां के उद्योगपतियों ने, समाजसेवियों ने हजारों करोड़ रूपया पीएमकेयर /सीएमकेयर फंड में जमा करवा दिया । प्रवासी मजदूरों को अथवा गरीबों के सहायतार्थ गुरुद्वारों में, बड़े मंदिरों एवं सामाजिक संस्थानों के अलावा व्यक्तिगत तौर पर भी आपस में मिलजुल कर खानेपीने का सामान, दवाईयां एवं मास्क व सैनेटाइजर आदि का वितरण किया गया । इसी बीच कुछ स्वयं सेवी संस्थाओं ने अपने ऐरिया को सैनेटाइज करना प्रारंभ कर दिया गया । जनता–कर्फ्यू, ताली–थाली बजाकर तथा ‘दिया– मोमबत्ती’ जलाकर जो एकता प्रदर्शित की गई और कोरोना योद्धाओं के प्रति समर्पित दर्शाया गया और उनके सम्मान में विनम्रतापूर्वक अपना धन्यवाद ज्ञापन किया गया ।
सरकारों ने यराज्य अथवा केंद्रद्ध जनता के हितों को /यान में रखते हुए सख्ती भी और ढील के साथ सुविधाजनक परिस्थितियों का भी निर्माण किया गया । आने जाने की दुविधा को देखते हुए श्रमिक स्पेशल टेªन का भी आरम्भ कर किया गया जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष ध्यान रखा जा रहा है । दिल्ली सरकार ने मजदूरों, ई–रिक्शा चालकों, ऑटो चालकों के लिए 5 हजार रूपया महीना उनके खाते में डालने की घोषणा कर दी गई और रजिस्ट्रशन प्रक्रिया में आने वाले सभी आवेदकों के खाते में राशि पहुंचा दी गई । वरिष्ठ नागरिकों की पेंशन को भी बढ़ाकर 5 हजार रूपया कर दिया जिससे उन्हें अपने जीवनयापन में कोई दुविधा का सामना न करना पड़े । केन्द्र सरकार ने तो 20 लाख करोड़ रूपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा करके आत्मनिर्भर भारत की ओर प्रबलतापूर्वक कदम बढ़ा दिया । मजदूर, किसान, मध्यमवर्ग, स्वरोजगारों को मदद की व्यवस्था कर दी ।
अब बात उस मुद्दे की जो इस समस्या को अवसर बना सकता है और भारत में थोड़े ही समय बाद रोजगार के अनगिनत अवसर, खुशहाली, आत्मनिर्भरता बहुत तेजी से विकसित हो सकती है ।
बहुत से या कहें अधिकांश देशों ने चीन से अपना बोरिया–बिस्तर उठाने का मन बना लिया है और अपने व्यापार को किसी अन्य देश में स्थापित करने का निश्चित कर लिया है । इसमें यह माना जा सकता है कि भारत उनकी पसंद बन सकता है ।
दूसरी ओर सर्वे भवन्तु सुखिन: की ओर मजबूती से कदम बढ़ाते हुए बहुत से देशों को भारत ने दवाईयाँ उपलब्ध करायी जो ‘कोरोना’ से निपटने में उनके लिए सहायक बनीं । अपने देश में खपत को ध्यान में रखते हुए विदेशों में दवाईयों का निर्यात किया गया ।
चीन अपनी ‘साख/विश्वसनीयता’ विश्व बिरादरी में खोता जा रहा है । भारत के उद्योगपति यदि अपनी कुशलता–बुद्धिमता और तकनीकी दक्षता से निर्माण में जुड जाएं । तब ऐसे में भारत की विश्वसनीयता अधिक है इसलिए अवसर अच्छे बन सकते हैं और आत्मनिर्भर भारत का संकल्प पूरा किया जा सकता है और स्वप्न को साकार किया जा सकता है ।