Latest Updates

हे माई अब तो कर दो बेड़ा पार

                                                                                                                 कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

माई विराज गई हैं, चेत्र नवरात्र प्रारंभ हो गए हैं । माई तो कष्टों को हरने वाली हैं, माई तो शत्रुओं का संहार करने वाली हैं । अभी तो मार्च ही निकला है पर देखो धरती कितनी तपने लगी है अभी से, माई से गुहार लगायेगें अब, हमने तो अपने पार्यावरण को खुद ही नष्ट किया है । मौसम वैज्ञानिक तो कब से कह रहे हैं कि अब भी चेत जाओ नहीं तो प्रकृति असंतुलित होकर सब कुछ नष्ट कर देगी । मार्च महिने में ही तापक्रम 40 के पार पहुंच गया फिर अप्रेल और मई बाकी हैं तब तापक्रम कहां तक पहुंचेगे कल्पना की जा सकती है । हिमालय की बर्फ पिघल रही है, अंर्टाटिका की बर्फ पिघल रही है जाहिर है कि धरती का तापक्रम बढ़ रहा है तो बर्फ पिघलेगी ही । वैज्ञानिक बतातें हैं कि करीब एक डिग्री से अधिक धरती का तापक्रम बढ़ चुका है । अभी तो और बढ़ेगा फिर क्या होगा, सोचा जा सकता है । तापक्रम तो राजनीति का भी बढ़ा हुआ है । वक्फ संशोधन बिल ने इस तापक्रम को बढ़ा दिया है । विपक्ष एकजुट होकर इस बिल का विरोध कर रहा है और सत्तापद्वा तो जेपीसी से बिल पास कराकर इसके पक्ष में आ ही गया है । कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता डी शिवकुमार के एक बयान ने ससंद नहीं चलने दी । एक निजी टीव्ही चैनल पर उन्होने कह दिया कि मुस्लिमों को आरक्षण देने के लिए यदि जरूरत पड़़ी तो संविधान संशोधन भी किया जाएगा । हांलाकि यह बयान तो अभी काल्पनिक संभावनाओं पर आधारित माना जा सकता है । कांग्रेस तो अभी केन्द्र की सत्ता में है नहीं……जब वह सत्ता में आएगी तब ऐसा किया जावेगा ? जिसे हसीन सपनों के रूप में देखा जा सकता है । दिल्ली अभी दूर है, पर बयान से जो घमासान मचना था वह मच गया । भाजपा तो कांग्रेस के ऐसे बयानों की राह ही देखती है, उसने इसे लपक लिया और ससंद में इसे लेकर हंगामा भी खड़ा कर दिया । वह संविधान संशोधन के नाम पर अपनी प्रतिक्रिया दे रही है । ज्ञातव्य रहे कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के राहुल गांधी ने संविधान हाथों में लेकर चुनावी सभ्ीाएं की थी और ‘संविध्धान बचाओ’’ का नारा दिया था, भाजपा अब इसके उलट उन्हें ही कठघरे में खड़ा कर यह साबित करना चाहती है कि कांग्रेस अम्बेडकर जी के संविधान को बदलना चाह रही है । भाजपा का नेतृत्व इस मुद्दे को जिस तरह से सामने ला रहा है उससे स्पष्ट है कि यह मुद्दा जल्दी शांत होने वाला नहीं है । इसके पूर्व भी कांग्रेस की सत्ता वाली कर्नाटक सरकार ने सरकारी ठेकों में 4 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण देने का फैसला किया है जिसे लेकर विधानसभा में भाजपा सहित अन्य पार्टियों ने विरोध भी किया । भाजपा ने इसे तुष्टिकरण की नीति बताया । आन्ध्रप्रदेश में भाजपा के साथ गठबंधन वाली चन्द्रबाबू नायडू की सरकार ने नौकरियों में मुस्लिम आरक्षण को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है । जाहिर है कि भाजपा से अलग अपनी नीति को लागू करने में चन्द्रबाबू नायडू कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं, इसके पूर्व भी वे भाजपा की नीति से अलग अपने विचार रख चुके हैं और वे राज्य के हिसाब से मुस्लिम समुदाय को लाभ देने की बात करते रहे हैं, उन्होने तो अपने चुनावी घोषणपत्र में भी ऐसे ही वायदे भी किए थे । वहीं बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन वाली जेडीयू की पार्टी के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने बकायदा इफ्तयार पार्टी का आयोजन किया । ये अलग बात है