राजनीतिक सफरनामा : कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
एक अलसाई सुबह के साथ नए कैलेण्डर के नए पन्ने पर अंकित नए वर्ष के उदित होते सूरज ने आंगन में अपनी रोशनी बिखेर दी है । ‘‘यह हमारा नव वर्ष नहीं है’’ के स्लोगन के बीच भी सोशल मीडिया पर शुभकामनाओं की भरमार है । हर साल 31 दिसम्बर की डेड लाइन के साथ बदल जाता है कैलेण्डर और आंकड़ों में दिखाई देने लगता है नया साल……अब 2024 के बाद 2025 आ गया……ऐसे ही 2023 के बाद 2024 आया था……अपने घरों की दीवालों पर ठुकी कील से टांग दिया जाता है आकर्षक पन्नों वाला कैलेण्डर…..अब इसी कैलेण्डर के भरोसे बीतेगा नया साल जिसमें खुशी भी होगी और गमों की भी होगी भरमार । कैलेएडर खरीदते समय और 31 दिसम्बर की रात के व्यतीत होते समय जो उच्छवास चेरे पर दिखाई देता है, वह शनैः-शनैः गायब होता जाता है । क्या बदलेगा…….खाना बनाने वाले ईधन की दरों में होगी कमी……दाल, आटा….सब्जी, मसाले इनके दामे गिरेगें…..नहीं आम व्यक्ति की आमदनी ही गिरेगी, ये तो ऊपर चढ़ते रहेगें, बेरोजगारी की लिस्ट और बढ़ हो जायेगी और नौकरी चाहने वालों की कतार सरकारी आफिस के दायरे को खत्म कर लम्बी हो जाएगी । हमने पढ़ाई की है तो हमें रोजगार भी चाहिए…..मॉ-बाप ने बढ़ती महंगाई के बीच पैसे बचा-बचा कर स्कूल से लेकर कोचिंग सेन्टरों तक की फीस चुकाई है…….हमें रोजगार चाहिए……रोजगार के आवेदनों से ही करोड़ों की कमाई कर लेने वाले सरकारी विभाग रोजगार नहीं दे रहे हैं, वे केवल आवेदन पत्र जमा करा रहे हैं…सशुल्क…..ंऊंची डिग्री लेने के बाद भी रोजगार के लिए परीक्षा देनी होगी……..जुगाड़ कर परीक्षा सेन्अर तक पहुंच जाओ तो मालूम पड़ा की पेपर ही लीक हो गया…….फिर अधर में लटक गया युवाओं का भविष्य……वह भी कैलेण्डर के पन्ने देखता है…..अब तो वह ओवरऐज होने वाला है……उसे हर हाल में रोजगार चाहिए…..जनप्रतिनिधि चुनावों में लगे हैं, अभी एक प्रदेश के चुनावों से फुरसत हुए हें अब दूसरे प्रदेश के चुनाव होना है…उन्हें हर हाल में चुनाव में जीतना है, भारी बहुमत से सरकार बनानी है……इसके लिए वे फिर आश्वासन देते हैं ‘‘हम युवाओं को रोजगार देगें’’….अब तो ऐसे आश्वासनों से युवा भी खुश नहीं होते, वे जानते हैं कि रोजगार नहीं मिलेगा, वे जानते हें कि आश्वासनों से पेट नहीं भरेगा, प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक अब नौकरी का नियुक्तिपत्र समारोह कर बांट रहे हैं, लाखों बेरोजगार है बल्कि करोड़ों बेरोजगार हैं और नियुक्ति पत्र कुछ हजार बंट रहे हैं. बाकी का क्या होगा, वह फिर से आवेदन जमा करेगा और राह देखेगा…..नए वर्ष् का नया कैलेण्डर उसकी आश तो जगा देता हे पर दिसम्बर आते-आते वह कैलेण्डर के पीले पड़ते पन्ने की तरह खुद ही पीला हो जाता है । कुछ नहीं बदलेगा इस नए साल में भी…….किसानों का आन्दोलन जारी रहेगा, उन्हें अनाज खरीदी की गारंटी चाहिए……सरकार गारंटी नहीं दे रही है…..