कुछ समय पहले की बात है कि एक हिंदी फिल्म देख रहा था। फिल्म और मुख्य पात्र का नाम है मिली। मिली एक मॉल के फूड जंक्शन में काम करती है। एक दिन गलती से मिली रेस्टोरेंट के फ्रीजर रूम में बंद हो जाती है। फ्रीजर रूम की सरदी के कारण उसकी हालत बहुत खराब हो जाती है लेकिन वो उस भयंकर जमा देने वाली सरदी में भी बचने के प्रयासों में कोई कसर नहीं रख छोड़ती। अंततः कई घंटों के असहनीय कष्ट के बाद उसे बचा लिया जाता है। इस फिल्म की कहानी में एक किरदार है मॉल का सिक्युरिटी गार्ड। फिल्म में सिक्युरिटी गार्ड के प्रति मिली का आत्मीय व्यवहार और उसके फ्रीजर रूम में बंद होने की घटना को देखकर मुझे बहुत पहले पढ़ी हुई एक कहानी याद आ गई। एक व्यक्ति एक फ्रीज़र प्लांट में इंजीनियर था। वह वहाँ कार्य करने वाले सभी कर्मचारियों से हमेशा अत्यंत विनम्रता से पेश आता था और आते-जाते समय सबका अभिवादन करता था।
इंजीनियर के आत्मीय व्यवहार के कारण सभी लोग उनका बहुत सम्मान करते थे। एक दिन छुट्टी के समय जब सब कर्मचारी जाने की तैयारी कर रहे थे तो अचानक प्लांट में कोई तकनीकी खराबी आ गई। इंजीनियर महोदय प्लांट में आई खराबी को सुधारने में लग गए। जब तक उनका कार्य पूरा हुआ काफी देर हो चुकी थी। वो प्लांट के एक ऐसे कोने में कार्य कर रहे थे जहाँ किसी का भी ध्यान उनकी तरफ नहीं गया। प्लांट के दरवाजे बंद करके सभी कर्मचारी अपने-अपने घर चले गए। इंजीनियर महोदय ने काफी ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ें लगाईं पर अंदर की आवाज़ें बाहर तक नहीं जा रही थीं। ठंड बढ़ती ही जा रही थी। बचने का कोई उपाय नहीं दिखलाई पड़ रहा था। इंजीनियर महोदय ठंड के मारे अपनी चेतना खोते जा रहे थे। फ्रीजर प्लांट उनकी कब्रगाह बनता दिखलाई पड़ रहा था। तभी एक चमत्कार घटित हुआ। जीवन में चमत्कार घटित होते हैं लेकिन वास्तव में उन चमत्कारों की भूमिका हम स्वयं लिखते हैं।
अचानक प्लांट का दरवाजा खुला और एक सिक्युरिटी गार्ड अंदर आया। उसने सारी लाइटें जला दीं और इंजीनियर महोदय को पुकारने लगा। सिक्युरिटी गार्ड उन्हें खोजकर बाहर निकल लाया। इंजीनियर महोदय ने उनकी जान बचाने के लिए सिक्युरिटी गार्ड के प्रति आभार व्यक्त किया और उससे पूछा, ‘‘आपको कैसे पता चला कि मैं अंदर रह गया हूँ?’’ सिक्युरिटी गार्ड ने जवाब दिया, ‘‘ सर इस प्लांट में कई दर्जन लोग काम करते हैं लेकिन आप अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो हर रोज़ आते हुए मेरा हालचाल पूछते हैं और जाते हुए बाय कह कर जाते हैं। मुझे याद आया कि आपने सुबह तो मेरा हालचाल पूछा था लेकिन शाम को आपसे मुलाकात ही नहीं हुई। मुझे कुछ अनहोनी की आशंका हुई और मैं आपको ढूँढ़ता हुआ अंदर चला आया।’’
फिल्म के अंत में इस कहानी को भी डाला गया है। हमारी अच्छी आदतें विशेष रूप से हमारा किसी को प्यार व सम्मान अथवा महत्त्व देना विषम परिस्थितियों में हमारे जीवन तक को बचा सकता है इसमें संदेह नहीं। ये सब बातें नई नहीं हैं। हम सब इन बातों को जानते हैं लेकिन अहंकारवश अथवा अन्य कारणों से उन्हें अपने व्यवहार में नहीं लाते। दूसरे हम जिन्हें कमतर अथवा बहुत सामान्य समझने की भूल करते हैं वे किसी भी तरह कम महत्त्वपूर्ण नहीं होते। जब हमारी गाड़ी रुककर खड़ी हो जाती है और उसे धक्का देने की जरूरत होती है तब ये सामान्य व्यक्ति ही हमारी गाड़ी को धक्का देकर उसे दोबारा चालू करने में सहायक होते हैं। उनके प्रति हमारा आत्मीय व्यवहार कभी निष्फल नहीं जाता। कई बार तो कुछ अच्छी आदतें हमें मृत्यु के मुख तक में से खींच लाती हैं।
हमारे पास धन-दौलत अथवा अन्य किसी भी प्रकार की समृद्धि आती है तो हम उसे सहेज कर रख लेते हैं। धन की प्रायः तीन गतियाँ कही गई हैं – सदुपयोग, दुरुपयोग अथवा विनाश। यदि हम अर्जित धन-दौलत अथवा समृद्धि का सदुपयोग नहीं करेंगे तो उसका दुरुपयोग अथवा विनाश अवश्यंभावी है। समझदार व्यक्ति अपनी धन-दौलत का न केवल सदुपयोग करते हैं अपितु अतिरिक्त धन-दौलत को किसी उपयोगी व्यवसाय में लगा देते हैं अथवा बैंक में डाल देते हैं। पैसा भी सुरक्षित हो जाता है और अतिरिक्त आय भी नियमित रूप से होती रहती है। अच्छी आदतों अथवा सद्गुणों के संबंध में भी यही बात कही जा सकती है। सद्गुणों का उपयोग नहीं करेंगे तो उनका भी विनाश हो जाएगा और उनसे होने वाले लाभ से हम वंचित रह जाएँगे। हमारी अच्छी आदतों, सद्गुणों व हमारे आत्मीय व्यवहार के कारण ही लोग हमारा ध्यान रखने को विवश हो जाते हैं।
सीताराम गुप्ता,
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