राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सीधे तौर पर सचिन पायलट को निकम्मा कह कर राजस्थान कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी है । कुछ दिन पहले ही राजस्थान की सियासत में एक अनोखा मोड़ आया जब स्पीकर ने पायलट खेमे को कानूनी नोटिस भेज कर उनकी सदस्यता रद्द करने की बात कही और उनसे जवाब मांगा जिसके एवज में सचिन पायलट कोर्ट गए और अपील की कि ऐसा करना संविधान विरूद्ध है और स्पीकर साहब के नोटिस को रद्द किया जाय फिर क्या था ,शुरू हुआ रोज कोई न कोई नई सनसनी , प्रतिदिन कोई न कोई नया ड्रामा और हर दिन एक नया मोड़ आता रहा । स्पीकर के कारण बताओ नोटिस के बाद हाईकोर्ट गई पायलट सेना के लिए आगे की राह थोड़ी मुश्किल होने वाली है क्योंकि अशोक गहलोत सचिन पायलट नाम के इस कांटे को निकालने में कोई कोर कसर छोड़ने के मूड में नहीं है । लेटेस्ट बयान में श्री गहलोत ने सचिन को निकम्मा तक कह दिया ,अब देखना दिलचस्प होगा कि पलटवार कैसा होता है क्योंकि हाई कोर्ट ने फिलहाल तो स्पीकर के आदेश पर रोक लगा दिया है । अशोक गहलोत खेमे के विधायक मलिंगा ने पैतीस करोड़ का यार्कर फेंका है जो सीधे पायलट के लेग स्टंप पर जाकर लगी है और अब सचिन पायलट मलिंगा पर मानहानि का केश कर सकते है । इन सबके बीच राजस्थान में राजनीतिक गहमागहमी चरम पर है । कांग्रेस के कड़े रुख ने अपने सभी नेताओं की दो टूक संदेश दे दिया है कि ,आप चाहे जो हो ,कितना भी बड़ा कद रखते हों यदि विद्रोह करेंगे तो आपको बैकफुट पर जाना होगा । राजस्थान में सचिन पायलट की उपमुख्मंत्री पद से बर्खास्तगी इसी बात की ओर इशारा कर रही । कांग्रेस ने राजस्थान कांग्रेस कार्यकारिणी भंग कर ,समिति की नए सिरे से गठित करने का आदेश जारी कर चुकी है । भाजपा अपने एजेंडे पर बड़ी गहनता से काम करती है, ओम् माथुर फूंक फूंक कर कदम रख रहे ,वो नहीं चाहते कि अजित पावर ने जो किया महाराष्ट्र में वो कम से कम पायलट राजस्थान में ना करे । इन सब राजनीतिक ड्रामो का सिलसिला तब शुरू हुआ जब कर्नाटक के नाटक से वी एस यदुरप्पा की वापसी हुई थी , की बीच में गोवा वाले बीच पर घमासान के बाद जो सियासी ड्रामा मध्य प्रदेश में हुआ अब उसका क्लाइमेक्स राजस्थान में देखने को मिल सकता है । लचर नेतृत्व और शहंशाह के बूढ़े हो जाने का क्या परिणाम होता है ये अब कांग्रेस से बेहतर कौन समझ सकता है ।देश में जनाधार खो देने वाली कांग्रेस अब लगातार अपने विधायक और सांसद भी खो रही । नेतृत्व में कई शहंशाह उभरने से कांग्रेस महत्वकांक्षाओं के जाल में उलझती जा रही । कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व खुद समझ नहीं पा रही कि चूक कहां है , किन्तु एक बात जो हम सबने अनुभव किया ,मेरे हिसाब से कांग्रेस के वक्ता प्रवक्ता बेहद कमजोर साबित हो रहे और अपनी बात जनता के सामने रख नहीं पा रहे खासकर गौरव वल्लभ जैसे अनुभवी भी टीवी चैनलों पर ज्यादातर कॉमेडी करते दिख जाते है । कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता अब केवल पद पर पर फोकस कर रहे ,ये पार्टी के आदर्शो और मूल्यों की जगह खुद का और कांग्रेस का मजाक बनवाते ही दिखते है । राहुल गांधी जी की राजनीतिक समझ अच्छी है किन्तु उनकी टाइमिंग गलत होती है जिसका परिणाम है कि भाजपा इनके बयानों को मसाले कि तरह प्रयोग करती है । प्रियंका गांधी जी कुछ ज्यादा हायपोथेटिकल है , और राज्य में ब्लॉक और स्थानीय स्तर पर जिन लोगो को एन वाई यू सी में नियुक्त कर रही वो सब केवल दिखावे के एक नंबरी फोटोबाज है , प्रियंका जी की जमीनी पकड़ अब मजबूत है और उनका थोड़ा सा सक्रिय प्रयास कांग्रेस को फिर से सशक्त राजनीतिक जमीन दिलवा सकती है । मिला जुलाकर अब कांग्रेस राजस्थान पर फोकस्ड हो जाएगी और भाजपा महाराष्ट्र की तरफ अभियान शुरू करेगी ।