मैं वाणी भारती, मैं विश्व लेखनी भारतीय,
वर्णों की गुथी माला की अनुपम पाठशाला हूँ।
अलंकारों से सुसज्जित, आनंदित सुभाष हूँ।
इंदु रश्मि पूनम, ईख की मिठास हूँ।
उर मेरे हरि निवास, ऊर्जस्विता प्रभास हूँ।
ऋद्धि सिद्धि का वास, एकाग्रता विश्वास हूँ।
ऐश्वर्यता से भरी, ओजस्विता सुहास हूँ।
और लेखनी अनुपम सी, अंतरिक्ष आकाश हूँ।
कवयित्री हूँ महान, खगोल का सम्पूर्ण ज्ञान।
गगन में गूंजता गान, घनश्याम गीता प्रज्ञान।
चन्द्रिका और चंद्रयान, व्योम से ऊँची उड़ान।
छवि की मनोहरता, जगत की संपूर्णता।
झरनों की कल-कल, टन-टन पूजा स्थल।
ठनकती वसुधा पर, डमरू नटराज हूँ।
ढम-ढम ढोलकी, तम्बूरे की तान हूँ।
थन में क्षीर, दही और खीर।
धरनी में नीर, धन और धान हूँ।
नवरत्नों की खान, पंचामृत पान।
फलों का उद्यान।
बरगद की शाख, भक्ति वैराग।
मञ्जुला मनोहारिणी,
यशस्वी हितकारिणी।
रचना संस्कारिणी,
लहर गंगे, रेवा विहारिणीI
वन्दना गणाधीश, शक्ति शुभाशीष।
षडानन तनय गिरीश।
संरचना सृष्टि की, हरिहर दृष्टि की।
क्षत्र की छाया, त्रयोदशी शिव ध्याया।
ज्ञान हिंदी, सर्व मन भाया।।
सीमा धूपर
जबलपुर