कि करीब आठ मुस्लिम संगठनों ने वक्फ संशोधन बिल के विरोध में उनकी इस इफ्तयार पार्टी का बहिष्कार किया, पर राज्यपाल सहित बड़ी संख्या में नेता इसमें शामिल हुए । यह भी भाजपा की नीति के खिलाफ ही माना जा सकता है । आजेडी के नेताओं ने तो वैसे भी ऐसी पार्टियां दी हीं, लालू यादव से लेकर तेजस्वी यादव तक मुस्लिम टोपी पहनकर इफ्तयार की पार्टियां करते दिखाई दिए । पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने भी इफ्तयार पार्टी से गुरेज नहीं किया, वहां भाजपा आगामी रामनवमी को राज्य स्तर पर वृहद ढंग से मनाने की तैयारियों में लगी हुई है । कांग्रेस की सत्ता वाली तेलंगाना में जाति सर्वेक्षण कराकर वहां मुसलमानों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है । मुस्लिम कहीं ने कहीं बड़े परिदृश्य मे बने हुए हैं और भाजपा इस परिदृश्य से अपने को अलग दिखाने की कोशिश कर रही है । भाजपा ने मुस्लिम समुदाय के लिए एक मोदी किट बांटी जिसमें महिलाओं के सूट से लेकर सैवईयां सहित अन्य आवश्यक सामान थे । सभी ने कुछ न कुछ तो किया ही । पर इससे राजनीति का तापमान बढ़ा । एक कोटक के सर्वे ने भी तापमान बढ़ाया । देश में वैसे तो जीडीपी दर अनुमान के हिसाब से बढ़ती हुई दिखाई दे रही है इसका सीधा सा मतलब है कि भारत में विकास दर उच्चतम शिखर पर है और भविष्य में इसके और बढ़ने की संभावना भी है । कोराना काल में जरूर इसकी गति में कमी आई थी पर इसके बाद भारत अपने ऊंचे हौंसलों के साथ आगे बढ़ रहा है । ग्लोबल इंवेस्टर मीट कर उद्योगपतियों को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित किया जा रहा है और उन्हें सुविधाजनक ढंग से अपने उोग लगाने और उन्हें संचालित करने में सरकार स्वंय ही सहयोग कर रही है । इसके बावजूद भी भारत की नागरिकता वाले अरबपति दूसरे देश में बसना चाहते हैं । हाल ही में एक सर्वेक्षण में इस बात का चौंकाने वाला खुलासा हुआ है । यह सर्वें कोटक प्राइवेट ने सलाहकार कंपनी इकाई के साथ मिलकर किया है । सर्वे के अनुसार कम से कम 22 प्रतिशत धनी भारतीय विदेशों में बेहतर जीवन स्तर की खोज में लगे हैं । ऐसे देश जहां उन्हें अपना कारोबार करने में आसानी हो । बताया जाता है कि यह सर्वें 150 अतिधनाढ्य व्यक्तियों के बीच किया गया । सर्वे के अनुसार अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया,कनाडा, संयुक्त अरब अमीरात इनके प्रमुख पसंद है, इसके पीछे यहां गोल्डन बीजा योजनाओं का होना बताया जा रहा है । जीवन स्तर में सुधार, स्वास्थ्य देखभाल समाधान और शिक्षा के साथ ही साथ जीवनशैली में सुधार भी इसके पीछे के भावों के साथ जुड़ी हुई है । भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार हर साल 25 लाख भारतीय दूसरे देशों में प्रवास करते हैं । सर्वेक्षण में जिन धनाढ्यों को शामिल किया गया उनमें से हर पांच में से एक अतिधनाढ्य व्यक्ति वर्तमान में प्रवास की प्रक्रिया में है या प्रवास की योजना बना रहे हैं । सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि दूसरे देशों में बसने की आशा रखने वाला व्यक्ति भारतीय नागरिकता को तो बरकार रखना चाहता है पर अपनी पसंद के दूसरे देश में स्थाई रूप से रहना चाहता है । प्रवास के निर्णय के पीछे भविष्य के निवेश और अपने बच्चों के लिए अच्छी उच्च शिक्षा की चाहत भी शामिल है । दरअसल विदेश की भूमि अपने स्टैटस को बताने के लिए ज्यादा उपयोग में आती है जबकि भारत में विदेशों से कहीं ज्यादा अच्छी शिक्षा मिलती है । अरबपतियों का भारत छोड़कर विदेशों में बसने की मानसिकता को दूर करने की जरूरत है । भारत में प्रधान मंत्री तो लगातार भारत के साथ ही साथ विदेशों में बसे भारतीय मूल के उोगपतियों को भारत आने का न्यौता दे रहे हैं, वे अप्रवासी