हमारे देश में भ्रष्टाचार का ही चलन है। जो भ्रष्ट नहीं है वो पिछड़ा हुआ है। परिवार, समाज और प्रांत सभी इसकी गिरफ्त में हैं। केवल नेता या अफसर ही नहीं, सामान्य नागरिक भी भ्रष्ट आचरण को अपना चुका है। मर्यादित आचरण से सभी अनभिज्ञ हैं। दुख की बात है कि परिचित होना भी नहीं चाहते हैं। सही गलत, कितना सही कितना गलत अब महत्व पूर्ण नहीं है। महत्व पूर्ण है, जरूरत के मुताबिक हमारे सब काम बनते रहें। उस प्रक्रिया में कुछ गलत सामने अा जाए तो हम बचकर निकल जाएं, कोई भी जतन करके। जिस समाज का सरपंच धन और सत्ता हो वहां मानव मूल्य और सभ्य आचरण का अपहरण हो ही जाता है। सच तो यह है कि सभ्य आचरण को हम जानते ही नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि सभी लोग भ्रष्ट हैं। परन्तु भ्रष्टाचार रूपी कोरोना का सामुदायिक प्रसार हो चुका है। समय रहते हम आवाज़ उठाते तो शायद स्थिति इतनी न बिगड़ती। अब सुधार कठिन है। जब तक सत्ता और धन को लोग अपनी विरासत मानते रहेंगे तब तक कोई परवर्तन संभव नहीं है। सत्ताधारी और धनी लोगों का वैचारिक परिवर्तन आवश्यक है। जिस दिन नेता जनता का सेवक होगा। धनी, धन को जन कल्याण की वस्तु समझेगा उसी दिन भ्रष्टाचार दुम दबाकर भागेगा। उस स्थिति को लाने के लिए आम जनता को आंदोलन करना होगा। सभी प्रण लें कि भ्रष्टाचार न तो करेंगे न ही होने देंगे और न ही होता हुआ देखेंगे। भ्रष्ट लोगों का पूर्ण सामाजिक बहिष्कार ही इसकी जड़ काटने के लिए जरूरी है।अर्चना त्यागी