पर वह एनएसपी पर अनाज जरूर खरीद रही है, जो सरकार को अनाज बेच देता है वह फिर पैसों के लिए चक्कर लगाता रहता है, वैसे भी सरकार अनाज की खरीदी लेट प्रारंभ करती है ताकि किसान खुले बाजार में अपना अनाज बेच ले । किसान आन्दोलनरत हैं, बेरोजगार आन्दोलनरत हैं और हम कैलेण्डर के पन्ने पलट रहे हैं । बहुत कुछ हुआ इस वसाल राजनीति में भी केन्द्र में भाजपा की सरकार फिर से बन गई भले ही वह अपने ‘‘चार सौ परी’’ के नारे के अनुरूप सीटें न ला पाई हो, पर सरकार बन जाए इतनी सीटें तो ले ही आई है । हरियाण और महाराष्ट्र में अपनी डूबती नौका को बचा ले गई भाजपा और पूर्ण बहुमत से सरकार बना ही । अब दिल्ली के चुनावों की तैयारी में लगी हुई है और सभी को लग रहा है कि वहां भी वे सरकार बना ही लेगें, उन्हें वोट पाने का मंत्र मिल चुका है । दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री नहीं हैं वे जेल से जमानत पर हैं और आतिशी मुख्यमंत्री पद पर हैं, वे चुनाव प्रचार में लगे हैं, सत्ता उन्हें भी चाहिए……आन्दोलन के माध्यम से सत्ता की कमजोरियों को उजागर करते-करते आप आदमी पार्टी अब खुद ही उन कमजोरियों का शिकार हो चुकी है । राजनीति में शुचित नहीं रह पाती यह सभी जानने और समझने लगे हैं । साल का अंत आते-आते हमारे पूर्व प्रधनमंत्री मनमोहन सिंह ही का निधन हो गया यह अपूरणीय क्षति है, उनकी राजनीति शुचिता की परिभाषा को पूर्ण करती हुई दिखाई दी । सभी राजनीतिक नेताआें ने और आम व्यक्तियों ने भी उनके निधन पर पीड़ा का अहसास किया, यह उनके महान व्यक्तित्व का उदाहरण है । रतनचंद जी टाटा के निधन के समय भी आम व्यक्तियों ने पीड़ा व्यक्त की थी । आमतौर पर पूजिपतिशें के प्रति आमजन को संवेदना नहीं होती पर रतन टाटा जी के निधन पर ऐसा दिखाई नहीं दिया जबकि वे तो देश के प्रमुख पूंजिपतियों की लिस्ट में शामिल थाख् टाटा ग्रुप देश के बड़े उद्योगपतियों में माना जाता है । यह वह समूह है जिसने भारत की आजादी में भी अहम भूमिका निभाई है । रतन टाटा जी का व्यक्तित्व पूंजिपतियों के सदृश्य दिखाई नहीं देता था, वे आमजन से जुड़े थे और आमजन के हितार्थ अपनी सोच भी रखते थे, यही कारण है कि उनके निधन पर सभी ने दुख व्यक्त किया । उत्तरप्रदेश के संभल में यूं तो दंगाफसाद हुआ था जिसके चलते पूरा शहर प्रशासन के लक्ष्य पर आ गया था पर अब वह पुरातत्व दृषि्अकोण से महत्वपूर्ण बनता जा रहा है । धर्मशास्त्री ऐसा मानते हैं कि संभल में भगवान कलिक का अवतार होना है इसका उल्लेख हमारे धर्मशास्त्रों में हैं । वहां सि्ित जामा मस्जिद कभी भगवान कलिक का मंदिर थी जिसे आताताईयों ने नष्ट कर दिया और वहां मस्जिद बना दी । उसी मस्जिद के सर्वे से विवाद प्रारंभ हुआ और दंगाफसाद करता हुआ अब पुरातत्व अवशेषों की खोज तक जा पहुंचा है । वहां खुदाई में वह सब निकल रहा है जिसके बारे में धर्मशास्त्र में उल्लेख किया गया है, ऐसा धर्माचार्य बता रहे हैं । 