सम्पादकीय (मनमोहन शर्मा ‘शरण’)
आप सभी को ज्ञान की देवी माँ सरस्वती जयंती ‘बसंत पंचमी’ की बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएँ । माँ से आवाह्न है कि अज्ञान के अंधकार को अपने ज्ञान की रौशनी से दूर करें और सर्वे भवन्तु सुखिन: के नाद के साथ विश्व के सभी प्राणी सुखपूर्वक जीवन यापन कर अपने मनुष्य जीवन के सही उद्देश्य को प्राप्त करें, ऐसे आशीर्वाद की कामना है ।
एक तरफ देशवासी कोरोना के बढ़ते–घटते प्रकोपों से दो चार होते आ रहे हैं µ दिन–महीना–साल–दो साल से सभी संघर्षरत हैं । ऑमीक्रान यनए वेरिएंटद्ध के साथ तीसरी लहर ने दस्तक दी और सरकार–जनता ने भी संयमता बरतते हुए बुद्धिमता से उसे तबाही के मंजर का रूप नहीं लेने दिया । दूसरी ओर बसंत का प्रवेश, कोरोना केस कम होने के कारण दिल्ली में भी शादी–विवाह–समारोह आदि में 200 लोगों तक संख्या का बढ़ाये जाना, राजनीतिक रैलियों में 1000 तक की संख्या की अनुमति मिलना कुछ राहत के संकेत देता है । लेकिन फिर भी मेरा निवेदन यही है कि कोरोना गाइडलाइंस का पालन हमें अवश्य करते रहना चाहिए जब तक कोरोना बाय–बाय नहीं होता अथवा इससे निपटने के पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध न हो जाएं ।
यह सच है कि कोरोना से कुछ राहत मिलने लगी है किन्तु दो वर्षों में जान बचाने की प्राथमिकता होने से आर्थिक तंगी से पूरा देश जूझ रहा है । कुछ समय तो जैसे–तैसे व्यक्ति निकाल देता है किन्तु वर्षों का समय लगे तब चिंता होना स्वाभाविक ही है । शिक्षा, स्कूली हो, कॉलेज अथवा अन्य वोकेशनल कोर्सिस हों µ सब ऑनलाइन । ऑनलाइन में कितने प्रतिशत बच्चे प्रभावशाली ढंग से अपने अ/ययन पर केंद्रित रह पाते हैं यह सब भविष्य में हमें ज्ञात हो जाएगा । अभी प्राथमिकता है — पहला सुख निरोगी काया ।
अच्छे दिन भी कितने अच्छे हो गए कि पास आने का नाम ही नहीं ले रहे, मृगमारीचिका बनए गए जैसे । लगता है थोड़ी–प्रतीक्षा, लेकिन थोड़ी–थोड़ी करके एक दशक बीत गया । हर वर्ष बजट पर बड़ी बेसब्री से इंतजार करता है देश का आम आदमी, म/यम वर्ग । कुछ अच्छा होने की आस लिए अपने सपने संजोने लगता है । बजट पर पक्ष–विपक्ष अपने–अपने दावे करते हैं । पक्ष–अच्छा, विपक्ष–बुरा सिद्ध करने पर तुला रहता है । मीडिया में घंटों चर्चाए सुर्खियाँ बनी रहती हैं । सही गलत का निर्णय आखिर जनता पर ही छूट जाता है, क्योंकि उसके जीवन पर ही इसका असर होना है और आम नागरिक–मध्यम वर्ग अपने को हर बार छला ही पाता है । मँहगाई की बात, रोजगार की बात हो अथवा अपने–अपने ही काम धंधे। अभी बजट सत्र् प्रारंभ हो चुका है, इस बार फिर नया आम बजट पेश होगा । सबकी निगाहें बड़ी आस लिए हैं कि शायद इस बार पांच राज्यों के चुनाव भी हैं, शायद लॉलीपाप के सहारे ही सही कुछ राहत मिल जाए । पर वित्त मंग्त्री जी का पिटारा खुलकर किन्हें खुलकर राहत देगा यह पता चल जाएगा ।
ज्ञान की देवी माँ सरस्वती से फिर निवेदन है कि पांच राज्यों में चुनाव हैं, सभी मतदाता अपने विवेक से अपना भला–बुरा सोचते, समझते हुए सभी निर्णय लेने में सक्षम हों, तभी आगे की राह आसान हो पाएगी । यह सब भीतर का संघष है, बाहर से चीन की चालबाजी से भी निपटना है । जब हम भीतर से मजबूत होंगे तभी बाहर वालों से निपटा जा सकता है ।