आप सभी को भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस की बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं । राष्ट्रीय स्तर पर लालकिले पर हर वर्ष की भांति बहुत भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ । प्रधानमंत्री जी ने बहुत बड़ा भाषण भी दिया । राज्य स्तर पर भी सभी सरकारें मनाती हैं तथा विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएं भी देशभक्ति से ओतप्रोत कार्यक्रम आयोजित करती हैं ।
किन्तु आज सबसे बड़ा प्रश्न हमारे सामने आ खड़ा हुआ है µ क्या यह आजादी है जिसकी कल्पना स्वतंत्र्ता सेनानियों, समाजसेवियों, देशभक्तों ने की थी । सैंकड़ों वर्षों के संघर्ष के बाद 75 वर्ष पूर्व हम अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुए थे । आज हम आजादी का अर्थ कुछ यूँ लगाने लग गये हैं कि जो मन में आए करो — कुछ भी करने की आजादी, सही–गलत का निर्णय किए बिना––––
पिछले दिनों दिल्ली के दिल्ली कैंट, पुराना नांगल क्षेत्र् के श्मशान घाट में लगभग 9 वर्ष की गुड़िया के साथ पहले सामूहिक दरिंदगी की गई, फिर नृशंस हत्या और जला देने का भी प्रयास किया जो पूरी तरह से सफल नहीं हुआ, गुड़िया के पैर बच गए । बलात्कार के उस दिन दिल्ली में दर्जनों केस और भी दर्ज हुए थे ।
क्या कुछ भी करो , गलत–सही का निर्णय किये बिना–––––इस आजादी के लिए लोगों ने अपने आप को कुर्बान किया था । इस दुर्घटना के कारण मन दुखित था, संपादकीय लिखते समय मेरे भी मन में आया था जो मैंने एक मित्र् को भी बताया था कि आज मेरा बस चले तो संपादकीय अपने लहू से लिख डालूँ ।
परंतु आजादी का मतलब यह बिलकुल नहीं है । देश आजाद हुआ उसको व्यवस्थित रूप से चलाने हेतु संविधान की आवश्यकता होती है । इसी प्रकार जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए भी जीवन मूल्य, राष्ट्रीय मूल्य एवं सामाजिक मूल्यों का निवर्हन करना आवश्यक होता है । एक नन्हे से बालक को पीड़ा पहुंचाते समय लोगों के मन में यह क्यों नहीं विचार आना चाहिए कि इस पीड़ा से कोई अपना गुजरे तब उस पर या हम पर क्या गुजरती है या गुजरेगी । लेकिन कोई दौलत के नशे में कोई शराब आदि नशे में चूर है । नशा करना ही है तो प्रभु के नाम का, उसकी बताई शिक्षाओं, निर्देर्शों का करें तब चींटी को जान बूझकर मारने का मन नहीं करेगा, इंसानों की बात ही क्या––––