19 कूपों का वर्णन है वे वहां खोजे जा रहे हें और मिल भी रहे हें, किसी राजा की बावड़ी भी खुदाई में मिली है जिसके बारे में भी जांच की जा रही है, साथ ही बहुत सारे ऐसे मंदिर भी मिले हैं जो या तो बंद कर दिए गए थे या उजाड़ दिए गए थे । हर दिन नए रहस्य के साथ वहां सुबह हो रही है और असीम संभवानाओं के साथ सांझ ढल रही है । दरअसल यह क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है ऐसा माना जा रहा है कि यहां कम संख्या में रहने वाल हिन्दुओं ने मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण यहां से पलायन कर दिया……पलायन किया तो मंदिर भी उजड़ गए या उन्हें बंद कर दिया गया । अब जब प्रशासन ने दंगाफसाद के बाद यहां कार्यवाही की तो सारा कुछ इतिहास सामने आने लगा । बंद पड़े मंदिरों में फिर से पूजा-पाठ होने लगा और घंटियों की मधुर ध्वनि बिखरने लगी । राज खुलने लगे और ऐसा माना जा रहा है कि अभी तो बहुत सारे राज यहां खुलेगें…इसका अंत होता दिखाई नहीं दे रहा है । पर जब भी होगा तो यह धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में दिखाई देगा यह तय ही लग रहा है । संभल में बंद और उजड़े पड़े मंदिरों को खोला गया तो उत्तरप्रदेश के अन्य शहरों में भी बंद पड़े मंदिरों को खुलवाने की मुहिम प्रारंभ हो गई । उत्तर प्रदेश के वे क्षेत्र जो मुस्लिम बाहुल्य हें वहां भी कुछ मंदिर बंद पड़े मिले या उजड़े मिले अब प्रशासन और हिन्दुवादी संगठन इन मंदिरों के जीर्णोद्धार में जुट गया है । रोज होती ऐसी मांगो को देखकर ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जी को कहना पड़ा कि हम इससे दूर रहें और विकास पर ध्यान दें । मोहन भागवत की बात को आमतौर पर मान लिया जाता है पर इस बार ऐसा नहीं हुआ । धार्मिक गुरूओं ने मोहन भागवत जी को ही आड़े हाथों ले लिया और स्पष्ट बोल दिया कि ‘‘धर्म का काम हमें देखने दो’’ । धर्माचार्यों की बात से साफ है कि वे अभी रूकने वाले नहीं हैं मतलब बात लम्बी खिंचेगी । वैसे भी कृष्णजन्म भूमि से लेंकर काशी के मंदिरों का विवाद अनसुलझा है । मतलब साफ है कि अभी बहुत लम्बा रास्ता है और इस रास्त का घुमावदार पहलु भी है । प्रयागराज में कुम्भ मेला आयोजन किया जा रहा है यह हिन्दुओं का सबसे बड़ा पर्व होता है । प्रयागराज में करोड़ों श्रद्धालुओें के आने की उम्मीद है, वैसे वहां व्यवस्थाएं बहुत बेहतर की गई हैं जिस ढंग के प्रशासन के विज्ञापन आ रहे हैं उनसे तो यही तो जान पड़ रहा है । मुख्यमंत्री योगी जी ने व्यक्तिगत रूचि लेकर इस महा आयोजन को सफल बनाने में ऐड़ीचोटी का जोर लगाया हुआ है । साधु-संतों ने तो वहां डेरा जमा भी लिया है, उनके आगमन से मेला परिसर में रौनक दिखाई देने लगी है । 13 जनवरी को जब पहला राजसी स्नान होगा तब से 26 फरवरी को अंतिम राजसी स्नान तक मेला पूरे विश्व में श्रद्धा से देखा जाता रहेगा और लोग प्रयाराज जाकर पवित्र गंगा नदी में स्नान भी करेगें । नए कैलेण्डर का यह सबसे महत्वपूर्ण मास होगा । नए वर्ष की एक तारीख को हमने भी नया कैलेण्डर टांग लिया है अपने घर की दीवार पर इस उम्मीद और विश्वास के साथ कि यह पूरा वर्ष हम सभी के लिए सुख समृद्धि लेकर आयेगा । एक जनवरी की सुबह हमने सूर्य के दर्शन कर प्रार्थना कर ली है कि प्रभु इस वर्ष सारे देशवासियों को अपने जैसा ओज देना और सारे कष्टों को हर लेना । आप सभी को भी नव वर्ष 2025 की हार्दिंक शुभकानाएं