भारतीय सम्मेलन कर उन्हें भारत की ओर आकर्षित कर रहे हैं ऐसे में अपने ही देश के लोगों की मानसिकता को दूर करने की जरूरत है । भारत की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों में सुधरी है और भारत विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है । यह सभी के लिए गौरव की बात है और इसमें सभी को सहयोग करना चाहिए । सर्वे के हिसाब से ऐसी मानसिकता वाले अरबपतियों से संपर्क कर उनसे उनके काम में आ रही रूकावटों के संबंध में विमर्श कर उन्हें भारत में ही बसने की बात की जानी चाहिए । भारत से अब नक्सलवाद भी खत्म होने जा रहा है जिस तरह से पिछले कुछ दिनों से नक्सलवादी मारे जा रहे हैं और बहुत सारे नक्सलवादी आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं उसने अब यह आश जगा दी है कि नक्सलवाद का आतंक अब समाप्ति पर है । देश के गृहमंत्री अमितशाह ने अपने संकल्प को दोहराया भी है कि 2026 तक देश से नक्सलवाद को खत्म कर दिया जाएगा । भारत में माओवादी नक्सलवाद ने लम्बे समय से अपने पैर पसार कर रखे थे । वे वनभूमि को अपनी जागीर समझकर उनमें रहने वाली आदिवासियों के साथ ज्यादती करते और उन्हें आधुनिकता से दूर रखने की मुहिम छेड़ते ताकि वे उनके चंगुल में फंसे रहे हैं । यही कारण है कि इन क्षेत्रों का विकास नहीं हो पाया और नक्सलवादियों को उसे अपनी चारागाह बनाने में सुविधा बनी रही । यहां तक की इन क्षेत्रों में सड़क जैसी प्राथमिक आवश्यकता की पूर्ति भी नहीं हो पाई । इनके अभाव में ही नक्सलवाद फलता-फूलता रहा है । भारत इसलामिक आतंकवाद और कम्यनिस्ट आतंकवाद जिसे माओवादी नक्सल कहा जाता है उससे जूझता रहा । केन्द्र में मोदी जी की सरकार के आने के बाद इस्लामिक आतंकवाद को कम करने और लगभग खत्म करने में सफलता मिली और अब नक्सल आतंकवाद की समाप्ति की दिशा में कदम उठाया गया जिसको पूर्णतः समाप्त करने की समय सीमा भी तय की हुई है । नक्सलवाद को खत्म करने के लिए सुरक्षा बलों को पूर्ण छूट दी गई है याने वे परिस्थितियों के हिसाब से स्वमेव निर्णय ने सकते हैं, यह छूट ही नक्सलवाद को खत्म करने में अहम भूमिका निभा रही है । सरकार ने पहली प्राथमिकता तो नक्सलियों को हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्य धारा से जुड़ने के आव्हान के साथ ही की है औरबहुत सारे नक्सलवादियों ने मुख्यधारा से जुड़कर इस प्राथमिकता का लाभ लिया भी है बाकी जो रहे गए हें उसके लिए सर्च आपरेशन चलाकर उनके विनाश की भूमिका तय की जा रही है । विगत एक दशक में बड़ी संख्या में नक्सलवादियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ा है । सुरक्षा बल लगातार जंगलों में सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं । इसका ही सुखद परिणाम है कि इस वर्ष जनवरी से अभी तक हुई दस मुठभेड़ों में करीब 239 नक्सली मारे जा चुके हैं जिनमें 219 नक्सलियों के शव और हथियार भी सुरक्षाबलों को मिले हैं । 14 माह में 358 नक्सली मारे गए हैं, इसके अलावा करीब 104 नक्सलियों को अरेस्ट भी किया गया है वहीं 164 ने आत्मसमर्पण किया है । सुरक्षा जवानों की मृत्यु की संख्या में भी कमी आई है । बताया जाता है कि लगभग 75 प्रतिशत कमी इसमें हुई है । वहीं आम नागरिकां की मृत्यु के आंकड़ों में भी 20 प्रतिशत कमी आई है । 2014 में देश में 126 जिले नक्सल प्रभावित थे अब वे घटकर 12 ही रह गए हैं । यह सुखद है साफ मतलब है कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें मिलकर नक्सलवाद की पूर्ण समाप्ति की दिशा में जो काम कर रहीं वह सफलता की ओर आगे बढ़ रहा है और देश के गृहमंत्री अमितशाह ने जो समय सीमा मार्च 2026 दी है उस तक नक्सलवाद खत्म हो ही जाएगा ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *