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लघुकथा : हौसलों की उड़ान

बोलते मम्मी से गले लिपट गई।

मम्मी की आंखों में खुशी के आंसू निकल पड़े। उन्हें लगा कि आज उनकी मेहनत सफल हो गई।

मम्मी (नविता जी) का मन अतीत की स्मृतियों में खो जाता है । अनन्या जब मात्र 10 महीने की थी तभी उसे दिमागी बुखार चढ़ जाता है। उसमे उसका अगर शरीर भी पैरालाइज हो जाता है।

कितनी भागदौड़ करके उन्होंने अनन्या का इलाज कराया था। तब जाकर वह कुछ सही हुई थी। लेकिन फिर भी उसे कभी-कभी फिट्स आया करते थे।

 दूसरे बच्चों की तुलना में भी वह कुछ स्लो थी। लेकिन अनन्या को पढ़ने की बहुत ललक थी। अनन्या की मम्मी नविता जी ने उसके साथ बहुत मेहनत की । उसका प्रवेश शहर के एक अच्छे विद्यालय में कराया। कुछ लोग तो दबी जबान से यह भी कहते कि आपका बच्चा एवनॉर्मल है। यह इतने ऊंचे स्कूल में नहीं चल पाएगा।

शुरू में तो कुछ कठिनाइयाँ आयी। लेकिन नविता जी और अनन्या के हौसले से मंजिलें पार होती गई। अनन्या ने इंटर पास करके डी.यू. में प्रवेश प्राप्त कर लिया। बीमारी भी धीरे-धीरे ठीक हो रही थी। नविता जी ढाल बनकर अनन्या के साथ हर वक्त खड़ी रहती।

आज अनन्या की खुशी देखकर उन्हें ऐसा लगा,”आखिर आज उसने मुकाम पा ही लिया था, वह मुस्कुरा उठी। लग रहा था कि बरसों बाद मन की कलियाँ फिर से खिलने को आतुर हैं।”

स्वरचित मौलिक

प्राची लेखिका

खुर्जा उत्तर प्रदेश

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