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार गिराने के बाद राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार को अगला लक्ष्य बना चुकी भाजपा अब महाराष्ट्र की तरफ भी देखेगी । भगवाधारी पार्टी पर एक बार फिर हार्स ट्रेडिंग का आरोप लगेगा , भाजपा के आदर्शो के खिलाफ कुछ ना होकर भी घातक अमित शाह की रणनीति को , इंजीनियरिंग दोषों से घिरे कांग्रेस सरकारों को गिराने में विशेषज्ञता प्राप्त है । कांग्रेस पार्टी के लिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ऐसी क्षति क्या अंजाम लेकर आएगी । यह लोकतांत्रिक मानदंडों के साथ क्या कर रही कांग्रेस ,क्योंकि परिवारवाद के पाटे में पीस रही कांग्रेस के लिए कुछ अच्छा नहीं घटित होने वाला । भाजपा के मूल्यों, मानदंडों और संगठन में ऐसी बातें शायद ही मायने रखती हैं । मध्यप्रदेश की तरह राजस्थान सरकार का गिरना भाजपा के लिए एक और विभीषण (घर का भेदी लंका ढाए) की उपस्थिति में आसान लग रहा था । अगर मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया नायक थे तो राजस्थान में सचिन पायलट की तरफ भी देखा जा रहा होगा , युवा पायलट ने कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ एक ही शिकायत की उन्हे राजस्थान का मुख्मंत्री बनाया जाय , पूर्व ग्वालियर रियासत के सिंधिया राजवंश के युवा लीडर की भी ऐसी ही अनदेखी कर कांग्रेस ने रिस्क लिया जबकि राजस्थान में राजेश पायलट के पुत्र सचिन पायलट को भी वो तवज्जो नहीं मिली जिसके वो हकदार थे । दोनों को मुख्यमंत्री के दावेदारी से नकारा गया । राजनीति में विचारधारा, केवल सत्ता मायने रखती है, ये हम सबने देखा । पायलट गरीब किसान परिवार से आकर अपना रुतबा कायम किए थे और युवा जोश से भविष्य में राजस्थान में कांग्रेस के जहाज के पायलट बन सकते थे । रिपोर्ट के मुताबिक सचिन पायलट और भाजपा के बीच वार्ता कथित तौर पर मार्च में शुरू हुई लेकिन कोरोनावायरस लॉकडाउन ने सब रोक रखा । सचिन पायलट,किसी भी तरह से मुख्यमंत्री पद चाहते हैं, जो 2018 में दिग्गज अशोक गहलोत से हार गए थे । हालांकि भाजपा ने शायद पायलट से कहा है कि, पहले गहलोत सरकार को नीचे लाओ फिर देखते है क्या किया जा सकता है क्योंकि अभी भाजपा में भी ऊहापोह है जो वसुंधरा राजे के रूप में राजस्थान झेलती रही है । ये संभव है कि वसुंधरा को केंद्र में खींच कर राजस्थान पायलट के हवाले कर दिया जाय , उसके बाद पायलट के मांग पर विचार किया जा सकता है, लेकिन, यह कैच है ।
फिलहाल अभी तो भाजपा का अपना खुद का मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे है । इनके पास लगभग 45 भाजपा विधायकों का समर्थन है । उसे आसानी से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । शायद इसी वजह से सचिन पायलट भाजपा के प्रस्ताव से सावधान है और हो सकता है अभी कांग्रेस ना छोड़े , लेकिन, वहाँ एक सार्वभौमिक सत्य है कि जो लड़ा नहीं वो जीता नहीं ,अब पायलट लड़ रहे । कांग्रेस को लगता है सचिन पायलट से ज्यादा अशोक गहलोत की जरूरत है । ऐसे हालात में कर्नाटक और मध्यप्रदेश में सत्ता खोने के बाद राजस्थान को खोना भारी पड़ सकता है ,और अगर कांग्रेस अशोक गहलोत का बलिदान करके सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की मांग को मान भी ले तो पार्टी राजस्थान बचा सकती है ,लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या कांग्रेस अपने पुराने भरोसेमंद गार्ड की कुर्बानी देगी ? भाजपा ′′ कैच ट्वेंटी का मैच” की स्थिति में है , जो भी बगावत से भाजपा में आता है पार्टी अपने गार्डों को दरकिनार कर उसे मलाई वाला पद तत्काल सौंप देती है , भाजपा की यह नीति आगे चलकर भाजपा के लिए भी पीड़ादायक हो सकती है । पुराने कार्यकर्ताओं कि अनदेखी फिलहाल तो भाजपा के लिए संकट नहीं है क्युकी मोदी जी ने अभी एक संयमित तरीके से नेतृत्व को बरकरार रखा है । सचिन पायलट की मांग को स्वीकार नहीं किया जाता है तो कांग्रेस फंस जाएगी और पायलट की मांग स्वीकार करने पर गहलोत को खो देती ! देखना महत्वपूर्ण है कि पायलट कहां तक उड़ते है , लेकिन साथ ही एक और महत्वपूर्ण राज्य खोने से कांग्रेस और बद्तर होगी ।
_____ पंकज कुमार मिश्रा 8808113709