“ये ज़िन्दगी भी तो एक रक्कशा है साहेब
अगर आप सफल हो,
सारे खूबसूरत जलवे दिखाती है।
पर अगर आप गोते लगाते हो,
असफलता के गर्त में,
तो फिर ये आपसे नजरें चुराती है।”
सपने देखना अच्छी बात है। उन्हें पूरे करने के लिए कोशिश करना और भी अच्छी बात है। परन्तु सारी कोशिशों के बाद यदि सपना टूट जाता है तो जीवन से नाता तोड लेना बिल्कुल अच्छी बात नहीं है। कुछ घटनाएं ऐसी घट जाती हैं जिनसे हम सीधे न भी जुड़े हों तो भी मन मस्तिष्क को झकझोर देती हैं।सबसे दुखदाई घटना वही होती है जिसमें कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने सपने पूरे न हो पाने के कारण अपना जीवन समाप्त कर देता है। वो इंसान तो चला जाता है परन्तु अपने पीछे कुछ अनसुलझे प्रश्न छोड़ जाता है।
एक अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्ति यदि सफलता के शिखर पर पहुंच कर अपनी इच्छा से संसार को अलविदा कह देता है, तो वह घटना उस सामाजिक परिवेश की असंवेदनशीलता को दर्शाती है। घटना के लिए जो व्यक्ति जिम्मेदार होते हैं, उनके रास्ते का कांटा तो निकल जाता है। उनकी मनमानी का विरोध करने वाला एक और प्राणी कम हो जाता है।फिर उन्हें सजा कहां मिली। उनकी गलती की सजा तो जाने वाले को ही मिली।
सफल व्यक्ति का अनुसरण करने वाले भी कई लोग होते हैं। वे लोग भी रास्ते से भटक जाते हैं। जिसको आदर्श मानकर वो जीते हैं, उसके इस तरह हारने पर जीवन मूल्य भी हार जाते हैं।
जीवन अनमोल है। ऐसा कोई भी कारण दुनिया में नहीं है जो उसे खो देने के लिए बना हो। जीवन मिलने के बाद ही मन में इच्छाएं जाग्रत हुई। और सबसे बाद में हमे अच्छे बुरे का ज्ञान हुआ। कुछ लोग हमे पसंद न करें, हमारा बुरा करें, हमारे कुछ सपने अधूरे रह जाएं, क्या इन सबके लिए अनमोल जीवन को खत्म कर देना चाहिए ?
माता पिता जिन्होंने हमारे जन्म के बाद से हमारी खुशी अपने जीवन का लक्ष्य बनाया हो, क्या यही परिणाम हमसे चाहते हैं ? क्या उनके बचे हुए जीवन को भी हमने ग्रहण नहीं लगा दिया है ?
इस अवस्था में अध्यात्म हमे रास्ता दिखाता है। ” कर्म कर, फल की चिंता मत कर।” इस एक ही वाक्य में सुखी जीवन का सार है। दुनिया में हमारा व्यवहार ही हमारा मित्र है, यही हमारा शत्रु भी है। समय से पहले, किस्मत से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता।” यह बात भी शत प्रतिशत सही है।
हम लोगों को जब स्वयं से अधिक महत्व देने लगते हैं, अपना महत्व खोने लगते हैं। हमारी निराशा का मुख्य कारण भी यही होता है।
सभी व्यक्ति किसी स्वार्थ के कारण हमसे जुड़े हैं। उनका स्वार्थ अगर हमसे पूरा होता है तभी हम उनके लिए महत्वपूर्ण होते हैं अन्यथा नहीं। इन सभी बातों का सार यही है कि सर्वप्रथम हमे अपना महत्व नहीं खोना है। अपनी क्षमताओं के आधार पर मिले हुए अवसर का उपयोग करना है। और हमेशा बेहतर अवसर की आशा में स्वयं को नहीं झोंकना है। बहुत कुछ समय भी निर्धारित करता है। समय आने पर हमे अपनी वास्तविक पहचान मिल जाएगी। लेकिन उसके लिए चलते रहना जरूरी है। रुक जाएंगे तो फिर से नए सिरे से शुरुआत करनी होगी।
जन्म लेते ही वापसी का टिकट तो निश्चित हो ही जाता है। फिर खुद को कष्ट देकर, प्रियजनों को दुःखी करके दुनिया से जाने का निर्णय किस तरह सही है। गलत को सही करते करते हम कितना गलत कर जाते हैं। अनजाने में उनको सही साबित कर जाते हैं जो हमारे अस्तित्व को नकारते हैं। फिर उनमें और हममें अंतर क्या रहा ? हमारे जीवन का, हमारी अनन्त कोशिशों का संदेश क्या रहा? अंत में इस कहावत के साथ अपनी बात खत्म करती हूं।
” मन के हारे हार है, मन के जीते जीत”।
अर्चना त्यागी